
'अरे बेटा जरा अखबार देखना तो का ख़बर आई है. रामलाल के परिवार को कुछ पैसा-वैसा मिलेगा का?' चाचा ने पड़ोसी के मनोज को आवाज दी. (मनोज B.Sc करने के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करता है.)
'चाचा रामलाल की ख़बर तो नहीं है... पर खूब सारी मजेदार खबरें आई हैं... तसवीरें देखोगे? छोड़ो तुम क्या देखोगे ये सब... वैसे दो अच्छी खबरें भी छपी हैं, लो सुनाता हूँ.'
'चलो सुनाओ, बेटा अब ई अंग्रेजी अखबार काहे लेते हो कोई देख के समझेगा कि हम अनपढ़ हैं?'
'अरे चाचा का करें, नौकरी लेनी है, वैसे भी अंग्रेजी के बिना कुछ नहीं होता है. और तुम्हे सुनाने के बहाने थोड़ा पढ़ भी लेता हूँ... नहीं तो पढ़ाई से ही फुरसत नहीं है।'
अच्छा तो सुनो एकदम सच्ची घटना है... लेखक चकाचक अरोड़ा हवाई जहाज में बैठे तो उसके बगल में एक महिला आकर बैठ गई, थोडी देर में बोली...
'भाई साहब गड्डी बंगलोर में कितनी देर रुकेगी?'
लेखक को हँसी आ गई... उन्होंने कहा '१ घंटे'.
'मुझे बंगलोर में ही उतरना है, जरा बता दीजियेगा आए तो... मैं तो घर में काम करने वाली बाई ठहरी, मुझे कुछ समझ नहीं आता है, पहली बार तो जहाज में चढी हूँ.'
तब लेखक को लगा ... अरे हमारा देश तो बहुत आगे जा रहा है, इसको कहते हैं असली बदलाव... सच में बहुत विकास हो रहा है... समझे चाचा देश बहुत आगे जा रहा है, इस कहानी से लेखक ने यही समझाया है... फिर आगे बहुत कुछ लिखे हैं कि कैसे-कैसे विकास हो रहा है, और कैसे सबको इसका लाभ मिल रहा है.
अगली कहानी में भी यही सब है बस थोड़ा चरित्र अलग है, इसके लेखक हैं चमचम दास, ई गए एक चाय के दूकान पे... वहाँ एक ११ साल का बच्चा चाय दे रहा था, बात करते-करते पता चला की उ लड़का अंग्रेजी बोलता है, और कम्प्यूटर भी सीखता है... अरे और-तो-और वो यहाँ पर चाय बेचने की नौकरी नहीं करता 'समर जॉब' करता है ताकि अपने कम्प्यूटर कोर्स का खर्चा निकाल पाये. गरीब है तो क्या हुआ, आज हमारे देश में कोई भी पैसा कमा सकता है अब इस बच्चे को ही देखो कम्प्यूटर सीख लेगा बस कमाई-ही-कमाई. देख रहे हो चाचा कितना आसन है पैसा कमाना हमारे देश में. ई लेखक कह रहे हैं की बस एक समस्या है ... सरकार गरीबो पर बहुत ध्यान दे रही है जिसकी जरुरत नहीं है, क्योंकि इनका सिद्धांत कहता है कि धीरे-धीरे सबको काम और पैसा कमाने का साधन मिल जायेगा. बस देश का विकास इसी तरह से होता रहे.
'हाँ बेटा ई सब तो हम बचपन से सुनत आ रहे हैं, विदेश कि बात ही कुछ और है, वहाँ पर तो ऐसा ही होता है. अपने उ नरेन के चाचा भी तो गए थे... उ भी ऐसा ही कुछ बता रहे थे, जब आए थे.'
'अरे चचा, आप फिर नहीं समझे ... ई सब विदेश के नहीं अपने इंडिया कि बात है.'
'अरे बेटा किसे पढ़ा रहे हो, ई सब हिन्दुस्तान में होत है? ''
एक मिनट रुक कर चाचा फिर बोले: 'हाँ वैसे ठीक ही कहा तुमने ये सब अमेरिका, इंडिया जैसे देश में होता है, भारत में कहाँ होगा... अब भाई इंडिया में तो अखबार भी ऐसे ही छपते हैं. यहाँ तो भर पेट खाना मिलना भी बड़ी बात है... भाई हम गरीब देश के लोग हैं.... अब रामलाल को ही देख लो, बेचारा अकेला ही चला गया कुछ नहीं हुआ, २०-२५ को साथ ले गया होता तो ख़बर भी शायद छाप जाती. इन इंडिया वाले अखबारों में छप भी जाता. और शायद कुछ पैसे-रुपये भी मिल जाते, तुम्हारे ये इंडिया वाले तो यहाँ तक कहते हैं कि रामलाल जैसे किसान पैसे के लिए मर जाते हैं... अरे भाई अब कोई मर के पैसों का का करेगा, बताओ? वैसे अखबार वालों की भी गलती नहीं है भाई ... उनके पास चकाचक और चमचम जैसे बड़े लेखक हैं, वो क्यों भारत की चिंता करें... बड़े देश के लोग हैं. अब रामलाल अमिताभ बच्चन तो था नहीं की फिलिम के अंत में मर जाए तो फिलिम हिट '
'अरे चाचा ये सब तो मैं भी जानता हूँ, पर मैं ये कह रहा था कि इंडिया तो अपने देश को ही कहते हैं ... और ये कहानियाँ हमारे ही देश की हैं.'
'जाओ बेटा चार अक्षर पढ़ के हमें पढाने चले हो, हम इंडिया नहीं जानते हैं... और कभी गए भी नहीं वहाँ लेकिन भारत में हम बचपन से रह रहे हैं... और तब से समझ रहे हैं जब से नेहरूजी थे, हमें का पढ़ा रहे हो, इ अखबार वाले तुम्हे ही समझा सकते हैं मुझे नहीं... पढ़ लो ... एक लेख लिख दोगे तो परीक्षा में अच्छे नंबर आ जायेगे और भगवान ने चाहा तो इंडिया में नौकरी भी लग जायेगी. वही अच्छा है इस देश में कुछ रखा नहीं है.'
और आव-आव ओझाजी के बबुआ तुम तो बाहर देश भी हो आए हो, और सुना है की आजकल तुमलोग बिलोग लिखते हो... इ अखबार में ही एक दिन आय रहा कि आजकल भारत वाले भी बिलोग पढ़ते हैं, इ ससुरे अखबार वाले तो आजकल इंडिया कि खबरें छाप देते हैं, भारत के नाम पे. तुम भी लिख देना बिलाग पर कुछ लोग टिपिया भी जायेंगे: बिल्कुल ठीक कह रहे हैं आप !. चलो कम से कम इतना तो है की इंडिया वाले तुम्हारे बिलाग-दोस्त इसे ठीक तो समझते हैं.'
मैं वहाँ से थोडी देर के बाद चला आया, कई महीने हो गए आज उस चर्चा के सोचा चाचा की कही हुई बात मान ही लेता हूँ.
P.S.: दुर्भाग्य ये है कि ये बात चकाचक और चमचम की बातों से कम से कम १५० फीसदी ज्यादा सच है. मुझे अभी भी भरोसा नहीं है की उनका चाय वाला और काम वाली बाई कितने सच हैं, पर मैं इन चाचा से मिल चुका हूँ और आप भी आराम से मिल सकते हैं कहीं भी, किसी भी गाँव में निकल जाइए. इसके लिए न तो आपको भारत-यात्रा की जरुरत है ना किसी हवाई यात्रा की.
~Abhishek Ojha~
चित्र साभार: http://pra-sh-ar.blogspot.com/2007/09/pipal-tree.html