मैं मुम्बई से दिल्ली जाने के लिए विमान में बैठा तो इधर-उधर देखना चालू किया, 'बगल के सीट पे कोई लड़की आ जाती' वाला सपना हर बार की तरह इस बार भी टूट गया. आगे वाली सीट पर बैठे भाई साब के चक्कर में विंडो सीट भी गई... अब भई कोई जोडा अनुरोध करे 'और वो भी जोड़े का बेहतर हिस्सा' तो मना करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. खैर उस सीट के बदले में मिला ३-४ थैंकयू वो भी वैरी मच के साथ. इधर मेरे मन में गाली और चेहरे पे मुस्कान... नहीं-नहीं गाली अच्छा शब्द नहीं है... गुस्सा !
उसके बाद चुप्पी और बोरियत चालू... हवाई जहाज में एक्सक्यूज मी के अलावा कुछ गिने-चुने शब्द ही तो लोग बोलते हैं. पता नहीं बगल वालों से लोग बात करने में इतना इतराते क्यों हैं? मेरी बात और है मैं तो वैसे भी पहले कभी बात शुरू नहीं कर पाता, हाँ ये बात और है कि अगर एक बार सामने वाला शुरू कर दे तो पछतायेगा कि किससे पाला पड़ गया, एक बार शुरू... तो फिर कुछ भी डिस्क्स करो... बात निकली है तो दूर तलक जायेगी :-)
इधर दाहिने हाथ पे चिर-परिचित डंक का अहसास हुआ और आदत के अनुसार मैं उधर जोर से चांटा मारने वाला था कि ख्याल आया जहाज में बैठा हूँ... यहाँ मच्छर तो नहीं होगा ! इधर समीर लालजी के ताली के गुण वाली कविता ... याद आ रही थी.
खैर मैंने आहिस्ते से हाथ मारकर देखा तो शक सही निकला मच्छर ही था... अब तो हद ही हो गई यही एक बाकी था... ये लो कोस्ट एअरलाइन वाले... उफ़! क्या मजबूरी है मोबाइल भी बंद... एक फोटो भी नहीं ले सकता, कम से कम ब्लॉग पे डालने के लिए एक सबूत तो मिल जाता. मैंने बिना आवाज़ किए ही उसकी हत्या करने की कोशिश की... और वो टेक-ऑफ़ कर गया. भले ही विमान उड़ने में देर हो जाए पर ये मच्छर बिल्कुल समय से उड़ जाते हैं... फिर पता नहीं किसके बदन के किस हिस्से पे लैंड किया. बडोदा के ऊपर एक बार और दिखा... पर दिल्ली आते-आते गायब. कहाँ गया पता नहीं... दिल्ली है भई गाँधी टोपी और खद्दर पहन के पार्लियामेन्ट नहीं... तो किसी पार्टी के मुख्यालय में तो जा ही सकता है, अभी मुम्बई से दिल्ली तक हवा में उड़ता, खून चूसता आया है, अब बस ग्रास-रूट लेवल पे खून चूसने की प्रैक्टिस चाहिए, बस एक ही दिक्कत है... जो ताली इनकी दुश्मन होती है उसी ताली को साथ मिलाना है... एक बार भाषण पे तालिया बजी की पहुच गए संसद.
अब कैसे कहूं कि ये यात्रा कैसी रही, इस पोस्ट के अलावा क्या है याद रखने को... हवाई अड्डे के बाहर रात के २ बजे टैक्सी वालों की डिमांड... बाप रे... 'क्या साब हवाई जहाज से उतरते हो और...?' खैर बिना टैक्स जितना हवाई जहाज वालों को दिया था उससे कुछ ज्यादा ही टैक्सी वाले को देके अपनी मंजिल तक पंहुचा. और हाँ दिल्ली में मच्छरों की कोई कमी नहीं है... बजाते रहो ताली. बस एक अन्तर है यहाँ के बहुत कम मच्छर ताली पे मरते हैं... इन्हे खून पीकर उड़ने की आदत कुछ ज्यादा ही है।
~Abhishek Ojha~
दिलचस्प अंदाज। सही पकड़ा आपने, दिल्ली के मच्छरों को खून पीकर उड़ने की आदत कुछ ज्यादा ही है।
ReplyDeleteमच्छरों के बहाने क्या खूब आपने चुटकी ली है आज की व्यवस्था पर.
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद.
मजेदार :)
ReplyDeleteबहुत सही यात्रा बयानी और व्यवस्था पर करारा तमाचा..एक प्लेन में तक मच्छर कंट्रोल नहीं कर सकते. आपको तो मेरी कविता गाने लगना था वहीं...:)
ReplyDeleteयहाँ के बहुत कम मच्छर ताली पे मरते हैं... इन्हे खून पीकर उड़ने की आदत कुछ ज्यादा ही है।
--क्या शेर कहा है, वाह!! :)
देखिये उन मच्छरो से बचियेगा जिन्होने राजनेताओ को काटा है। :)
ReplyDeleteभाई मच्छर जी को कविता सुना देते कोई सी भी, फ़िर देखते मच्छर कया कोई भी आप से पगां न लेता,मे एक बार कवि सम्मेलन मे गया, वहा पर श्रोता गण सभी मच्छरो से परेशान,लेकिन कवि मस्ती से कविता सुना रहे हे, लोग तो मच्छर मार रहे थे,कवि सोच रहे थे तालिया बज रही हे,(अपने कवि मित्रो की बात नही कर रहा)
ReplyDeletebhai vaah.. maja aa gaya.. :)
ReplyDeleteबहुत सही कहा विमान यात्रा में सहयात्रियों की बोलचाल के अंदाज के बारे में। मेरा भी यही अनुभव रहा है।
ReplyDeleteiteresting..
ReplyDeletemeri thinking se sahmat nahi hote huye bhi jo hosla aapne diya hai,uske liye aapka bahot shukriya.pls be with me.
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया लगा भाई आपका अंदाज...पढ़कर मजा आ गया ...बधाई
ReplyDeletethanks for the comment, but can't really do that...
ReplyDeleteAnyway, this is work of fiction, any similarity to real incidence is merely a coincidence...
Regards
Sawan
बढ़िया लिखा है । अब मच्छर तो विमान और बस का अन्तर नहीं करता । समतावादी है वह !
ReplyDeleteघुघूती बासूती
आपने ये नही बताया की हवाई जहाज़ कौन सी कम्पनी का था ....एक बार जेट मे जब हमने शियाकत की तो एयर होस्टेस हाथ मे रेपेल्लेंट ले कर आ गई.....हमने कहा नही इसकी बदबू अगले दो घंटे परेशां करेगी.......
ReplyDeleteडॉक्टर साब, हवाई जहाज के नाम में क्या रखा है, लो-कोस्ट वाली सभी कंपनियों का यही हाल है... मैंने सोचा की खामखाह क्यों बदनाम किया जाय उस कम्पनी का नाम लेके... पर आपने पूछ लिया तो बता देता हूँ.. गो एयर की जहाज थी.
ReplyDeleteअभिषेक जी, आपने उन एयरलाइनस वालों का नाम ले कर अच्छा नहीं करा.. अब आप पर मानहानि का दावा हो सकता है!
ReplyDeleteअनुराग जी ये तो सही में ग़लत है... अब नेस वाडिया और प्रीति जिंटा नहीं छोडेंगे मुझे. अच्छा होगा अगर प्रीति जिंटा ही ये काम संभालें वैसे भी आजकल बिजनेस वही संभाल रही हैं. :-)
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