चला था मैं
पाँच साल पूर्व-
एक अनजान पथ पर,
सोचा न था-
होगा क्या?
कुछ पथिक मिले,
कुछ साथ चले,
कुछ देर चले,
सुख-दुःख सब बाँट चले।
ना दिन रहा, ना रात रही,
हर समय मनोहर शाम रही।
स्नेह मिला, मुस्कान मिली,
बहार मिले, यादे मिली।
यहाँ बात बनी,
वहाँ नही बनी।
पर रुक जायें, इतना वक्त कहाँ
पथिको ने था रोका वक्त वहाँ।
चौराहे आये-
सब बिछड़ गये,
कुछ भुल गये,
अब यादे हैं, बस यादे हैं।
अरे! चला तो था मै !
कुछ ही पल पूर्व-
उस छोटे पथ पर,
पता न था-
है स्नेह क्या !
~Abhishek Ojha~
ye sab kya khud se likh raha hai be...
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