बाँझ समझ
स्नेही स्वजनों के बीच,
हर महाभारत के बाद -
शेष रह जाता है एक श्मशानी सन्नाटा।
हर विवाद का समूल अंत हो जाने के साथ -
जन्म लेती है एक 'बाँझ समझ' !
उस समझ से सिर्फ ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं,
क्योंकि उसके अंकुरित होने को जमीन नहीं बचती।
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सुकून
जिसे पाना जीवन का एक मात्र लक्ष्य हो !
उसे पा लेने के बाद.
सब कुछ होने और घोर यातना के सम्मिश्रण सा लगने के बाद.
एक दिन -
खिलखिलाते बच्चों के साथ
खेलते, लड़ते, पीटते।
माँ की गोद में सर रखे -
उन्मुक्त ख़ुशी और सुकून का एक अपरिभाषित पल गुजर जाता है !
मुझे नहीं समझ... सुकून के लिए इंसान को क्या चाहिए.
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समझ
निश्छल भाव से बच्चे ने खिलखिलाते हुए पूछा -
'ये मैं ले लूँ?'
किसीअपने ने आँखे दिखा समझाते हुए कहा -
नहीं ! नहीं लेते. तेरे काम का नहीं.
'समझ नहीं न इसे, कुछ भी कह देता है.'
मुझे नहीं समझ... समझ किस लिए चाहिए !
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संगीत
बीस घंटे से निरंतर गाये जा रहे 'हरे राम'* के बीच -
मैं 'हैप्पी' सुनते हुए सोचता हूँ,
इस धुन से ख़ुशी छलकती है - हर पल !
हेडफोन निकलता हूँ -
चार घंटे और बाकी हैं - बोझिल।
अचानक कोई और गा रहा है -
वही तीन शब्द हैं - हरे, राम और कृष्ण !
पता नहीं वो कौन से भाव भर देता है,
बिना किसी धुन -
वो आवाज गहराई तक छूती भाव-विभोर करती चली जाती है.
मुझे नहीं समझ... दिल को छूने के लिए संगीत में क्या होना चाहिए.
(*चौबीस घंटे का अखंड कीर्तन)
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खूबसूरती
ऑटो-एक्सपो की मॉडल्स के साथ मॉडल्स की तस्वीरें देख बच्चे ने पूछा -
चाचा, आपको कौन सी पसंद है ?
लम्बोर्गिनी, रोल्स रॉयस या फरारी?
तभी सामने सड़क पर -
एक साइकिल,
जिसके मॉडल के नाम होने की जगह अब सिर्फ लोहे का रंग शेष है.
आगे डंडे पर एक बच्ची,
पीछे हरी साडी में एक औरत.
पता नहीं इसमें ऐसा क्या है जो मैं मुग्ध हो जाता हूँ !
मुझे नहीं समझ... खूबसूरती कैसे परिभाषित करते हैं.
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साधारण बनाम सभ्य
साधारण लोगों की समस्याएं भी साधारण होती हैं.
वो कभी सुख में होते हैं,
कभी दुःख में.
उनके दुखों के कारण होते हैं.
जब हँसते हैं - निश्छल,
रोते हैं - फूट कर.
लड़ते हैं,
चिल्लाते हैं,
प्रेम में होते हैं,
घृणा करते हैं.
उनके अपने होते हैं,
पराये होते हैं.
वो सही होते हैं,
वो गलत होते हैं,
उनके पास कुछ नहीं होता,
उनके पास सब कुछ होता है.
जीते हैं और मर जाते हैं.
- असन्दिग्ध।
सभ्य लोगों की समस्याएं असाधारण होती हैं.
सुख में रहकर दुखी होते हैं,
न खुल कर हँसते हैं ना रो पाते हैं,
हंसी दबी हुई - दुःख अबूझ,
न लड़ते हैं ना चिल्लाते हैं,
प्रेम में होकर भी नहीं होते,
सही भी होते हैं गलत भी,
अपने आप से भी पराये,
उनके पास सब कुछ होकर भी कुछ नहीं होता.
जीकर भी नहीं जीते,
जंजाल से क्षयग्रस्त.
- संदिग्ध।
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पुनश्च:
आज गंगा दशहरा है. गंगा के पृथ्वी पर अवतरण का दिन.
आपके जीवन में अनवरत ख़ुशी-सुकून-शांति-खूबसूरती की गंगा बहती रहे.
शायद बहुत आसान है.... नहीं तो...
शायद भगीरथ प्रयत्न भी कम पड़े !
मुझे नहीं समझ :)
पुनश्च:
आज गंगा दशहरा है. गंगा के पृथ्वी पर अवतरण का दिन.
आपके जीवन में अनवरत ख़ुशी-सुकून-शांति-खूबसूरती की गंगा बहती रहे.
शायद बहुत आसान है.... नहीं तो...
शायद भगीरथ प्रयत्न भी कम पड़े !
मुझे नहीं समझ :)
ये सब... सोचिए तो.. कुछ भी तो नहीं.
और सोचिए तो.. इतना कि सोचते ही रह जाइए. :)
~Abhishek Ojha~
You are from a different planet.. Behad samjhi Hui kavitayen 😃.. Stay blessed.. Cheers!!
ReplyDeletesamay ke saath-saath samajh-- sakaraatmak sochte-sochte ek khushnuma raah par.. bahut hi rochak laga.. happy ganga desehra..
ReplyDeleteगद्य से पद्य तक आती कविताएं अच्छी लगीं। ज्ञान चचा को धन्यवाद इस लिंक के लिए, लेकिन समझ में नहीं आया कि....
ReplyDeleteलेबल Bakwaas, Funda, क्यों चेंपा है आपने :)
पंडितजी, वो क्या है कि गद्य-पद्य, कविता-साहित्य की समझ सच में नहीं हमें. जो लिखा है वो पता नहीं किस श्रेणी में आता है.
Deleteऔर पता नहीं जो कह रहा हूँ वो सच है या नहीं, कोई सहमत हो न हो. किसी को लग जाए कि 'ज्ञान' झाड़ रहा है तो :)
ऐसा लगा तो फिर अपनी 'बकबक' को और क्या संज्ञा देता ! :)
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन सेर और सवा सेर - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteगहरी बातें! पहली रचना ने मेरे एक पुराने प्रश्न का उत्तर दिया है, धन्यवाद, आभार और बधाई!
ReplyDeleteसमझ को समझना कठिन तो है पर असंभव नही. अंतिम कविता बहुत ही भाई।
ReplyDeleteएक सुकून मिला, एक नई नज़र और कुछ बहुत ही सुन्दर रचनाएँ.
ReplyDeleteसभ्य लोगों की समस्याएं असाधारण होती हैं.
ReplyDeleteसुख में रहकर दुखी होते हैं,
न खुल कर हँसते हैं ना रो पाते हैं,
हंसी दबी हुई - दुःख अबूझ,
न लड़ते हैं ना चिल्लाते हैं,
प्रेम में होकर भी नहीं होते,
सही भी होते हैं गलत भी,
अपने आप से भी पराये,
उनके पास सब कुछ होकर भी कुछ नहीं होता.
जीकर भी नहीं जीते,
जंजाल से क्षयग्रस्त.
- संदिग्ध।
एकदम बढ़िया ओझा जी
वाह ।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteBahut achcha laga ....blog par akar.....nice
ReplyDeleteआपका ब्लॉग मुझे बहुत अच्छा लगा। आपका ब्लॉग मेरे ब्लॉग "नवीन जोशी समग्र" के हिंदी ब्लॉगिंग को समर्पित पेज "हिंदी समग्र" (http://navinjoshi.in/hindi-samagra/) में शामिल किया गया है। अन्य हिंदी ब्लॉगर भी अपने ब्लॉग को यहाँ चेक कर सकते हैं, और न होने पर कॉमेंट्स के जरिये अपने ब्लॉग के नाम व URL सहित सूचित कर सकते हैं।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत आनंददायक और हृदय को छुने वाली विधा है आप की |
ReplyDeleteयह भी आनन्द दायक। दर्शन भी, कविता भी और उलझे-उलझे प्रश्नों के उत्तर भी। वाह!
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