साल 2011 का कुछ-कुछ अपने पास पड़ा रह गया है... वो तो अब वापस लेने आएगा नहीं... ये अब अपने साथ ही रह जाएँगे। हमारा कुछ अगर किसी के पास रह गया होगा तो ये उन्हें पता होगा... हमें याद नहीं। हाँ, हमारे पास जमा हो गए हैं... - कुछ अनुभव – कुछ यादें – कुछ किताबें – कुछ तस्वीरें - कुछ अपेक्षित - कुछ अनापेक्षित – कुछ लोगों से मिलना - कुछ जगहों से ।
कुछ जगहों और लोगों से लगभग एक दशक बाद मिलना हुआ। बचपन के चौराहों और मुहल्लों से गुजरना हुआ। बस स्टैंड, मंदिर, चौक... वो हर हर टूटी फूटी चीजें जिनसे यादें जुड़ी हुई हैं। ऐसी जगहों पर भी जाना हुआ जहां शायद योजना बनाकर कभी नहीं जा पाता। कुल मिलाकर वैसे ही जैसे एक मानव के जीवन के दिन गुजरते हैं...
पटना – रांची - मुंबई - दिल्ली - सुंदरबन - कोलकाता - बोध गया - राजगीर - नालंदा - पावापुरी - वाराणसी - सारनाथ - बैंगलोर - न्यू यॉर्क –
बहुत सारे अच्छे लोग... और कुछ... हम्म... अच्छे लोग। बाकी अनुभव और ज्ञान सिखा देने वाले लोग। ऐसे अनुभव देने वाले चंद लोगों को (एक ही) जब मैं याद कर रहा हूँ... तो... दरअसल मेरा कुछ बिगड़ा नहीं ! बल्कि एक बात सीखने को ही मिली और ये कि मैं किसी और के साथ उनके जैसा कभी कर नहीं पाऊँगा। बिन उनके ऐसे कहाँ से सीख पाता जी ! मैं उनसे जीवन में शायद दुबारा नहीं नहीं मिलूँ... मुझे तो लग रहा है कि वो बस मिले ही थे मुझे सीखाने के लिए :)
बहुत कुछ लिखने का मन हो तो समझ में नहीं आता कहाँ से शुरू करें। वो सारे शिक्षक जो एक दशक बाद पहचान गए और... या फिर वो जिनसे मिलना था और... ! वो अनजाने लोग जो आपके लिए कुछ भी करने को तैयार होते हैं... निःस्वार्थ-अकारण प्रेम करने वाले... या वो जिनके लिए बिन वास्तविकता जाने जाने मन गुस्से से भर जाता हो और अंत में आपको वो कुछ भी बोलने का मौका ही नही देते ! दुनिया भले लोगों से भरी हुई है। इतने अच्छे लोगों से कि उनसे मिल कर लगता है... 'इनसे अच्छे लोग भी होते हैं क्या? अगर होते हैं तो कैसे होते होंगे !'
ऐसी जगहों से गुजरना हुआ जहां से गुजरना अपने आप में एक अजीब अनुभव था। कई जगहें तीर्थंकर महावीर और तथागत दोनों से जुड़ी हुई हैं.... एक विचार अक्सर आता कि क्या दोनों कभी मिले होंगे? संभव है ! अगर हाँ, तो कैसा रहा होगा ? मैं अक्सर तुलसी और सुर सूर को लेकर भी ऐसा सोचता हूँ... अक्सर एक कहानी सी चल उठती है मन में... कैसा अद्भुत रहा होगा ! क्या बातें की होंगी उन्होने ? हिन्दू-बौद्ध-जैन ये धर्म सहिष्णुता के अद्भुत मिसाल हैं ! राजगीर, बराबर की गुफाएँ और एलोरा इन जगहों पर ये सोच कर रोमांच हो उठता है कि कैसे इन तीनों धर्मों के लोग एक साथ मंत्रणा करते होंगे ! खैर...
इस साल की साथ रह गयी यादें... कभी न कभी, कहीं न कहीं... किसी बात में, किसी पोस्ट में, किसी कहानी में, किसी से बात करते हुए जाने-अनजाने आते रहेंगे। मैं अक्सर लोगों की तस्वीरें नहीं लेता... शायद जरूरी नहीं। वो अपने साथ रह गए हैं... वो याद रहें ना रहें उनकी बातें अचेतन मन पर अपना असर छोड़ जाती हैं। डायरी पलटता हूँ तो कितनी बातें हैं...
फिलहाल कुछ तस्वीरें...
वणावर (बराबर) गुफाएँ, जहानाबाद बिहार। तीसरी शताब्दी पूर्व तक की गुफाएँ। हिन्दू, बुद्ध, और जैन तीनों धर्मों से जुड़ी हुई धार्मिक सहिष्णुता की प्रतीक, संभवतः भारत की प्रथम ज्ञात मानव निर्मित गुफाएँ हैं। गुफाओं की अद्भुत चिकनी भीतरी दीवारें मौर्यकालीन कला की उत्कृष्टता दर्शाती हैं।
बोधगया। अद्भुत शांति !
मैनहट्टन -मेरे अपार्टमेंट से, और ब्रोन्क्स ज़ू में रॉयल बंगाल टाइगर।
पटना में एक माइक्रोफाइनान्स ग्राहक और गोलघर से पटना।
नालंदा विश्वविद्यालय अवशेष और जल मंदिर पावापुरी।
विश्व शांति स्तूप राजगीर और रांची में मेरी पसंदीद जगह - जगन्नाथ मंदिर।
सुंदरबन और कोलकाता।
वाराणसी और सारनाथ।
मुंबई में एक दिन।
~Abhishek Ojha~
हम्म!
ReplyDeleteॐ सुप्रभात ॐ करने चले आये हैं !
जय जय!
चलिए...एक बात तो हुजुर गोल कर गए...हमसे भी मुलाकात हुई थी...आधे घंटे की ही सही लेकिन हुई तो थी :P
ReplyDeleteतथागत और महावीर मिले होंगे तो अच्छी ही बातें हुई होगी.झगडे तो अनुयायियों में होते है.
ReplyDeleteकहा जाता है कि एक बार ही ऐसा अवसर बना जब किसी स्थान पर बुद्ध विश्राम कर रहे थे, महावीर वहां से गुजरने वाले थे, किसी भिक्षु ने आ कर यह बुद्ध को बताया, बुद्ध ने अनसुना कर दिया, यह भी कहा जाता है कि उस स्थान पर बुद्ध विश्राम कर रहे हैं यह बात महावीर को भी पता थी.
ReplyDelete(''तुलसी और सुर'' उल्लेख में 'सूर' संशोधन पर विचार करें, पढ़कर यह भी याद आया- 'सूर, सूर तुलसी ससी, उडुगन केशवदास, अब के कवि खद्योत सम, जहं तहं करत प्रकास.')
बहुत सुंदर तश्वीरे हैं।
ReplyDeleteएक बात तो निश्चित है कि सूर-तुलसी किसी आटो में नहीं मिले थे:)
नये स्थान घूमने का सुख और लाभ अनेक हैं, दोनों हाथ खोल के लूटा है आपने।
ReplyDelete@abhi: अरे भाई ये जो ऐसे लोगों का जिक्र है वो तुम्हारे लिए ही तो है :)
ReplyDelete@राहुलजी: धन्यवाद. सुधार कर दिया. इस प्रकरण पर और भी कुछ कहीं उपलब्ध होगा क्या?
@देवेन्द्रजी: :)
महावीर और बुद्ध समकालीन थे, आज पता चला!
ReplyDeleteबेहतरीन...सारा साल इकट्ठे छाप दिया..."बैरीकूल" से मुलाकात के बारे में भी कुछ बताइए :) :) :)
ReplyDeleteअभिषेक भाई की तर्ज पर कह सकते हैं कि बात तो हमसे भी हुई ही थी ...:)
ReplyDeleteई भी तो सबको बताना ही चाहिए था ना ?
@ऐसी जगहों से गुजरना हुआ जहां से गुजरना अपने आप में एक अजीब अनुभव था ... कैसे इन तीनों धर्मों के लोग एक साथ मंत्रणा करते होंगे !
ReplyDeleteमिलती जुलती बातें कई बार मन में आती हैं, कई बार जीवन में वैसे लोगों से मुलाकात भी हो जाती है। सीखने वाला हर जगह कुछ न कुछ सीखता ही है और अच्छों की अच्छाई (या रूपवान का सौन्दर्य) सात पर्दों से भी छलक ही जाती है। यात्रायें हमें समृद्ध करती हैं। न जाने यायावरी कब आवारग़ी हो जाती है पर बदलता तो शायद शब्द ही है। चित्र भी अच्छे लगे और विचारमंथन भी। काश कुछ लम्हे पकड़े जा सकते। काश नहीं, ऐसा होता तो सारी दुनिया के थम जाने का खतरा था।
पर क्या वे तीनों धर्म वाकई अलग थे?
कबीर (1440–1518), सूर (1478-1580), मीरा (1498-1547) व तुलसी (1532-1623) के काल में थोड़ा ओवरलैप तो है ही और इन संतों की कीर्ति इनके जीवनकाल में ही फैल चुकी थी, सो भेंट की सम्भावना प्रबल है। मीरा की यात्राओं के बारे में सुना भी है, कितना तथ्य है पता नहीं। खोज की जा सकती है।
हाँ, काशी सब धाराओं को प्रिय/गंतव्य था, ऐसा लगता है।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस बिन लेहों करवत कासी॥
blessings!
मास्साब की टिप्पणी को हमारा भी माना जाये!
ReplyDeleteapke yayavari karne ka aadha labh to pathk le oorte hain......
ReplyDeletesadar.
ऐसे अनुभव देने वाले चंद लोगों को (एक ही) जब मैं याद कर रहा हूँ... तो... दरअसल मेरा कुछ बिगड़ा नहीं ! बल्कि एक बात सीखने को ही मिली और ये कि मैं किसी और के साथ उनके जैसा कभी कर नहीं पाऊँगा। बिन उनके ऐसे कहाँ से सीख पाता जी ! ........... bhavo ki achchhi abhivyakti.
ReplyDeleteअभिषेक जी अच्छी रही झांकी गुज़ारे साल की.. ओशो ने अपने कई प्रवचनों में इस घटना का वर्णन किया है कि एक संयोग ऐसा हुआ है जब महावीर और बुद्ध दोनों एक साथ एक धर्मशाला/सराय में ठहरे थे... और ओशो कहते हैं कि वे दोनों समबुद्ध थे इसलिए उनके मध्य किसी वार्तालाप की गुंजाइश नहीं थी.. वार्तालाप सिर्फ दो भिन्न मानसिक/ आध्यात्मिक स्तर के व्यक्तियों के मध्य संभव है..!!
ReplyDeleteहम भी दुआ कर रहे हैं कि आपका किसी के पास कुछ रह गया हो तो उन्हें ये पता हो...और वे इस 'पता होने ' का कुछ करें..:)
ReplyDeleteविविध जगहों से गुजरना - ज्ञानवर्धक अनुभव रहा होगा।
ReplyDeleteगोया एक साल ओर कट गया जिंदगी के हिसाब से !
ReplyDeleteपता नहीं कैसे ई वाली पोस्ट हमरी नज़र से बच गई और वो भी जब हम दिन भर घूमते रहते हैं...!
ReplyDeleteगए की याद और आने वाले का उछाह ....दोनों मुबारक ! चित्र भी दर्शनीय हैं !
:)
ReplyDeleteकुछ लोग हमेशा और हरेक से कुछ सीखते हैं, हमारे अभिषेक भी ऐसे ही हैं। हैं न?
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