Apr 13, 2020

सुर्रियल पटना (पटना २३)


कल बीरेंदर को फ़ोन किए।

फ़ोन उठाते ही बोला – ‘बीरेंदर स्पीकिंग।’

मैंने पूछा कि ‘हैं? ये अंग्रेज़ी कब से बोलने लगे तुम? सब ठीक?’

‘आरे नहीं भैया। सोचे कि थोड़ा स्टाइल मारे। चलिए इसी बहाने कुछ और बात करेंगे। जो फ़ोन करता है आजकल एक्के बात पूछता है। उ ऐसा है कि हमलोग के साथ का एक ठो लड़का पढ़ता था। हमसे एक साल आगे था। हमलोग अभी पर्हिए रहे थे तब तक उसका बैंगलोर में नौकरी लग गया था। उसको एक दिन फ़ोन किए त ऐसही बोला अंग्रेज़ी में। त हम बोले – साला! ई का हो गया है रे तुमको? छौ महीना हुआ नहीं आ तुम स्पीकिंग सीख लिया? ज़िंदगी भर रैपीडेक्स का किताब पढ़ के पार्डन बोलना नहीं सीख पाया था। हमहीं पर प्रैक्टिस कर रहा है का रे? कि सही में भुला गया भासा-ओसा?’ 

...उसके बाद से उसका जो ना हमलोग हाल किए थे आजतक हमलोग से अंग्रेज़ी नहीं बोल सकता है उ कभी। उसका नामे हमलोग रख दिए पार्डन प्रसाद। त वही करके देखे की आपको कैसा लगता है।


लेकिन जैसा कि आजकल हाल चाल पूछना औपचारिकता वग़ैरह कोरोना के बारे में पूछना ही हो गया है। ऐसा हो गया है कि कोई भी कोरोना की बात किए बिना दो मिनट भी बात नहीं कर सकता, तो हम भी कुछ और बात कितनी देर करते?

मैंने भी पूछ लिया कि ‘और क्या हाल हैं? सुना है कि लोग एक दम बोर हो गए हैं लॉकडाउन में? संभल के रहना।’

‘तबियत ठीक है भैया। आ बोर होने का हमसे मत पूछिए। जो हो रहा है वो रहे। बोर होना भी कोई समस्या है? माने हद है। यहाँ इतनी बड़ी समस्या है और लोगों को बोरियत की पड़ी है। बड़ा बोरियान पीढ़ी है हमलोग का। काम ना धाना त बैठ के बोर होईबे करेगा आदमी। बड़ा पृभिलेज्ड़ हो गया है सब।


‘अरे लेकिन लोगों को घर में रहना पड़ रहा है, घर बर्तन का काम भी करना पड़ रहा है।’

‘तो कोई एहसान कर रहा है किसी पर? बताइए आदमी को एतना ना रजेसी हो गया है कि अपना काम करने पर भी रोना रो रहा है। माने कैसा आदमी है महाराज कि अपना काम भी नहीं हो पा रहा है सब से? हिहाँ आदमी दूसरे का काम कर दे रहा है और कैसा है सब जो अपना काम भी नहीं कर पा रहा है? आ बोर हो रहा है तो रामायण-महाभारत सब का व्यवस्था होईए गया है। आ लॉकडाउन माने ऐसा थोड़े है कि हाथ गोर तोड़ के बैठ जाना है। जो काम है करे तो कैसे बोर होगा महाराज? हमसे पूछे दस ठो काम बता दें करने को। माने एक ठो कथा में सुने थे कि एक आदमी ऐसा ना आराम किया था बचपन से कि उसके पैर का तलवा में रोंवा उग गया था वैसहि आदमी हो गया है अब। अरे यदि आपके पास काम है, नौकरी नहीं गया है और स्वस्थ ठीक है तब तो रोने वाले को थपड़िया देना चाहिए। उसके लिए तो बढ़िया टाइम हुआ न? स्वास्थ्य भी ठीक है और घर पर भी रहना है। जिसका काम का नुक़सान हो रहा है उसका तो समझ आता है लेकिन फ़ालतू बोर होने वाला का तो हसीन दुःख है।‘

‘बात तो तुम्हारी ठीक है लेकिन बहुत लोग ऊब जा रहे हैं घर में रहते रहते। आदत नहीं है।‘

‘अरे तो जिसको बुद्धि नहीं है उसका क्या कीजिएगा। जो व्यस्त रहता है उसके लिए आपे बताइए ज़िंदगी में ऐसा समय फिर आएगा अपना परिवार के साथ बीताने के लिए? उहे तो एक ठो अच्छा बात है इस लॉकडाउन का। लेकिन अजीबे लोग हैं। भाग दौड़ था तो उससे दिक्कत था कुछ दिन के लिए ठप है तो भी दिक्कत है। लोग पूछ रहे हैं कि लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद क्या करोगे? लिस्ट बना रहे हैं कि क्या करेंगे! हम बोले कि जो करते हैं वही करेंगे। अभी भी जो करना है वो कर रहे है। माने लोगों का ऐसा है कि देखिए जब लॉकडाउन नहीं था तब जो करना था नहीं किए, अब बैठ के सोच रहे हैं कि जब ख़त्म होगा तब क्या करेंगे, जब ख़त्म हो जाएगा तब ये सोचेंगे कि लॉकडाउन में इतना समय था तो बहुत कुछ कर सकते थे लेकिन कुछो नहीं किए। हम ना पहले सोच-बटोर के काम रखते थे ना अब रख रहे हैं। जो है कर रहे हैं। जैसे देखिए एतना ना रईस दुःख हो गया है लोगों का कि यहाँ लोग मर रहे हैं। लोगों का नौकरी जा रहा है। आ लोग कह रहे हैं कि भकेसन पर नहीं जा पाए। माने ऐसा ना लग रहा है कि जैसे लोगों का जे है से कि एक गोड़ हमेशा भेकेसने में रहता था आ जब से लॉकडाउन हो गया है एके गोड़ पर खड़ा हैं। भकेसन ना हुआ साँस लेना हो गया। जो आदमी सिवान से आगे नहीं गया ज़िंदगी में उ भी कह रहा है कि प्लान था यूरोप का। अबे रूक जाओ कुछ दिन फिर देखेंगे कि तुम रोने का कौन सा नया बहाना लाओगे। ये तो ख़त्म होगा ही।’

‘और बताओ पटना के क्या हाल हैं?’

‘अरे एकदम ठप हो गया है समझिए कि खटर-पटर-हो-हल्ला सब बंद हो गया है। एतना ना शांत कि सुड़ियल जैसा फ़ील आ जाता है बाहर निकलने पर।’

‘सड़ियल?’

‘आरे भैया, अपना र और ड़ का हिसाब थोड़ा टाइट है। माने अंग्रेज़ी वाला। क्या तो बोलते हैं उसको सरीयल कि सुरियल, सुर्रियल जो भी बोलते हैं वैसा हो गया है। उ मतलब था हमारा। सड़ेगा काहे। घबराने का कोई बात नहीं है। दु चार गो पगलेट तो हिहाँ रहबे करेगा। उतना जाहिलियत के अलावा सब ठीक है। फ़ोन वोन आ रहा है ख़ूब लोगों का आजकल। माने वट्सऐप होने से लोग फ़ोन पर बात करना थोड़ा कम कर दिए थे। अब बैठे बैठे दिमाग़ खौरा रहा है त फ़ोन घुमा दे रहे हैं लोग। आ ऐसा समय में तो आदमी बहुत कुछ सीख सकता है लेकिन आदमी सीखता थोड़े हैं। देखिए अब इसी में खैनी-बीड़ी वाला छटपटाइल रहता है। एक दु दिन बिना उसके काम चल जाएगा तो ई नहीं की उसी का आदत डाल लें। घर का कामे कर रहा है तो उसी में मन लगा के थोड़ा सीख ले। काम थोड़े कोई बुरा होता है। हम तो हर काम करते हैं। जब एतना दिन में सादगी से रहने सीख सकता है। प्रेम से रहने सीख सकता है। खान-पान-रहन-सहन लेकिन कोई सीखेगा थोड़े कुछ। बस ज्ञान ठेलवा लीजिए सब से। जैसे हम भी ठेलिए रहे हैं।’

‘हाँ वो तो है। पर देखो ठीक हो जाए तो अच्छा है। लोग तो क्या ही सीखेंगे।’

‘अरे ठीक तो होईबे करेगा भैया, उ का है कि हम लोग का पीढ़ी कुछ देखबे नहीं किया है। पहिले कैसा कैसा न महामारी होता था। अब आदमी को सालों से लगने लगा था कि जीत लिए हैं सब बेमारी-हेमारी सब के भी त इसलिए तनी ढेर लग भी रहा है। पहिले महामारी में गाँव का गाँव साफ़ हो जाता था। हम लोग का पीढ़ी देखा ही नहीं है कुछ। घबराने का बात नहीं है ओतना। लोगों में संयम भी नहीं है। बोल दीजिए की हाथ गोर तोर के बैठ दिन भर त आदमी पगला जाएगा। सबके पिछवाड़े में चक्र हो गया है, कोई स्थिर नहीं बैठ सकता है। आ उहे दिन भर काम करने को दे दीजिए त बैठने का बहाना खोजने लगेगा। टिकटोक में दिन भर निकाल देगा लेकिन फ़ायदे के लिए बैठने को कहिए त भकुआ जा रहा है पाँचे मिनट में।

‘चलो बढ़िया है स्वस्थ रहो और व्यस्त रहो तो ये तो सबसे अच्छा है’

‘अरे भैया, यहाँ तो व्यस्त रहिए जाएँगे। मनोरंजन का कमी नहीं है। बंदी में भी मुरी फूटौव्वल हो गया है कल।

‘मुरी फूटौव्वल कहाँ हो गया? पुलिस से?’

‘पुलिसवन सब तो बड़ा मज़ेदार कहानी सुनाता है आजकल लेकिन है बगले में एक ठो परिवार। कल लाठा-लाठी, फैटा-फैटी हुआ है जम के। गण सब जमा हो गया है। भाग-भाग के आ गया है सब कलकत्ता-बम्बई-सूरत से। उ का है कि दूर रहने से प्रेम बना रहता है अब सब एक साथ जमा हो गया है तो लड़बे करेगा। भायरस से मरे ना मरे ऐसे ही दु-चार ठो मर जाएगा। वैसे ठीक है मनसायन रहता है थोड़ा। छत पर खड़ा होके देखे बड़ी देर तक। अब झगड़ा छोड़ाने कौन जाए इसमें।

‘अरे ऐसे में तो ख़तरा हो जाएगा?’

‘नहीं भैया ख़तरा नहीं होगा। अमेरिका थोड़े है कि ड़ाईभोर्स रेट बढ़ जाएगा। अरे चार ठो बर्तन रहेगा त आवाज़ ऐबे करेगा। सब दूर दूर रहने लग गया है तो थोड़ा कम हो गया है नहीं तो ई सब तो सोभा है समाज का।

‘तुम भी क्या कह रहे हो। मार पीट कैसे शोभा हो सकती है?’

‘अरे भैया आप देखेंगे ओहिमें कपार फट जाता है आ उहे भाई लेके हॉस्पिटलो जाता है। आ तनी पैसा हो जाए तो दू-चार गो केसो नहीं होगा परिवार में? कोर्ट कचहरी तो शोभा है धन का। और आजकल पड़ोस में गण सब जमा हुआ है तो थोड़ा लड़ उड़ लेता है त उ लोग का मन भी हल्का रहता है। हमलोग का मनोरंजन। बरी मार-मारा है एक दूसरे को कल।’

‘अबे यार, इसमें कैसे मज़ा आ जाता है तुमको। और बाक़ी लोग सब ठीक हैं?’

‘हाँ ठीके है। सबका धीरे-धीरे सेट हो रहा है। सदालाल सिंगवा आया था कल। बरी रोया कि मन ऊबिया गया है घर में बैठे बैठे। हम उसको बोले कि तुम तो साला बरी शायरी करता था कि वक़्त ठहर जाए। लम्हा जम जाए। त अब करो रोमांस! ठहर तो गया है? अब काहे बिलबिला रहे हो? त पिनक के भाग गया। जो जेतना शायरी ठेलता है आ इंस्टा पर लभ ओफ़ लाइफ़ में  लभलभा रहा है उसका भीतर से ओतने मुरी फूट्टअव्वल है।


‘सदालाल सिंह को तुम कभी छोड़ते नहीं हो।’

‘आ नहीं भैया, उ का है कि जिसको काम है उसको हमेशा काम रहता है। जिसको नहीं रहता है उसको कभी नहीं रहता है। जिसको रोना है उ बहाना ढूँढ लेता है रोने का। आ जिनको काम नहीं है बैठ के तेरह-बाइस, लंदर-फंदर बतियाना है उसका त पेट फूलबे करेगा लॉकडाउन में। आ लोगों को अभी भी नहीं समझ आ रहा है कि दंगा के लिए कर्फ़्यू नहीं लगा है दूर-दूर रहने के लिए लगा है। मौक़ा मिलते ही गले मिलने के लिए नहीं। त खुदे भगाते उसको नहीं भागता तो।

‘और पटना में वन्य प्राणी नहीं दिख रहे? तुम्हारे घर से अब तो हनुमान मंदिर दिख जाता होगा।’

‘अरे भैया उ सब थोड़ा ढेर देखने लगे हैं लोग। माने कहने वाला कल को ये भी कह देगा कि पटना में जिराफ़ दिख गया। हम नहीं कहेंगे। माने पहिले भी जानवर सब दिखता था। अब भी दिखता है। पहिले दिखता था त कोई पूछता नहीं था अब दिखता है त विडीओ बनाता है। बंदी से थोड़ा प्रदूषण तो कम हुआ ही है लेकिन लोग भी तनी ढेर देख रहे हैं। और बाक़ी तो सब बढ़िया है। आपलोग भायरस को का कह रहे हैं? यहाँ तो लोग कह रहे हैं कि जैसे औरत सब भतार का नाम नहीं लेती है उसी तरह भायरसो का नाम नहीं लेना है। ये नहीं कहना है कि उ कहाँ से आया है। त हम कहे ठीक है कह दो कि झूमरी तिलैया से फ़रमाइस में आ गया है। नाराज़ हो जाएगा भायरस तो ...ऐजी तनिए सुनिए उ जो नया वाला भायरसजी आए हैं उन्हीं का बात कर रहे हैं, कहो। ख़ैर, ग़लत-सलत सूचना देने वाला भी बढ़ गया है अब पता नहीं ऐसा करने में लोगों को क्या मज़ा आता है। इलाज तो हर आदमी लेकर घूम रहा है। आँकड़ा, ग्राफ़, रीसर्च सब लोग के उँगलिए पर है। माने सबके हाथ में फ़ोन है आ दुनिया जहान का फ़ालतू टाइम। त का करेगा आदमी? वही कर रहा है। अब बताइए कल एक ठो मैसेज भेजा कि कपार छिलवा के कोका-कोला से नहा लेने पर भायरस मर जाता है। असली भायरस तो इसे सब है। इन सबको भी थूरने का व्यवस्था हो जाए तो ठीक रहता।’

पटना सीरीज 

~Abhishek Ojha~