May 14, 2015

ना(समझ) - II


खलल दिमाग का और (ना)समझ - 1 से आगे -


सबसे ज्यादा प्रेम

लेकिन 'सबसे ज्यादा प्रेम' तो किसी एक से ही हो सकता है न?
नहीं... प्रेम अनंतता है और अनंत कई होते हैं।
सच में?
हाँ ! न सिर्फ कई अनंत होते हैं पर कई तरह के भी होते हैं।
ओह !

मुझे नहीं समझ प्रेम  की तुलना कैसे करते हैं।
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सफल रिश्ता

एक समझदार व्यक्ति ने कहा -
आजीवन झेला
घुटते रहे
पर एक 'सफल' रिश्ता निभाया.

मुझे नहीं समझ आजीवन घुटन सफल कैसे कहा जा सकता है !
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राधा-कृष्ण

कृष्ण की कितनी पटरानियों के नाम जानते हो?
बच्चे ने तपाक से उत्तर दिया - एक तो राधा !
मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा - नहीं !
ऐसे कैसे?

मुझे नहीं समझ - बस ऐसा ही है !
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ऑनलाइन

सोचते रहते हैं वो -
कितने बजे पोस्ट करने पर
किस एंगल से फोटो लेने पर
कितने दिनों बाद पुरानी फोटो पर कॉमेंट करने पर
किसे टैग करने पर
कितने लाइक - कितने कमेन्ट.

बना रखी है जिंदगी
हसीन ऑनलाइन - फटेहाल ऑफलाइन

मुझे नहीं समझ जिंदगी जीना ज्यादा जरूरी है या दिखाना  !
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सैलरी

एक ने कहा -
नहीं यार, बहुत कम है।
अब उनकी बात न करो जो भर पेट खाना भी नहीं खाते,
आज के जमाने में पचास हजार में मुश्किल है !

दूसरे ने कहा  -
महीने का पचास हजार !?
बहुत कम लोगों को मिल पाता होगा। नहीं?

ऐसे वार्तालाप के बाद -

मुझे नहीं समझ किसी से उसकी पगार* पूछने की जरूरत ही क्या है !

*इंक्लुडिंग-उपरवार :)
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ज्ञान

अपना सारा अनुभव निचोड़ एक ने कहा -
प्रेम और 'रुख लखि आयसु अनुसरेहू' है - दांपत्य जीवन !

दूसरे ने कहा  -
धैर्य की परीक्षा !
सिर्फ झेलना और सहना है - दांपत्य जीवन।

मुझे नहीं समझ व्यक्तिगत अनुभवों को लोग शाश्वत ज्ञान कैसे मान लेते हैं  !
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बहुमूल्य-अनमोल

दिखाओ जरा हमें भी कैसी होती है इतनी महंगी कलम।
उत्सुक संतोषी जीव ने अपने सरकंडे की कलम- मिट्टी के दवात को याद करते हुए कहा -
ई सोना चानी ना नु लिखी? इहों त क-ख-वे-ग-घ-S लिखी?' *

सात समंदर पार  -
सरकंडे की कलम देख
'वॉव ! क्लासिक ! कैसे लिखते हैं इससे?'
मैंने उनके आँखों में उत्सुक-इर्श्योल्लास देखा
जो खरीद सकते हैं कोई भी कलम !

मुझे नहीं पता किसी चीज की कीमत कैसे निर्धारित करते हैं !

*ये सोना चाँदी तो  नहीं लिखेगी न? ये भी तो क-ख-ग-घ ही लिखेगी।









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प्रेम ज्ञानी

असाधारण प्रेमी -
गढ़ते रहते हैं प्यार की परिभाषा
देते हैं प्रेम पर सुंदर व्याख्यान
ग़ालिब-फैज कंठस्थ !
उन्हें पता है क्या होता है प्रेम
कैसे करते हैं रोमांस
क्या देना होता है गिफ्ट
कैसा होता हैं - रोमांटिक माहौल ।

पर वेनिस के माहौल में बैठे भी अक्सर एक दूसरे से सीधे मुंह बात नही कर पाते।

साधारण प्रेमी -
अज्ञानी
उन्हें नहीं पता प्रेम की परिभाषा
ना याद कोई प्रेम की तारीख
प्यार-रोमांस शब्द से भी अंजान।
नहीं कहते कभी - आई लव यु.

पर उनकी रोज़मर्रा की जिंदगी परिभाषा है प्रेम की - टोल्स्टोय के तीन सन्यासियों की तरह।

मुझे नहीं पता प्रेम-ज्ञानी कैसे होते हैं !
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वक़्त की  गति

वक़्त का 'पता ही नहीं चलता'
और 'बीत ही नहीं रहा'
के बीच जूझते लोगों को देख -

मुझे नहीं समझ वक़्त को किस गति से चलना चाहिए।
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संस्कार

उन्होने कहा -
हमारे तो संस्कार ही ऐसे रहे कि... पूरी आजादी।
दारू तो घर वालों के साथ भी, गाली-गलौज से भी कभी परहेज नहीं रहा ।

दूसरे ने कहा - हमारी तो आज भी हिम्मत नहीं कि...

मुझे नहीं समझ संस्कार के पहले 'कु' या 'सु' कब लगाते हैं।
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मूर्ख

आज तक
किसी मूर्ख को अपनी मूर्खता महसूस होते नहीं देखा।
शायद मैं भी किसी को वैसे ही मूर्ख लगता होऊंगा?

मुझे नहीं समझ फिर कैसे किसी को मूर्ख कह दूँ।
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उदाहरण 

उन्होने कहा -
तुम इसकी तरह नहीं,
उसकी तरह नहीं।
शर्मा जी के बेटे की तरह नहीं !*

मैंने सोचा - नए आविष्कारों और विचारकों के उदाहरण पहले से कैसे हो सकते हैं !

मुझे नहीं समझ लोग किसी में किसी और को क्यों देखना चाहते हैं !

*शर्मा जी का लौंडा
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समझ

चंद अनुभव और
हम समझ लेते हैं - "ऐसा ही होता है"
उस कुत्ते की तरह -
गाड़ी की छाँव में जिसे लगा वही गाड़ी चला रहा है।

जब हम नहीं जानते थे कि गुरुत्वाकर्षण कारण है
तब भी चीजें उसी तरीके से गिरती थी !
हम भूल जाते हैं
कि चीजों के गिरने ने हमारी समझ को जन्म दिया.
हमारी समझ उनके गिरने का कारण नहीं !

समझ ध्वस्त होती रहेगी - नए आइंस्टीनियन-ऋषि आते रहेंगे.

मुझे नहीं समझ अपनी समझ से दुनिया न चले तो खीज क्यों होती है !
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पुनश्च:

ब्लॉगिंग में और अन्यत्र भी डीस्कलेमर की बड़ी महिमा है इसलिए कहे दे रहा हूँ - "ना-तजुरबाकारी से वाइज़ की ये बाते हैं, उस रंग को क्या जाने पूछो तो कभी पी है !"

और "वादे वादे जायते तत्त्वबोध:" - रंभा-शुक संवाद 

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~Abhishek Ojha~