बात उस दिन के एक दो दिन बाद की है जिस दिन एक शोरूम के काउंटर पर बैठे लड़के ने १०% छूट देते हुए कहा था - "आपको बताना था न की बीरेंदर भईया के दोस्त हैं". वो दूकान थी बैरी के दोस्त मंटू
"आ डॉन त बाद में हुआ। हीहें एएन कालेज में आईएसी में था त अपना आपके बरका बोस समझता था। हम लोग पाहिले नाम रखे थे धनुहां बोस। उ एसे की लम्बा त हइए है आ ऊपर से इस्टाइल में तनी झुक के चलता था. आ मार पीट में सबसे आगे. भले हर झगड़ा में पीटाइये के वापस आता था. लेकिन एगो बात त है केतनो लात खाके भी कभी डरा नहीं होगा किसी से। जानते हैं भईया, फेमस त इ हो गया था आठवे क्लास में। अप्लिकेशन लिखा था अंग्रेजी में कि "डियर सर, माई फादर इस नाट फीलिंग वेल. आई वेंट टू हॉस्पिटल विथ हिम एंड आई डोंट नो इंग्लिश आफ बलतोड़" अब आपे बताइये ? आ अइसा भी नही की भोला था। भोला त छोरिये उ दर दर्जे वाला था. जान बुझ के लिखा था, हम लोग से बाजी लगा के. "
मैंने कहा - यार ! तुम्हारे भी अजब-गजब दोस्त हैं ! तुम बाजी हारने का बदला तो नहीं निकाल रहे उसकी बातें सुना के ?
बैरी ने कहा - "आरे नहीं भईया ! उ का है कि ई पटना है, आ मंटूआ तो कुछो नहीं है। हर मोहल्ला में एगो-दुगो नहीं सब का कहानी अइसने होता है. इहे मंटूआ एक बार अउर बोल दिया था - सर आप 'हिंदी एंड' काहे बोलते हैं हर क्लास का अंत में ? बोलते हिंदी में हैं आ कहते हैं हिंदी एंड !"
फिजिक्स के सर उसको थपड़िया दिए थे बोले कि एक साल से हम तुमको पढ़ा रहे हैं आ अभी तक तुमको नहीं बुझाया कि हम क्लास का अंत में कहते हैं 'इन दी एंड' कौंची पढ़ाये उसका समरी बताने के लिए कहते हैं आ तुमको हिंदी एंड सुनायी देता है ?
" वैसे कई बार ऐसे हो जाता है कुछ का कुछ सुनाई दे जाना. पर जो भी हो मजेदार कैरेक्टर है ये तुम्हारा मंटू डॉन !"
"अरे मजेदार का मत पूछिए, जब दसवा क्लास में था त मुहला का छोटा छोटा बच्चा-बुतरू सब से चंदा लगा के बॉम्बे भाग गया था।"
"फिर?"
"फिर क्या, कुछ दिन उधरे रहा एक ठो रिश्तेदार के यहाँ. फिर आ गया. वैसे पईसा का कमी तो था नहीं. त बाद में चला गया इंजीनियरिंग पर्हने औरंगाबाद। असल में तेज वहीँ जाके हुआ। पाहिले साल के बाद हिलते हुए आया। धनुहाँ त था ही एक दम डोलते हुए लौटा. माने एतना न पीता था कि का बताएं आपको . आप मानियेगा? फस्ट इयर में चिट्ठी लिख के पइसा मंगा लीया था कि पिताजी के मालूम कि प्रयोग कर रहे थे त लोग टेबल टूट गया है। अब बाबूजी को का मालूम कि लॉग टेबल कैसा होता है ! उनको लगा बेटा इंजीनियरिंग पढ़ रहा है त होता होगा कोई स्पेसल टेबुल. भेज दिए मनीआर्डर. आ उसमें भी सरत लगाया था दोस्तन सब से कि बाबूजी पैसा भेज देंगे. उनको नहीं बुझाएगा कि लोग टेबल क्या होता है. सेकेंड इयर में नया शौक लगा था इसको एक दम भोरे-भोर उठ के हाथ में दारु आ गाना बजा देता था कम्पूटर पर 'करना फकीरी-फिर क्या दिल गिरी'. आ जम के हेमा मालिनी के साथ भक्ति नाच नाचता था. साथ रहने वाला लइका सब जो न गरिआता था इसको। आ दारु के साथ बीरी पीने लगा. अब भी बीरीये पीता है सिगरेट कभी नहीं... एक बार उसके बाबूजी लतिआए त बोलता का है कि ... नानी से सीखे हैं ! उ भी त पीती थी। उहे हमको सिखायी पहिला बार। अब का बोलेगा कोई !"
"दारु, बीड़ी और फकीरी वाला गाना?"
"अरे वही तो ! जानते हैं उसके बाद वहाँ बिहारी लइकन सब का लीडर बन गया। मार-पीट किया. छुरा-चाक़ू सब. फिर वहीँ कोई नेता उता का कन्टेक्ट भी निकाल लिया था। इलेक्सन भी लड़ा कालेज में लेकिन ई एक साल का हीरोगिरी में एतना तेज हो गया कि... मेस चालू कर दिया ओहि पर इस्टूडेंट सब के लिए ... फिर भारा पर फ्लैट लेके उ भी तीन-चार स्टूडेंट का ग्रुप बना के देने लगा. लेकिन असिली कमाई किया उसके बाद. ओहि कालेज का मेनेजमेंट से मिल के ओहि कालेज में कमिसन लेके एडमिसन कराने लगा। पटना, मुज्जफरपुर, दरभंगा ई सब इलाका का बहुते लइकन सब का एडमिसन करवाया।
"यार कुछ भी कहो लेकिन मानना तो पड़ेगा, तेज तो है ! "
हाँ भैया ! आ सर तो देखबे किये होंगे आप उसका ? सब बाल उर गया है. कालेजे में चालू हो गया था झरना. कोई इसको बता दिया कि उहाँ का पानी खराब है त पूरा फाइनल इयर में बिजलेरिये से बाल धोया। लेकिन अब का कीजियेगा केतनो बिजलेरी बहाए जब जमीने बंजर है त उखारने भर का भी कुछो कैसे बचेगा?"
मंटू कथा सुनते सुनते बहुत देर हो गयी थी तो मैं चलने लगा... जाते जाते बैरी ने कहा -
"आ लीजिये सबसे बिसेस बात त आपको बतइबे नहीं किये। तेज है, बिजनेस भी बर्हिया कर रहा है लेकिन एगो बात है. आपसे बात करेगा नु त बुझइबे नहीं करेगा कि अपना दुःख रो रहा है कि बराई कर रहा है। जइसे एक ठो बेटा है उसका त कहेगा कि 'एतना न तेज आ परहाकु हो गया है कि परेसान कर दिया है, हम को ई सब पर्हायी-उराई पसंद नहीं है'.
इस्कूल में भी ओइसहीं करता था कि हम पर्हबे नईं करते हैं नहीं त पर्ह दें त हमसे जादे नंबर कोई नहीं ला सकता है । हम एक बार उसको बोले की 'तुम्हरा पिछवाड़ा में चक्कर है बे, अस्थिर बैठोगे तब न पर्ह पाओगे?' त पीनक गया था हमसे।
ओइसहीं कहेगा कि बिजनेस का का कहें एतना तो टेक्से भरना पर जाता है कि ...
अब बताइये न का बोलेगा कोई उससे ? कमाई है तबे न टेक्स भर रहा है?
इहे सब थोरा उसके धनुहा बोस वाला सब आदत नहीं गया. नहीं त है त बरी तेज. आ अइसने सब तेज तर्रार आदमी का ज़माना है. नहीं त उहे कालेज से पर्ह-लिख के इंजीनियर बन के हिहाँ बिना पैसा के भी काम करने वाला भी मिल जाएगा. बताएँगे कभी आपको. आप कुछो बोलिए नहीं रहे हैं आज !
:)
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~Abhishek Ojha~
सोसाइटी के प्रेसर का कहानी, मन्टू की जवानी।
ReplyDeletekya baat hai.........'mantu don'......ki..........but, 'barry-cool' to apne aap me be-mishal hai........gajnat post likte hain bhai........
ReplyDeletejai ho
बर्हिया लगा दउन मिंटा याने धनुआ बोस का कथा .पर्ह-लिख के आफीसर त बहुते लोग बन जाते हैं...धनुआ बोस थोरे न बन सकते हैं .
ReplyDeleteनोट कमाया है तभी न सारा बाल उर गया होगा, धनुहा बोस ने ’धनिया बो’ दिया है :)
ReplyDeleteसलिल वर्मा जी के अनूठे अंदाज़ मे आज आप सब के लिए पेश है ब्लॉग बुलेटिन की ७०० वीं बुलेटिन ... तो पढ़िये और आनंद लीजिये |
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन 700 वीं ब्लॉग-बुलेटिन और रियलिटी शो का जादू मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
इंग्लिश आफ बलतोड़ :D
ReplyDeleteमजेदार :D
ए भैवा! बेज्जोड़ करेकटर है ई धनुआ बोस.. एतना बेरि पतना गये हैं, बाकी भेंटाया नहीं कहियो... कोनो दिन भेंटा गया त धौग के गोड़ धर लेंगे कि ए बोस कहो त नोकरी छोर-छार के आ जाते हैं.. सागिर्द बना ले भैवा!!
ReplyDeleteलाजवाब! :)
ReplyDeletePatna me rehte hue bhi humko aise log nahi milte hain....aap kahan-kahan se dhundh lete hai inko....
ReplyDeleteआप कुछो बोलिए नहीं रहे हैं आज-'कल'... ! :):)
ReplyDeleteजरुर बोलेंगे मालिक, काहे नहीं बोलेंगे :)
Deleteअब मंटू जी के आगे क्या बोले कोई बोले तो बस भेरी कूल।
ReplyDeleteका बात है बहुत ही बढ़िया लिखे रहे आप इ कहानी...:)
ReplyDeletewaah
ReplyDeleteये बोली सुने युग बीत गये थे ,आज फिर वही आनन्द आ गया -ऐसे मज़ेदार चरित्रों के
ReplyDeleteएकाधनमूने हमने भी देखे हैं .बहुत अच्छा लगा !
मन्टू , मस्त करेक्टर उठाये हैं
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