…सच था मगर, कितना था सच ये किसको पता.
ये गाना तो आपने भी सुना ही होगा? कुछ गानों के बस कुछ खास शब्द ही याद रह जाते हैं. फिर वो गाना हमारे लिए वहीँ से शुरू होता है और वहीँ खत्म ! जैसे कोई कहानी-कविता-उपन्यास पढ़ने के बाद केवल कुछ पंक्तियाँ ही याद रह जाती है. कुछ वाक्यों का शब्द विन्यास दिल को छूते हुए दिमाग के किसी कोने में जा बसता है. ये पंक्ति भी मेरे लिए कुछ ऐसी ही है. अक्सर ये दिमाग के किसी कोने में रिवाइंड हो जाती है.
सुना तो अक्सर सच नहीं ही होता है देखा भी हमेशा सच हो जरूरी नहीं होता. वैसे आँखों का क्या दोष ! सच-झूठ का वर्गीकरण तो दिमाग को करना होता है. और इस चक्कर में अक्सर बात क्या से क्या हो जाती है और फिर नए रूप में उसमें वर्षों के विश्वास को पल भर में तहस-नहस कर देने की गजब की क्षमता आ जाती है. हम इंसानों को भगवान ने एक प्रतिभा खुले हाथों से बांटी है और वो है किसी की बात सुनकर किसी अन्य को सुनाने से पहले उसमें मिर्च-मसाला मिलाकर बात को परिवर्तित कर देने की कला. कुछ यूँ कि हाइड्रोजन और ऑक्सिजन से मिलकर बनी निर्मल जल की तरह की बात में भी चट से कार्बन, नाईट्रोजन का तड़का लगा के आरडीएक्स तैयार ! और फिर दे मारा धीरे से… बूम… !
आधे-अधूरे सच या झूठ से बनते-बिगडते रिश्ते देखे हैं मैंने. जब आप किसी बात की उत्पति से लेकर उसके बतंगड बन जाने तक हर मोड पर साथ होते हैं तो पता चलता है कि कितनी क्षमता होती है इस प्रक्रिया पूरे में. गजब की ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया होती है.
[एक अनावश्यक चेतावनी: आगे बात का बतंगड होने की संभावना है ]
अब क्या करें… बात जब निकली थी तब तो प्राकृतिक लौह अयस्क थी लेकिन उन तक पंहुचते-पंहुचते कब और कैसे परिष्कृत होकर गोली बन गयी पता ही नहीं चला. सुना है पहले लोग अखबार में विज्ञापन देख जब वीपीपी से सामान मंगवाते थे तब अक्सर खोलने पर भूसा निकल आता था ! बातों के बदलते स्वरुप देख मुझे तो भरोसा हो चला है कि भेजने वाले सही सामान ही भेजते होंगे. इतने हाथों में इधर-उधर होते हुए लोगों के अनुमान और बातें ही उसे भूसे में परिवर्तित कर देती होंगी. अब मैंने गिफ्ट भेजा वो नाराज हो गयीं कि मैंने भूसा भेज दिया. अब उन्हें मुझपर भरोसा ही नहीं तो मैं क्या करूँ. एक मैं हूँ कि वो सच में भूसा भी भेज दें तो मैं हीरा मान लूं… विषयान्तर? ओके. बैक टू भूसा… सॉरी ‘बात’.
हाँ तो बात जब मेरे यहाँ से चली तब तो एक सरल हल होने वाले समीकरण जैसी थी. सिंपल ! वास्तविक हल थे ! इतना ईजी की पांचवे दर्जे का बच्चा भी हल कर ले… लेकिन उसमें किसी ने कुछ जोड़ दिया. और उन तक पंहुचते-पंहुचते अब उसका हल कॉम्प्लेक्स हो गया है. उसमें एक तो लोगों के जोड़े काल्पनिक हिस्सा आ गया है और जो वास्तविक वाला हिस्सा भी उन्हें दिख रहा है वो भी तो वो नहीं जो मैंने कहा था. लेकिन उन्हें एक तो गणित से मतलब नहीं ऊपर से जो सीधे-सीधे हल दिख रहा है उससे आगे वो क्यों सोचें? ! ये ससुर गणित भी न… कहाँ से उदहारण ले आया मैं ! पर ये उदाहरण है बड़ा सटीक.
तो दरअसल हुआ कुछ यूँ कि बात जब मेरे यहाँ से चली तो इलेक्ट्रोन की तरह थी. लेकिन लोगों ने उसके लिए मैग्नेटिक फिल्ड की तरह काम किया. ओह ! ये उदहारण भी…
ऐसे समझते हैं - बातें सदिश राशि की तरह होती हैं. एक ही बात अगर मैं किसी से सीधे कहूँ और वही बात कहीं से घूम कर आयें तो दोनों का मतलब अलग-अलग होता है. दूरी और विस्थापन की तरह? …ये भी सही उदहारण नहीं है.
वैसे उदहारण की जरुरत नहीं है. सीधी सी बात है…
‘तुमने जो देखा-सुना सच था मगर, कितना था सच ये किसको पता.’
… वैसे गलती उनकी भी नहीं है उन तक जो पंहुचा वही तो सुना उन्होंने. बस भरोसे का सीमेंट कहीं कम पड़ गया शायद.
खैर… मुझे तो लगता है कि भरोसा कुछ ऐसा होना चाहिए कि ‘वो’ धक्का भी दें तो भी यकीं नहीं होना चाहिए कि ‘वो’ ही धक्का दे रहे हैं !
जो मैं कहना चाहता था समझ में आया? नहीं ? बातें होती ही ऐसी हैं. जिस फोर्मैट में कहना चाहो उस फोर्मैट में नहीं निकलती है !
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सोच रहा हूँ कि इसे किसी विदेशी कवि की कविता के अनुवाद वाले फोर्मैट में लिख देता तो हिट हो जाता. नहीं? आजकल बहुत चलन में है…
~Abhishek Ojha~
इस पोस्ट में आये शब्द: १. आरडीएक्स २. ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया (exothermic reaction) ३. लौह अयस्क (iron ore) ४. कॉम्प्लेक्स हल (complex solution) ५. मैग्नेटिक फिल्ड में इलेक्ट्रोन ६. सदिश (vector). और ७. भूसा तो सबको मालूम ही है.
0. नो कमेंट्स
ReplyDelete1. बहुत सुन्दर पोस्ट। तुम्हारी ताज़ा पोस्ट्स गणित की वास्तुनिष्ठता से हिलकर (शिफ़्ट होकर) साहित्य के सौन्दर्य की ओर बढती जा रही हैं। रोचक परिवर्तन है।
2. गीत तो अपना प्रिय है - आद्योपांत याद है, नीन्द में भी गा सकते हैं - किशोर कुमार भी नहीं पहचान सकेंगे कि इमिटेशन है।
3. ये ससुर गणित भी - गणित श्वसुर तो इक्वेशन?
4. सच-झूठ का वर्गीकरण - दिमाग सच बोलने के लिये भी कभी-कभी झूठ बोलता है,मैंने एक बार Cognitive dissonance का ज़िक्र यहाँ किया था|
5. ज़िन्दगी तेरे हैं दो (सौ) रूप ...
तुम्हारी पोस्ट से एक बात (बल्कि दो बातें) याद आयीं (शायद रिलेटिड शायद - न मानो तो बहता पानी)। कितनी अजीब सी बात है कि ज्ञानी लोग बिना हल किये प्रश्नों के साथ आराम से सो सकते हैं जबकि सामान्यबुद्धि को शांति के लिये हल पाना ही होता है (भले ही वह हल असत्य हो)
ReplyDeleteदो बातें हो गयीं? क्या कहा एक ही हुई? दूसरी बात यह याद आयी कि अनंत के बारे में अध्ययन करने वाले कई (शुरूआती/पश्चिमी) गणितज्ञ पगला गये थे जबकि सामान्यबुद्धि वाले कितने लोगों के लिये पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते एकदम सामान्य बात है।
6. जो इमारत पहली बरसात में ढहने वाली हो वहाँ की घास को डिस्टर्ब न करना ही बेहतर है।
[कुछ ज़्यादा कह दिया हो तो ... प्लीज़ इग्नोर]
बाबा रे!
ReplyDeleteक्या सोलिड व्याख्या है गीत की एक पंक्ति की...हमारा दिल तो आखिरी ट्रांसलेशन पर आ गया. ऐसे तोडू शब्द कि किसी का भी दिमाग घूम जाए.
सुबह सुबह ऐसे मस्त पोस्ट...कहते हैं सुबह खुल कर हँसना सेहत के लिए अच्छा होता है...हवा में ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है...वही जो हाइड्रोजन के चक्कर में न पड़ी हो अबतक.
वैसे इस थ्योरी को mass communication में चायनीज व्हिस्पर कहते हैं. पर क्लास में जब पढ़ा था इतना दिलचस्प कभी नहीं लगा था.
तुमने जो देखा-सुना.... हमने जो पढ़ा...उस पर महाग्रंथ लिखा जा सकता है....फोर्मेट समझो तो बहुत कुछ गया न समझो तो .....!
ReplyDeleteAbsolutely true..
ReplyDeleteSometimes the some lines and phrases catch your heart u feel like reading them and repeating them again and again.
Nice read though !!
भूसे को भूसा ही समझें. टेक्नोलॉजी का सहयोग लें. आपके लिए सहायता यहाँ उपलब्ध है -
ReplyDeletehttp://bit.ly/lie-detector
बाकी सब तो ठीक है जी, लेकिन ये 'भूसा' क्या होता है जी ?
ReplyDelete"ਮੇਰਾ ਸੋ ਜਾਵੇ ਨਹੀਂ,
ReplyDeleteਜਾਵੇ ਸੋ ਨਹੀਂ ਮੋਰ" (एक ट्रक के पिछवाड़े से आभार)
इन पंक्तियों का सरलार्थ भावार्थ तलाश तो कर ही लोगे, इसीलिये ज्यूँ की त्यूँ लिख मारी हैं।
सॉरी आभार को साभार पढ़ें।
ReplyDeleteइस फार्मेट में भी कम रोचक नहीं.
ReplyDeleteगज़ब का बतंगड़ है! :)
ReplyDeleteहिट तो वैसे भी है जैसे आपने लिख दिया है, जबर-रोचक (इस शब्द की validity नहीं है फिर भी इस्तेमाल कर रहा हूँ)!!
वैसे लिखिए कभी उस फॉर्मेट में भी।
यही प्रायिकता तो जीवन में गजब छिटकी है, हर विषय में कितना है सच, यह किसको पता?
ReplyDelete@सोच रहा हूँ कि इसे किसी विदेशी कवि की कविता के अनुवाद वाले फोर्मैट में लिख देता तो हिट हो जाता. नहीं? आजकल बहुत चलन में है… Smile
ReplyDeleteयही सही है,आभार.
@अनुरागजी:
ReplyDelete- धन्यवाद.
- फिर तो आपकी आवाज में ये गीत पॉडकास्ट होना चाहिए.
- गणित श्वसुर तो इक्वेशन :)
- अनंत को लेकर पगलाने वाली बात बहुत सही की आपने. अंत में वहीँ पँहुचे... पूर्व और पश्चिम के दर्शन की सोच में फर्क का भी ये बहुत अच्छा उदाहरण लगता है मुझे.
- ज्यादा जैसी कोई चीज दिखी नहीं.
@पूजा: शुक्रिया. ऐसी भी कोई विधा होती है?. मैं तो इसे विशुद्ध 'बकवास' ही टैग करता आया हूँ :)
@मीनाक्षीजी, ज्योति: धन्यवाद.
@रविजी: :) सहायता के लिए धन्यवाद.
ReplyDelete@आशीषजी: वही जो दिमाग में भर जाए तो ऐसी पोस्ट निकल आती है :)
@संजयजी: तलाश पूरी हो यी और इस पर फाइनल रपट भारत से चल चुकी है.
@राहुलजी: धन्यवाद.
@अविनाशजी: अरे कविवर. बहुत valid शब्द है ये तो :)
@प्रवीणजी, मनोजजी: धन्यवाद.
अच्छी पोस्ट है. कुछ बातें तो बहुत गहरे मन में उतर गयीं .
ReplyDelete१--तुमने जो देखा-सुना सच था मगर, कितना था सच ये किसको पता.’
२-और फिर नए रूप में उसमें वर्षों के विश्वास को पल भर में तहस-नहस कर देने की गजब की क्षमता आ जाती है.
३-वो सच में भूसा भी भेज दें तो मैं हीरा मान लूं
४-बस भरोसे का सीमेंट कहीं कम पड़ गया शायद. भरोसा कुछ ऐसा होना चाहिए कि ‘वो’ धक्का भी दें तो भी यकीं नहीं होना चाहिए कि ‘वो’ ही धक्का दे रहे हैं
इन दिनों रोमांटिक हो रहे हो...एक बेचुलर से हम शीर्षक देख कुछ ओर पढने की सोच आये थे यहाँ अयस्क ओर तुम्हारा गणित प्रेम भी दिलचस्प लगा.....खुदा तीनो बरकरार रखे .....तीनो ? शायद तीसरा भी आने वाला हो
ReplyDeleteगणित और गपाश्टक का अच्छा घालमेल किया है ! :)
ReplyDeleteमुग्ध कर लिया इस रोचक विवेचना ने....
ReplyDeleteवाह..बस वाह...एक एक लाइन पर वाह...
क्या लिखते हो दोस्त, बाल की खाल निकाल दी,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी । सच में झूट की मिलावट हो जायेगी । प्राकृतिक अयस्क की 303 गोली बन जायेगी ।
ReplyDeleteजबरदस्त पोस्ट ।
गणित से रोमांस और सौंदर्य की और जा रहे हो भतीजे? लगता है हमारे लड्डू खाने का मुहुर्त निकट आगया है? कब आना है? इंतजार कर रहे हैं.:)
ReplyDeleteरामराम.
@गौरवजी, अरविन्दजी, रंजनादी, विवेक, आशाजी: धन्यवाद.
ReplyDelete@डॉकसाब: कुछ नहीं :)
@ताऊ: बड़े दिनों बाद आये आप. हम भी आते हैं जल्दी ही :)
"देखा-सुना, पढ़ा-समझा -
ReplyDeleteकितना सच क्या पता!"
शुभकामनाएं.
भरोसे के सीमेंट में तजुर्बे का पानी मिले तब जाकर मजबूती आती है...
ReplyDeleteवैसे इस बार भी विषयांतर ने काफी देर तक रोक लिया...
majedar vivechan...
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