…‘४.३० बजे मैडिसन पार्क… नंगे के पास मिलते हैं.’
४.२५ पर पार्क पंहुच कर देखता हूँ… नंगा ही गायब है ! पार्क के बीच में और दूसरी तरफ भी जाकर देखता हूँ यहाँ से भी नंगे गायब हैं. ऊपर की तरफ देखता हूँ तो हर ईमारत से भी नंगे गायब हैं. मेरी ही तरह कुछ और लोगों की निगाहें भी नंगों को ढूंढती सी दिख रही है. लेकिन कोई किसी से कुछ पूछ नहीं रहा. लोग एक बार वहाँ देखते हैं जहाँ नंगा खड़ा रहता था फिर ऊपर नजर उठाते हैं जहाँ गगनचुम्बी इमारतों की छत के बिलकुल किनारे पर नंगे खड़े दिखते थे फिर लोग आगे बढ़ जाते हैं… एक साथ सारे नंगे गायब !
जब से यहाँ आया हूँ ऑफिस आते-जाते नंगा मुझे रोज दीखता रहा है. बड़े अजीब ख्याल आते नंगों को देखकर. पर हमेशा चहरे पर मुस्कान आ ही जाती थी. मैं ही क्यों अक्सर नंगे के पास से गुजरने वाले सभी लोगों के चेहरे पर मुस्कान होती. लोग अजीबो-गरीब मुद्राएं बना कर नंगे के साथ फोटो खिचवाते और कुछ लड़कियों की फोटो खिचवाने की मुद्रा देखकर तो कई बार लगता कि काश नंगे सी किस्मत अपनी भी होती. उस समय यह ख्याल नहीं रहता कि नंगा हो चौराहे पर खड़ा है वो ! पर इसमें मेरी गलती क्या है इंसान हूँ औरों के सुख दीख ही जाते हैं… भले ही वो नंगे क्यों ना हो. एक दिन सुबह-सुबह पांच बजे ऑफिस जाना हुआ… अँधेरे में खड़-बड सुन नजर उठाई तो दिखा कि बड़ी तन्मयता से तिपाई पर कैमरा लगाए एक सज्जन नंगे की फोटो खींचने के लिए खड़े हैं. शायद सही मोमेंट के इंतज़ार में. ऐसे काम के लिए इतनी सुबह… और नंगा चुप खड़ा… मैं फिर मुस्कुराता निकल गया था.
`ये देश भी रंग-रंगीला परजातंतर ही है’ नंगे के साथ किसी को खुराफात करते देख मेरे दिमाग में आया था और मैं फिर मुस्कुराता हुआ निकल गया था.
एक दिन दिमाग में आया जैसे नंगा कह रहा हो अरे रुको देखते जाओ तुम भी मेरी ही तरह हो क्यों शर्माते हो? ऊँचाई पर खड़ा नंगा जैसे कह रहा हो ‘तुम सब नंगे हो तुम्हारी नंगई देख मैंने अपने कपडे फ़ेंक दिए. इतनी ऊंचाई से सब दीखता है रे…’ सिग्नल हरा हुआ तो मुझे लगा कि सब लोग नंगे कि ये बात सुनकर भाग रहे हैं. और मैं फिर मुस्कुराता हुआ निकल गया.
एक दिन ‘बसन हीन नहिं सोह सुरारी, सब भूषन भूषित बर नारी’ याद आया तुलसी बाबा मिलते तो पूछता ‘बाबा यहाँ तो नर है इसके बारे में क्या?’. शायद बाबा कहते ‘बच्चा नर कभी नहीं सोहता नंगा हो या सूट में’. मुझे लगा जैसे नंगा मेरे सूट पर हँस रहा हो और मैं फिर मुस्कुराता हुआ निकल गया.
१५ अगस्त के दिन हुए समारोह में किसी ने नंगे को काला पोलिथिन पहना दिया था. उस दिन ऊपर नजर उठाई तो जैसे छत पर खड़ा नंगा कह रहा हो… ‘कहाँ-कहाँ ढकते चलोगे? मैं तो हर जगह हूँ. मुझे ना देखना हो तो आँखें बंद कर लो… और तुम नंगों पहले ये बताओ पन्द्रह अगस्त के लिए आये हो या प्रीति जिंटा को देखने? इस हमाम में सभी नंगे हैं बेटा!’ … हम्म अबे सभी नहीं ‘लगभग’ सभी. वहाँ मौजूद लगभग सभी लोगों की तरह मैं भी अपने आपको अपने बनाए ‘लगभग’ सभी वाले समूह से बाहर कर लेता हूँ. और ये सोचते हुए… मैं एक बार फिर मुस्कुराता हुआ निकल गया.
‘नंगे के पास बुलाया था तुमने, वो तो है ही नहीं?’ जिनसे मिलने गया था उनकी आवाज सुन मैं नंगों से जुडी सोच की दुनिया से वापस लौट आया. ‘हाँ सभी गायब हैं !'. फिर पता चला कुल ३१ नंगे थे. अब ब्लोगरी और मॉडर्न आर्ट पर क्यों और कैसे जैसे सवाल मैं नहीं उठाता तो उन नंगों के होने पर मैंने कभी दिमाग नहीं लगाया. वो किसलिए हैं इनका क्या मतलब है… वैसे सारे नंगे एक से ही थे. दूर से थोड़े अलग दिखते पर पास आने पर पता चलता कि ये भी हूबहू वैसा ही है. सभी एक से… खैर नंगों पर ना सोचते हुए भी सोचना पड़ता था. और कुछ नहीं तो आते-जाते मुस्कुराने का एक बहाना देते थे [ब्लोगरों की तरह ;)]. अब नंगे नहीं हैं तो आते-जाते याद तो आयेंगे ही !
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१. नंगे एंटनी गोर्मली के आर्ट थे. जिनके बारे में जानकारी यहाँ मिल जायेगी. अब देखिये इसी साईट से ली गयी इस फोटो में किसी ने एक नंगे को अपना कुत्ता पकड़ा दिया है.
२. प्रीति जिंटा को देख हमें महसूस हुआ कि घंटो मुस्कुराया जा सकता है… बिना थके. और मैं यहीं सोच कर मुस्कुराता घर लौट गया.
३. प्रीति जिंटा पर और कुछ नहीं… किसी ने भीड़ में से कहा… ‘अबे बहुत खबसूरत है बे!’. … वैसे खबसूरत का शाब्दिक अर्थ बताएगा कोई?
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~Abhishek Ojha~
और तुम नंगों पहले ये बताओ पन्द्रह अगस्त के लिए आये हो या प्रीति जिंटा को देखने?
ReplyDeleteबिल्कुल जायज प्रश्न है.
नंगई भी एक कला है और इस कलाकारी को दिखाने के नाम पर अजब-गजब नंगई चलती है, चलती रहेगी :)
ReplyDeleteफिलहाल तो पोस्ट राप्चिकाना हो उठी है, एकदम मस्त।
जीवन तात्कालिक हो गया है भाई.....पर रूह के लिबास में कई छेद है ....उसके दर्जी परमानेंट हड़ताल पर है
ReplyDeleteगायब नहीं हुए, दिल्ली में हैं आजकल. सुना है अपना वेतन बढ़ाने के लिये चिल्ला-चोट मचाए हैं.
ReplyDeleteबढिया पोस्ट .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteहम तो दोनों को देख के खुश हो गये। नंगा और मुस्कान! गजब है।
ReplyDeleteनंगे से तो कुदा भी घबराता है।
ReplyDeleteभाई नंगों के पूरे नौ के नौ ग्रह बलवान होते हैं और आजकल चारों तरफ़ पाये जाने लगे हैं.
ReplyDeleteखूबसूरती का मतलब? यानि आप क्यों पूछना चाहते हैं? ये मेरा प्रतिप्रश्न है...कहीं कुछ.....????:)
रामराम
अब हिन्दुस्तानी के लिए क्या नंगा क्या चंगा जो अपने देश में २२ -२५ नहीं हजारों नागा नंगों और गैर नागा नंगई करते लोगों और जैनियों के विशाल मूर्तियाँ देखी हों ....
ReplyDeleteजो खूबसूरत हो मूर्तियाँ तो उसी की बनेगी न ...नारियों में वह मूर्तिमान सुन्दरता कहाँ ?
@ताऊ रामपुरिया: शब्दों पर ध्यान दें खुबसूरत नहीं 'खब'सूरत :)
ReplyDelete@ अभिषेक ओझा
ReplyDelete‘अबे बहुत खबसूरत है बे!’ बुढापे में जरा नजर कमजोर हो गई है.:) आप ध्यान ना दिलाते तो इस खबसूरती शब्द का वाकई आनंद नही ले पाता.
बहुत शुक्रिया जी.
रामराम
आप को राखी की बधाई और शुभ कामनाएं.
ReplyDeleteहमारे यहां जुन से सितम्बर तक आओ, जिद दिन खुब गर्मी पडे गी उस दिन नंगे ओर नंगियो के बीच छॊड आऊंगा, क्योकि वहां कपडे वाले का जाना सख्त मना है:)
:))
ReplyDeleteचित्र अच्छे हैं.
ReplyDelete‘कहाँ-कहाँ ढकते चलोगे? मैं तो हर जगह हूँ. मुझे ना देखना हो तो आँखें बंद कर लो…
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट ।
नग्नता कलात्मक हो तो कई संदेश देती है.
ReplyDeleteहम तो यही कहेंगे....ओझा साहब....किसी से भी सीखिए( प्रीटी ज़िंटा हों तो फिर कहने ही क्या...) मुस्कुराना फिर भी उतना आसान नहीं है ........
ReplyDelete@हम्म अबे सभी नहीं ‘लगभग’ सभी. वहाँ मौजूद लगभग सभी लोगों की तरह मैं भी अपने आपको अपने बनाए ‘लगभग’ सभी वाले समूह से बाहर कर लेता हूँ.
ReplyDeleteगणितज्ञ कोई न कोई प्रमेय ढूँढ़ ही लेता है।
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प्रीति जिंटा को देख हमें महसूस हुआ कि घंटो मुस्कुराया जा सकता है… बिना थके.
कमाल है! मुझे भी ऐसा ही लगता है लेकिन कह नहीं पाता। ग़जब हो भाई।
उत्तम साहित्य की कसौटी है कि जन से जुड़े और आनन्द दे। हम जैसे जन के लिए ऐसे लेख आह्लादकारी हैं। बारीक ह्यूमर बयाँ करना सबके वश का नहीं।
आभार गुरु!
अरे, ये कुत्ता भी नंगा है!!
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