प्रिय ! मैं तेरा पथ पा न सका
दुनिया की पीड़ा से व्याकुल,
जब रात सिसकती जाती है ।
मृदु अधरों पर मुस्कान लिये,
ऊषा आकर बहलाती है ।
पलकों के प्याले छलक रहे,
पर दिल की प्यास बुझा न सका,
प्रिय ! मैं तेरा पथ पा न सका ॥
कलियों की मूक व्यथा को देखकर,
रवि निज कर से सहलाता है ।
मधुकर निज मधुर तरानों से,
निज प्रणय ज्ञान लहराता है ।
अपनी इन मूक व्यथाओं से,
तेरे मन को अपना न सका,
प्रिय ! मैं तेरा पथ पा न सका ॥
चातक* की विकल पुकारों को,
सुन घनश्याम उमड़ आते ।
देख मयूर निज मस्ती में,
अपना नर्तक दिखला जाते ।
पीड़ाओं से व्याकुल होकर,
तुमसे निज मन बहला न सका,
प्रिय ! मैं तेरा पथ पा न सका ॥ ~
*A mythical bird, drinks only the raindrops of Swati nakshatra before they touch the ground.
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