बीरेंदर एक दिन अपने बागान के अमरूद लेकर आया था। मैंने खाते हुए कहा - 'बीरेंदर, अमरूद तो मुझे बहुत पसंद है। इतना कि मैं रेजिस्ट नहीं कर पाता। पर ऐसे नहीं थोड़े कच्चे वाले'। बीरेंदर को ये बात याद रही और अगले दिन हमारे ऑफिस में उसने वैसे अमरूद भिजवाया भी। फिर एक दिन शाम को बोला 'चलिये भईया, आज आपको बर्हीया वाला अमडूद खिला के लाते हैं। टाइम है १०-१५ मिनट?'
मैं कब मना करता! वैसे भी मूड थोड़ा डाउन था। एक स्कीम पर काम करते हुए मैंने उसी दिन लिखा था - "आज मैंने एक रिक्शे वाले से बात की। उसने बताया कि उनका बिजनेस पहले की तरह नहीं रहा। शाम तक उसने सात ट्रिप कर लगभग सौ रुपये कमाए थे। उसमें से चालीस रुपये एक दिन के रिक्शे का किराया । बीवी बच्चो और बाकी के खर्चे छोड़ भी दें तो साठ रुपये में भी क्या वो इतनी कैलोरी खरीद सकता है कि सात ट्रिप कर सके ?" मैंने ये बात बीरेंदर को बताई तो बोला 'भईया, ई सब भारी भरकम बात मत किया कीजिये। आपको लगता है उहे सबसे सबसे बरका गरीब था देस का त... छोरिए ई सब... चलिये'।
हम एसपी वर्मा रोड तक चल कर गए। वहाँ बीरेंदर ने एक नौजवान भुट्टे वाले को दिखाया - 'जानते हैं भईया, ई राजेसवा इंजीनियर के सार है। अइसा काम कर देगा कि बरका बरका ओवरसियर, इंजीनियर नहीं कर पाएगा। मारिए गोली अमडूद के चलिये आज भुट्टे खा लेते हैं। अमडूद हम मांगा देंगे किसी को भेज के'। हम राजेश के ठेले के पास रुक गए।
'का हो इंजीनियर साहेब? कईसा धंधा चल रहा है? दुगो बर्हीया वाला तनी छांट के भूनिए त।'
राजेश शर्मिला सा जवान था। लगभग नहीं बोलने वाला। बैरी ने आगे कहा - 'केतना बोले तुमको की मेरे लिए भी एक ठो पंखा बना दो लेकिन तुम नहीये बना पाये। '
'अरे बीरेंदर भईया समनवे नहीं नू मिल पा रहा है त कइसे बना दे'
'कौंची नहीं मिल पा रहा है तुमको हम सब बुझ रहे हैं।' राजेश बस मुस्कुरा दिया। मेरे ध्यान राजेश के सेटअप पर गया। पूरी तरह से अस्थायी। ठेला नहीं था कुछ लकड़ी लोहे को जोड़कर बनाया गया एक बेस और उस पर
पेंट के डब्बे को काट कर बनाया गया कोयले का चूल्हा। पर इससे कहीं अधिक रोचक था हरे प्लास्टिक के एक स्टूल पर रखा हुआ बैटरी से चल रहा प्लास्टिक की पत्तियों वाला पंखा। मैंने कहा - 'पंखा तो बड़ा शानदार है राजेश का? कहाँ से लिए?"
'अरे एही पंखवा का त बात हम तबसे कर रहे हैं... इंजीनियर साहेब अइसही थोरे न कहलाता है राजेस। अभी भुट्टा का सीजन है... नहीं त इंजीनियर साहेब कंप्यूटर ठीक करने का ही काम करते हैं'
मुझे लगा बीरेंदर उसकी खिंचाई कर रहा है। पर वो आगे बोला.. 'प्लास्टिक के दो डब्बा जोड़कर फिल्टर भी बनाते हैं, हम कहे की भले सौ रुपया ले लो लेकिन एक ठो हमारे लिए भी बना दो। लेकिन अब इंजीनियर साहेब कह दिये हैं त हमरा काम काहे करेगा? सही बोले कि नहीं?
राजेश मुसकुराते हुए बोला - 'बात पईसा के नहीं है। बना देंगे... पहिले डिब्बावा त जुगारिए"
मैंने पूछा - 'कैसे बनाए हो ये पंखा? बहुत शानदार आइटम है। बताओ मुझे भी'
राजेश बोला -- 'सब लपटोपे आ कम्पुटर का समान है इसमें। एक्को पईसा नहीं लगा है इसमें। कुछ इस दोकान से कुछ उस दोकान से पुरान-धुरान बेकार समान सब ज़ोर जार के वैल्डिंग-सोल्डिंग कर के बना लिए... बहुते सिंपल है।'
राजेश ने मुसकुराते हुए थोड़े गर्व से कहा - 'चारजर भी बनाए हैं एक ठो'
राजेश ने मुझे समझाते हुए डायोड, यूपीएस और मदर बोर्ड जैसे शब्द बोले तो मुझे भरोसा हो गया कि सच में वो 'इंजीनियर साहेब' है। मैंने कहा "तुम तो सच में इंजीनियर हो !"
राजेश ने भुट्टा सेंकते हुए कहा - 'हम त कामे इहे करते हैं। इंजीनियर सब त बेकार हो जाता है। इंजीनियरे बन गया त उ काम काहे करेगा?' बाद में पता चला राजेश पास की दुकानों में कंप्यूटर रिपेयरिंग का काम करता है।
चलते चलते बैरीकूल ने कहा - 'हमसे भी छौ-छौ रुपया के हिसाब से लोगे? लो धरो दस रुपया आ काम कर दो हमारा थोड़ा टाइम निकाल के....'
लौटते हुए बीरेंदर ने कहा 'भईया, हर सीजन में अलग काम करता है ई। जिसमें कमाई दिखेगा कर लेगा। एक नंबर का जुगारु है। देखिये केतना सुंदर सिस्टम बना दिया है। शाम को चूल्हा इहे छोर देगा आ बाकी झाम एगो झोरा में भर के घरे लेले जाएगा। इसका भुट्टा से जादे तो हम इसका अलंजर-पलंजर देखने आते हैं। कुछ अइसा हो तो देखिये के मन हरियारा जाता है। जैसे आपका उ पानी का बोतल नहीं है बटन दबाने से 'पक' से खुलता है। उ टेबल पर रहे त नहियों प्यास लगे त दुई घूंट पी लेने का मन करेगा।'
मैंने बैरी को पानी का बोतल देना चाहा तो उसने नहीं लिया बोला जाते समय दे दीजिएगा.... और जाते आते समय... ध्यान न रहा। अब भी जब 'पक' से खुलता है... हम दुई घूंट पानी पी लेते हैं ।
इस पोस्ट को बहुत पहले आना चाहिए था पर...
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~Abhishek Ojha~
ई बिरेंदर आपको और साथ में हमको इस दुनियां के अंदरुनी सच, लोग सबको उजागर जा रहा है बिहर्वै में बैठे बैठे
ReplyDeleteस्थानीय तकनीक बहुतै दमदार है..
ReplyDeleteदेखिये मालिक, मुद्दे की बात ये है जो पोस्ट के बाद ये "पर...." लगाया है ये हम बहुत बारीकी से समझते हैं | ये सब मत लगाइए और धकाधक पटना सीरीज चलने दीजिए :) :) :)
ReplyDeleteहमेशा की तरह मारू पोस्ट है !!!!! :) :) :)
वाह! हमारी विश-लिस्ट में राजेश इंजीनियर से मिलना भी शामिल हो गया!
ReplyDeleteबहुत बर्हिया लगा इंजीनियर साहब से मिलकर।
ReplyDeleteऐसे बहुत सारे इंजीनियर हैं, बस उनको प्लेटफ़ॉर्म मिलना चाहिये ।
ReplyDeleteबहुत बढियां । .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (22.07.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी. कृपया पधारें .
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अमर क्रांतिकारी स्व॰ श्री बटुकेश्वर दत्त जी की 48 वीं पुण्य तिथि पर विशेष - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteइतने दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आई ओर वैरीकूल और भुट्टेवाले राजेश इंजीनियर से मिल कर मज़ा आया
ReplyDeleteसमय पर सपोर्ट न मिली तो इतना मेधावी युवा यही छुटपुट काम में उम्र गुजार देगा, कुछ जुगाड़ बैठाना था न अभिषेक भाई।
ReplyDeleteओह ! बात तो सही है। पर उस समय ऐसे ऐसे प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा था कि सच कहूं तो राजेश मुझे उस समाज का रोल मॉडल लगा था।
Deleteइंजीनियर साहब तो काफ़ी इंटरेस्टिंग लगे.
ReplyDeleteरामराम.
- 'हम त कामे इहे करते हैं। इंजीनियर सब त बेकार हो जाता है। इंजीनियरे बन गया त उ काम काहे करेगा?' ..
ReplyDelete..सच पढ़ा ये जाता है कोई काम छोटा नहीं होता लेकिन पढने के बाद कितने याद रखते है यह बात ...
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ...
ABHISHEK BABU HAMARA BHI DIMAG PAK SE KHUL GAYA
ReplyDeletePRANAM SAHIT SUPRABHAT AGALI KADI KA BESABARI SE intazaar**********+
इस बार भी आपकी पोस्ट Inext मे पढ़ा । पटना सीरीज की ये कड़ी भी बेजोड़ है ।
ReplyDeleteइंजीनियरे बन गया त उ काम काहे करेगा? - ज्ञान की बात!
ReplyDeleteये एनक वाला चित्र देखकर लगा जैसे कोई और ब्लॉग पर आ गए
ReplyDelete:)
Deleteबढ़िया है जी
ReplyDeleteहमको नेशनल तैराक टी स्टाल याद आ गया पटना वाला....
ReplyDeleteBich bich main achanke dimag main aa jata tha ki Abhishek jee Patna wala serieswa discintinu kar dihe hain. Du tin deen se ghar main khali baithal the to samay katay khatir intarnet mai matha lagay rahe the achnke Ojha uwacha khul gaya aur ghaskte - ghaskte बीरेंदर par dhyan chal gaya aur sara lekha padh kar man khush ho gaya. Many many thanks Abhishek jee.
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