Jan 16, 2011

बकरचंद

अनावश्यक चेतावनी: पोस्ट में उतरोत्तर ऐसी बातें हो सकती हैं जो... छोडिये ऐसा कुछ नहीं है. वैसे भी चेतावनी दे डाली तो आप अंत तक पढेंगे. इससे अच्छा चेतावनी को रहने ही देते हैं.  और हाँ इस पोस्ट के सारे पात्र वास्तविक हैं. बकरचंद ने पोस्ट पढ़ी तो दुखी जरूर हो सकते हैं कि उनका असली नाम क्यों नहीं दिया गया.

दृश्य १: (क्लासरूम)
प्रो: हे यू, व्हाट आर यू डूइंग ?
बकरचंद: (दबी आवाज में नोटबुक पर आँख गडाये हुए) अबे किसको बोल रहा है?
पडोसी छात्र: तुझे !Kanpur
प्रो: आई ऍम टॉकिंग टू यू... यू इन ब्लू टी-शर्ट.
बकरचंद: (दबी आवाज में) अबे ये तो मुझे ही बोल रहा है. (अलर्ट होकर) सर... सर... एक्चुअली... $%#$^

दृश्य २: (क्लासरूम)
प्रो: लास्ट रो... कैन समवन प्लीज वेक हिम अप? ... स्टैंड अप?
बकरचंद: (खड़े होते हुए) सॉरी सर.
प्रो: ओह ! तो आप भी सो रहे थे... ?

दृश्य ३: (क्लासरूम)
प्रो: ओके कैन समवन टेल मी व्हाट विल हैपेन इफ ए एंड बी आर एलिमेंट्स ऑफ एन ओडरड फिल्ड? यू?
बकरचंद:  सर.. %^%& ७८&*७  #%$^&%^*
प्रो: तुम तो मुँह नहिये खोलते तो अच्छा रहता. सॉरी टू डिस्टर्ब यू. (इस दृश्य के अलावा शायद ही कभी किसी ने इन प्रोफ़ेसर साब को हिंदी बोलते सुना हो. बकरचंद ने बड़ा क्रन्तिकारी सा जवाब दे डाला था).

दृश्य ४: (कानपुर, एक रेस्टोरेंट)
- अबे ये तो बहुत महंगा है. कहीं और चलते हैं.
- कुछ तो ऑर्डर करोगे?
- ठीक है कोल्ड्रिंक/कॉफी कर दो.
----
- कितना बिल आया?
- ८५
----
- अबे ये तो २० लौटा गया है? क्या करें?
- चेंज नहीं होगा उसके पास. अब दे दिया है तो ले चल. कौन सा इसका दामाद बनना  है तुझे.
--- थोड़ी देर में वेटर दौड़ा-दौड़ा बाहर आया.
-'सर टिप? आपने तो... हे हे'
- भैया अब आपने ही लौटा दिया तो हम क्या करें... लो (१० रुपये)
- साले ने पांच ले ही लिए.

दृश्य ५: (भारतीय रेलवे) मासूम बकरचंद जनरल के टिकट पर स्लीपर कोच में चढ गए और रात के अँधेरे में उन्होंने टीटी को १०-१० के दो नोट पकडाए. अगले दिन सुबह...
- कहाँ से आ रहे हो?
- कानपुर से
- पढते हो
- जी अंकल
- कहाँ?
- जी आईआईटी में
- टिकट तो ले लिया करो. तुम्हे तो पास भी मिलता होगा.
- अंकल वो तो है पर क्या करें टाइम नहीं मिलता है टिकट कराने का. बहुत पढ़ना पड़ता है. रात-रात को क्लासेस होती है और छुट्टी के ठीक पहले एक्जाम... अभी तो मैं परेशान हूँ कि घर कैसे जाऊँगा. सारे पैसे तो मैंने आपको दे दिए. अब ऑटो के पैसे भी नहीं बचे. ये देखिये वालेट में कुछ भी नहीं बचा.
- गजब हो तुम भी. कितना लगता है ऑटो का?
- जी अंकल ३०.
- ये लो.
- थैंक यू अंकल.
.... (१० मिनट बाद फोन पर)... 'अबे सुन १० रुपये कमाए मैंने... %^$%^&^&'

दृश्य ६: (कानपुर, एक रेस्टोरेंट)
- अबे बहुत महँगा है. कटते हैं यहाँ से. अबे बकर, कुछ कर. यहाँ नहीं खा सकते.
बकरचंद: एक्सक्यूज मी? आप वेज और नॉन-वेज एक साथ बनाते हैं?
वेटर: नहीं सर अलग-अलग.
बकरचंद: किचन एक ही है?
वेटर: यस सर लेकिन...
बकरचंद: मैं तो यहाँ नहीं खा पाउँगा, यार तुम लोग देख लो.
- अब यार ऐसा कैसे होगा  कि तुम नहीं खाओगे और हम खायेंगे.
बकरचंद वेटर से: आप आस पास किसी ऐसे रेस्टोरेंट के बारे में जानते हैं क्या जहाँ वेज और नॉन-वेज के लिए अलग किचन हो या कोई प्योर-वेज रेस्टोरेंट?
---

दृश्य ७: (बकरचंद का ऑफिस)
जूनियर: बकर ये RukBahanKe फंक्शन क्या करता है?
बकरचंद: वो टेस्ट करने के लिए है. कुछ भी एक लाइन अंट-शंट लिख दो तो स्क्रिप्ट वहीँ रुक जाती है.
जूनियर: लेकिन कुछ और भी तो लिख सकते थे... ये कोई देखेगा तो क्या कहेगा?
बकरचंद: क्या कहेगा? रोकना था तो रुक लिख दिया और फिर आगे मन में आया तो लिख दिया. अच्छा ख़ासा काम कर रहा है, तुझे क्या प्रॉब्लम है इससे?
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दृश्य ८: (पुणे, आईसीसी टावर रूफ टॉप)
बकर डिनर पर थोड़ी देर से आये...
- अबे यहाँ या तो अंदर बैठना पड़ेगा या फिर इटालियन आर्डर करना पड़ेगा.
बकरचंद: ऐसा क्यों? एक मिनट रुक. भैया... भैया, इधर आइयेगा जरा?
वेटर: यस सर?
बकरचंद: आपको भैया बोला तो बुरा तो नहीं लगा?
वेटर: नो सर... नॉट एट आल.
बकरचंद: देखो भैया अब क्या करें हमलोग यूपी के हैं. और वहाँ पर तो ऐसा ही चलता है. भूख लगी है  कुछ खिला दीजिए... अच्छा सा. एकदम फटाफट. 
वेटर: स्योर सर. वी हैव... $#%%#
बकरचंद: अब देखिये भैया ये सब नहीं बुझाता है. बुझाने का मतलब बुझते हैं न? हम यूपी के भाई लोग हैं, कुछ देसी खिलाइए...
---- (कुछ देर तक निरर्थक चर्चा… तिलक, शिवाजी… अंग्रेज चले गए तो आपको ही छोड़ गए क्या? जैसी बातों के बाद…)

वेटर: सॉरी सर, यू विल हैव टू सिट इनसाइड.
बकरचंद: अब नजारा देखने के लिए ही तो आये हैं.
---
वेटर: सर मैं अपने मैनेजर को बुला देता हूँ आप बात कर लीजिए.
--- (लगभग १० मिनट बाद. )
बकरचंद: भैया चिकन लोलीपॉप और एक कुछ वेज घास-फूस. अब तो बोल दिया आपके बड़े भैया ने. अब तो खिलाओगे? कि अभी भी नाराज हो?

दृश्य  ९: (आईआईटी कानपुर, एक कंप्यूटर लैब)
बकरचंद: अबे क्या है ये? कब है लास्ट डेट? मैं रात को करूँगा अभी कुछ नहीं कर रहा. अबे वो साईट कौन सी थी?
- www.@#$@#$.com
बकरचंद ने अपने लैपटॉप पर वो देखना चालु किया जो इंटरनेट पर सबसे ज्यादा मात्रा में मौजूद होता है. थोड़ी देर में पीछे से प्रोफ़ेसर ने कंधे पर हाथ रखा: 'बकरचंद हैव यू सीन अभिषेक टूडे?'
--- लैब मैं सन्नाटा---
बकरचंद: (बिल्कुल गंभीर मुद्रा में गंभीर, लैपटॉप का ढक्कन नीचे करते हुए) नो सर. ही मस्ट हैव गोन फॉर लंच.
प्रो: ओके. कंटीन्यू... टेल हिम दैट आई वाज लूकिंग फॉर हिम.
--- (१० मिनट बाद. ) '#$% अबे आज तो...'

मैं सोच रहा हूँ ऐसे कितने प्रतिशत प्रोफ़ेसर होते होंगे? मुझे तो लगता है एक वही.... और बकर भाई के अनगिनत किस्से… फिर कभी.

- सुना है आजकल पोस्ट में चेतावनी देने का दौर चल रहा है तो हमने भी दे दी. फिलहाल जनवरी के लिए एक पोस्ट हुई Smile

~Abhishek Ojha~

26 comments:

  1. बकरचंद को हमारा ..............सलाम !

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  2. ओझा जी - दृश्य ३ में हिन्दी के स्टेप फंक्शन वाले प्रोफेसर झल्लू भईया तो नहीं रहें ? बाकी चेतावनी बकईत है :-)

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  3. वाह वाह! आजकल बकर जी क्या करते हैं?! जरा पता/फोन बताइयेगा! :)

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  4. धन्य हो प्रभु,
    भला किया जो चेतावनी दे डाली, नहीं तो - www.@#$@#$.com :))

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  5. बिना रॉयल्टी के ही सारा भेद खोले दे रहे हैं।

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  6. बढियां दृश्यांकन,वाह.

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  7. बकर अनंत बकर कथा अनंता...

    हर कालेज में मिल जायेंगे इस प्रकार के लोग। हमारे यहां एक बलिया के बकरसम्राट थे, बुन्देलखंड एक्सप्रेस में जनरल का टिकट लेकर स्लीपर में घुसकर टीटी के आते ही बिना बोले बिना सुने उनकी जेब में बीस रूपये डाल देते थे, टीटी भी चला जाता था। उन्होने जुगत भिडायी कि जब टीटी टिकट पूछता ही नहीं है तो जनरल का भी टिकट क्यों लें? उसके बाद उन्हे हमेशा दुख रहा कि रेलवे स्टेशन तक पंहुचने में रेल के टिकट से अधिक पैसे लग जाते हैं :)

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  8. अगर अवार्ड-शवार्ड की बात चले तो सातवें दृश्य को मेरी तरफ से 10/10 रहे:)

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  9. हमारे साथ भी बकरचंद थे। शायद चिट्ठकारी करते हैं।

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  10. इंजीनियरिंग कॉलेज में आम है :)

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  11. हिंदुस्तान में जयचंदों और इंजीनियरिंग कोलेजों में बकरचंदों की कमी नहीं है |

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  12. ओह दुनिया रे .....तुझ पर कितनी फिल्मे बनायीं जा सकती है .....कितने किस्से कहे जा सकते है .....

    वो दुनिया फिर भी भीतर थी भाई........

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  13. अरे भाई, क्यों मेरे किस्से बकरचन्द के नाम से छाप रहे हो? सीधा ही नाम लिख देते तो मैं क्या कुछ बिगाड लेता तुम्हारा।

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  14. very nice blog dear friend


    Dear Friends Pleace Visit My Blog Thanx...
    Lyrics Mantra
    Music Bol

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  15. @जोशिम: प्रोफ़ेसर साब का नाम राज ही रहने दीजिये :)
    @ज्ञानजी: बकर भाई फिलहाल मुंबई में है. अब बैंकर हैं.
    @मो सम कौन: डिकोड तो नहीं करने लग गए थे आप :)
    @सिद्धार्थ जी: हा हा.

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  16. @नीरज:"रेलवे स्टेशन तक पंहुचने में रेल के टिकट से अधिक पैसे लग जाते हैं :)" हा हा एक दम सही बात है.
    @काजलजी: आपकी बात बकर तक पंहुचा दी जायेगी :)
    @नीरज: सच में कमी नहीं है. दोनों ही बहुतायत में पाए जाते हैं.
    @प्रवीणजी: आपकी आये ये क्या किसी रोयल्टी से कम है?
    आप सभी का धन्यवाद.

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  17. बकर से मिल कर अच्छा लगा। यहाँ वकालतखाने में बहुत बकरचंद हैं।

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  18. जनाब जाकिर अली साहब की पोस्ट "ज्‍योतिषियों के नीचे से खिसकी जमीन : ढ़ाई हजा़र साल से बेवकूफ बन रही जनता?" पर निम्न टिप्पणी की थी जिसे उन्होने हटा दिया है. हालांकि टिप्पणी रखने ना रखने का अधिकार ब्लाग स्वामी का है. परंतु मेरी टिप्पणी में सिर्फ़ उनके द्वारा फ़ैलाई जा रही भ्रामक और एक तरफ़ा मनघडंत बातों का सीधा जवाब दिया गया था. जिसे वो बर्दाश्त नही कर पाये क्योंकि उनके पास कोई जवाब नही है. अत: मजबूर होकर मुझे उक्त पोस्ट पर की गई टिप्पणी को आप समस्त सुधि और न्यायिक ब्लागर्स के ब्लाग पर अंकित करने को मजबूर किया है. जिससे आप सभी इस बात से वाकिफ़ हों कि जनाब जाकिर साहब जानबूझकर ज्योतिष शाश्त्र को बदनाम करने पर तुले हैं. आपसे विनम्र निवेदन है कि आप लोग इन्हें बताये कि अनर्गल प्रलाप ना करें और अगर उनका पक्ष सही है तो उस पर बहस करें ना कि इस तरह टिप्पणी हटाये.

    @ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने कहा "और जहां तक ज्‍योतिष पढ़ने की बात है, मैं उनकी बातें पढ़ लेता हूँ,"

    जनाब, आप निहायत ही बचकानी बात करते हैं. हम आपको विद्वान समझता रहा हूं पर आप कुतर्क का सहारा ले रहे हैं. आप जैसे लोगों ने ही ज्योतिष को बदनाम करके सस्ती लोकप्रियता बटोरने का काम किया है. आप समझते हैं कि सिर्फ़ किसी की लिखी बात पढकर ही आप विद्वान ज्योतिष को समझ जाते हैं?

    जनाब, ज्योतिष इतनी सस्ती या गई गुजरी विधा नही है कि आप जैसे लोगों को एक बार पढकर ही समझ आजाये. यह वेद की आत्मा है. मेहरवानी करके सस्ती लोकप्रियता के लिये ऐसी पोस्टे लगा कर जगह जगह लिंक छोडते मत फ़िरा किजिये.

    आप जिस दिन ज्योतिष का क ख ग भी समझ जायेंगे ना, तब प्रणाम करते फ़िरेंगे ज्योतिष को.

    आप अपने आपको विज्ञानी होने का भरम मत पालिये, विज्ञान भी इतना सस्ता नही है कि आप जैसे दस पांच सिरफ़िरे इकठ्ठे होकर साईंस बिलाग के नाम से बिलाग बनाकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने लग जायें?

    वैज्ञानिक बनने मे सारा जीवन शोध करने मे निकल जाता है. आप लोग कहीं से अखबारों का लिखा छापकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने का भरम पाले हुये हो. जरा कोई बात लिखने से पहले तौल लिया किजिये और अपने अब तक के किये पर शर्म पालिये.

    हम समझता हूं कि आप भविष्य में इस बात का ध्यान रखेंगे.

    सदभावना पूर्वक
    -राधे राधे सटक बिहारी

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  19. जनाब जाकिर अली साहब की पोस्ट "ज्‍योतिषियों के नीचे से खिसकी जमीन : ढ़ाई हजा़र साल से बेवकूफ बन रही जनता?" पर निम्न टिप्पणी की थी जिसे उन्होने हटा दिया है. हालांकि टिप्पणी रखने ना रखने का अधिकार ब्लाग स्वामी का है. परंतु मेरी टिप्पणी में सिर्फ़ उनके द्वारा फ़ैलाई जा रही भ्रामक और एक तरफ़ा मनघडंत बातों का सीधा जवाब दिया गया था. जिसे वो बर्दाश्त नही कर पाये क्योंकि उनके पास कोई जवाब नही है. अत: मजबूर होकर मुझे उक्त पोस्ट पर की गई टिप्पणी को आप समस्त सुधि और न्यायिक ब्लागर्स के ब्लाग पर अंकित करने को मजबूर किया है. जिससे आप सभी इस बात से वाकिफ़ हों कि जनाब जाकिर साहब जानबूझकर ज्योतिष शाश्त्र को बदनाम करने पर तुले हैं. आपसे विनम्र निवेदन है कि आप लोग इन्हें बताये कि अनर्गल प्रलाप ना करें और अगर उनका पक्ष सही है तो उस पर बहस करें ना कि इस तरह टिप्पणी हटाये.

    @ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने कहा "और जहां तक ज्‍योतिष पढ़ने की बात है, मैं उनकी बातें पढ़ लेता हूँ,"

    जनाब, आप निहायत ही बचकानी बात करते हैं. हम आपको विद्वान समझता रहा हूं पर आप कुतर्क का सहारा ले रहे हैं. आप जैसे लोगों ने ही ज्योतिष को बदनाम करके सस्ती लोकप्रियता बटोरने का काम किया है. आप समझते हैं कि सिर्फ़ किसी की लिखी बात पढकर ही आप विद्वान ज्योतिष को समझ जाते हैं?

    जनाब, ज्योतिष इतनी सस्ती या गई गुजरी विधा नही है कि आप जैसे लोगों को एक बार पढकर ही समझ आजाये. यह वेद की आत्मा है. मेहरवानी करके सस्ती लोकप्रियता के लिये ऐसी पोस्टे लगा कर जगह जगह लिंक छोडते मत फ़िरा किजिये.

    आप जिस दिन ज्योतिष का क ख ग भी समझ जायेंगे ना, तब प्रणाम करते फ़िरेंगे ज्योतिष को.

    आप अपने आपको विज्ञानी होने का भरम मत पालिये, विज्ञान भी इतना सस्ता नही है कि आप जैसे दस पांच सिरफ़िरे इकठ्ठे होकर साईंस बिलाग के नाम से बिलाग बनाकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने लग जायें?

    वैज्ञानिक बनने मे सारा जीवन शोध करने मे निकल जाता है. आप लोग कहीं से अखबारों का लिखा छापकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने का भरम पाले हुये हो. जरा कोई बात लिखने से पहले तौल लिया किजिये और अपने अब तक के किये पर शर्म पालिये.

    हम समझता हूं कि आप भविष्य में इस बात का ध्यान रखेंगे.

    सदभावना पूर्वक
    -राधे राधे सटक बिहारी

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  20. बढियां दृश्यांकन,वाह.

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  21. भैया ये सब पढ़ा के पुरनका दिन का कितना खिस्सा नचा दिए दिमाग के सामने जो अरसे से भूले बिसरे पड़े थे,... अब का कहें...

    जियो....

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