व्यस्त होना भी अजीब है... 'व्यस्त/बीजी' मुझे बड़ा ही डांवाडोल अस्पष्ट सा शब्द लगता है.. अपरिभाषित सा. अपनी बात करूँ तो... अक्सर मैं और मुझे जानने वाले बाकी लोग भी मुझे बहुत व्यस्त मानते हैं... कितनी सारी किताबें पढने के लिए बची हैं, खरीदी जाने वाली किताबों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है. 50 से ज्यादा फिल्में पड़ी हैं देखने को. चाहते हुए भी खुद खाना नहीं बना पाता... खैर खाना तक तो ठीक... दाढ़ी? किसी ने पूछ लिया 'फ्रेंच रख रहे हो क्या?' मैंने कहा 'नहीं टाइम नहीं मिलता !' गनीमत है भगवान ने ही फ्रेंच दे दिया, साप्ताहिक कार्यक्रम... तीन दिन क्लीन, तीन दिन फ्रेंच. बड़े अरमान से आईपॉड लिया था. ऐसी चुन के बनाई गयी प्लेलिस्ट कि किसी ने चेतावनी दे डाली 'किसी लड़की को ये प्लेलिस्ट मत दिखा देना, इसी पर लट्टू हो जायेगी'. और इस अतिशयोक्ति वाली लिस्ट से भरा आईपॉड इंटरनेट ब्राउज़िंग की मशीन बन कर रह गया है !
बड़ा गुस्सा आता है जब कोई कहता है 'टाइम मैनेजेमेंट सीखो'. सब बकवास लगता है... 'तुम क्या जानो, क्या होता है व्यस्त होना !'. अपने अलावा सभी लोग बेकार ही लगते हैं.
लेकिन कुछ हाल की छोटी घटनाओं ने बहुत कुछ सिखाया. अब सीखना तो छोटी बातों से ही होता है बड़ी बातों का क्या भरोसा सीखने लायक ही ना बचें ! अभी कल की बात है, काम वाले बाई से कहा:
'बर्तन थोडा ठीक से साफ़ कर दिया कीजिये, मैं जब भी कुछ बनाता हूँ मुझे बर्तन फिर से साफ़ करना पड़ता है'.
'भैया आपको कहा था ना तार वाली घिसनी लाने को, इससे साफ़ नहीं होता !'
'लेकिन मैं तो इसी से कर लेता हूँ... '
'आपकी तरह फुर्सत नहीं है न, मुझे और भी घरों में काम करना होता है !'
वेल...! बड़े दिनों बाद किसी को अपने लिए फुर्सत शब्द इस्तेमाल करते देखा... अच्छा लगा. बड़ा बीजी होने का तमगा लिए फैंटम बना घूमता हूँ. जहाँ मर्जी आये बोल दिया टाइम नहीं है, थोडा बीजी चल रहा हूँ आजकल. जब अपने आपको लेकर मन में एक धारणा बनी हुई हो और ऐसे में कोई सामने वाला उसे धत्ता बताकर निकल जाये और आप अपनी औकात में आ जायें... मुझे ऐसे लोग अच्छे लगते हैं. बनावटी नहीं.
... बाकी चीजों की तरह ही व्यस्त होना भी एक सापेक्ष अवधारणा (रिलेटिव कांसेप्ट) है. एक वरीयता (प्रिओरिटी) होती है हमारे कामों में. कौन काम किस काम के लिए व्यस्तता बनेगा. ये तो फैसला करना पड़ेगा न? अब देखिये व्यस्त होने का सीधे-सीधे मतलब हमारे पास कुछ काम है जिसमें हम व्यस्त हैं. और यह तभी एहसास होता है जब कोई और काम आ जाता है. वर्ना तो क्यों ही व्यस्त हुए, जितना निर्धारित समय उतना काम ! नए वाले काम की वरीयता कम है तभी तो पिछले वाले को रोककर इसे नहीं कर रहे? यहाँ पिछला काम नए के लिए व्यस्त होने का कारण बना. मतलब ये कि अगर कोई आपसे कहे कि वो व्यस्त है और आपको टरका दे तो समझ लो इसका सीधा और एक ही मतलब है... और भी जरूरी काम है जमाने में आपके सिवा.
अब मैं कितना भी व्यस्त रहूँ कुछ लोग जिंदगी में ऐसे हैं जिनका फ़ोन आ जाए तो उठाना ही पड़ेगा. मेरे एक दोस्त हैं वालस्ट्रीट में ट्रेडिंग करते हैं और कभी-कभी पूरे दिन स्क्रीन के सामने से सर नहीं हटाते. अब ऐसे हालत में भी किसी 'उन दिनों के' दोस्त का फ़ोन आ जाता है: 'अबे ऑनलाइन हो क्या एक टिकट बुक कराना है !' तो सब कुछ छोड़ कराते ही हैं, अब फ़ोन रखना बंद कर दें तो अलग बात है. लेकिन कुछ लोगो का फ़ोन बजे और ना उठाओ या फिर मना कर दो ऐसा कहाँ संभव है... है न प्रिओरिटी ! अपना एक डायलॉग ...व्यस्त तो मैं हमेशा ही रहता हूँ पर तुम्हारे लिए तो हमेशा ही समय है मेरे पास.
वैसे ही कई बार 'कुछ बातें' (यहाँ 'कुछ लोग' कहना भी उचित ही होगा) इस तरह दिमाग पर कब्ज़ा कर लेती हैं कि हम उन्हें छोड़कर कुछ और सोच ही नहीं पाते. (कहीं ऐसा तो नहीं कि इस कथन में उम्र के हिसाब से 'कुछ लोग' की जगह 'कुछ बातें' लेती जाती हैं?) हर दुसरे क्षण वही/उन्हीं की बातें दिमाग में आती हैं. गयी व्यस्तता तेल बेचने. फिर भी काम होते ही रहते हैं. तो इस हिसाब से साधारण दिनों में... जब ऐसी अवस्था न हो, हमारे पास वक्त बचना चाहिए? मानो न मानो... तर्क है !
किसी से झगडा हो गया तो? झगडा हो जाए तो कोई बात नहीं लेकिन अगर दिमाग में कीड़ा हो कि मेरी तो किसी से अनबन ही नहीं हो सकती. और... फिर हो जाये तो? सब वैसे का वैसा पड़ा रहे और आप हैं कि सोचे जा रहे हैं. फिर गयी व्यस्तता तेल बेचने. ऐसे लोग हैं जमाने में जो मानकर चलते हैं कि उनका किसी से झगड़ा नहीं हो सकता (जब तक पहली बार ना हो जाये...). और अगर बीमार हो गए तो? दो दिन बाद फिर काम तो पटरी पर आ ही जाएगा. इसका मतलब कहीं न कहीं तो गुंजाइस है जहाँ से समय खींचा जा सकता है.
व्यस्तता के मायने बदलते रहते हैं. मैं इस सप्ताह करने वाले काम की लिस्ट टाइप करता हूँ... एक साल पीछे जाकर देखता हूँ तो लगता है इतने काम करने में शायद छः महीने लग जाते. अब खुद लिख रहा हूँ एक सप्ताह में हो जाएगा. वैसे व्यस्तता खुद भी मोल रखी है... 'बिंग पोलाईट सक्स समटाइम्स'. इस टाइटल पर एक पोस्ट पेंडिंग है.
वैसे एक बात है हमें अक्सर बीते हुए समय से ज्यादा व्यस्तता दिखती है. 'वो भी क्या दिन थे' ऐसी लाइन लगती है जो हर समय में फिट हो जाए. पर किसी और परिपेक्ष्य से तुलना करें तो वास्तव में आज के दिन भी फुर्सत वाले ही हैं. ये बात अलग है कि ये शायद आज की जगह कल महसूस हो ! यहाँ भी फर्क इस बात से पड़ता है कि व्यस्तता किस फ्रेम से नापी जा रही है. यूँ तो व्यस्त होना अच्छी बात है खाली होने से बेहतर, पर व्यस्त होने का मतलब ये तो नहीं कि फुर्सत के क्षण ढूंढने में ही व्यस्त हो जाएँ ! भाई इंसान हैं... कुछ भी कर सकते हैं बीजी होने के लिए. लिखते-लिखते इस कथन के बाद तो व्यस्तता सच में अपरिभाषित लगने लगी है मुझे.
...अब हर बात में अच्छाई निकलना अपनी आदत है. अनबन से लेकर बीमारी तक वाली घटनाओ से सीखना... शायद इसे पोजिटिव थिंकिंग कहते हैं.
खैर रोज नयी चीजें सीखने को मिल रही है. किसी से अनबन हुई और दो दिन 'लगभग' सब कुछ छोड़ बस दिमाग निचोड़ा... और दुनिया वैसी की वैसी ही चलती रही ! खुद के साथ बुरा भी हो तो 'क्या लर्निंग एक्सपिरियन्स था!'. उन्हें ये ईमेल लिखा था, ड्राफ्ट में ही रह गया. कुछ बातें दिमाग से उस ड्राफ्ट तक जाने में फ़िल्टर हो गयी, कुछ वहाँ से यहाँ आने में. ये जो बचा है वो कौन सी विधा है?
"व्यस्त रहता था मैं अपनी दुनिया में...
एक झटके के बाद...
दिमाग निचोड़ डाला, इतना कि कड़वा हो गया.
अब तुम्हारे हाथ में है... क्या निचोड़ता रहूँ इसे ?
मुझे पता है, मैं और मेरा दिमाग. तुम्हे क्या फर्क पड़ता है?
बस एक सलाह है,
कभी अपने फ्रेम से निकलकर तो सोचो,
वैसे ये तो है...
मैं तो आम की जगह पेड़ समझाउंगा,
पर क्या तुमने कभी समझने की कोशिश की?
वैसे भी क्या है अपनी दोस्ती? मानो तो देव नहीं तो पत्थर.
मैंने तो देव मान लिया ... और तुमने भी शायद पहले पत्थर ही माना था.
पर देव मानने के लिए मुझे काफिर तो ना मानो.
एक रास्ता सुझाऊँ -
एक इंसान ही मान लो काफी है. वैसे सुना है आजकल ये प्रजाति मिलती नहीं है.
व्यस्त तो अब भी रहता हूँ... पर अब निचोड़ के सार के साथ...
व्यस्त होना बस एक बहाना है और कुछ नहीं !"
~Abhishek Ojha~
*पोस्ट में आधे पात्र और घटनाएँ काल्पनिक हैं, कौन आधे? ये तो वो पात्र पढ़ेंगे तो ही जान पायेंगे. आज ना कल पढ़ेंगे तो जरूर ! इस थिंकिंग मोड में चले गए व्यक्ति की तस्वीर गोवा में ली गयी थी.
जरा व्यस्त हूँ ...फुर्सत से व्यस्तता पर एक वयस्क द्वारा लिखी इस बालसुलभ पोस्ट को पहली फुरसत पाते ही पढता हूँ ! जय राम जी की !
ReplyDeleteव्यस्त तो अब भी रहता हूँ... पर अब निचोड़ के सार के साथ...
ReplyDeleteव्यस्त होना बस एक बहाना है और कुछ नहीं !"
-नौकरानी के कहने पर कम से कम समझ तो गये कि आपके समान उसे फुर्सत कहाँ...हा हा!!
बहुत जबरदस्त आलेख...मजा आ गया.
सुबह सुबह आप की टिप्पणी पढ़ी होली के समापन वाली पोस्ट पर और अब यह पोस्ट पढ़ी है। सीखने की इच्छा रखने वाला हर कहीं सीख सकता है। फुरसत भी एक सापेक्ष चीज है। पर ऐसा भी कुछ है जो सापेक्ष नहीं?
ReplyDeleteकाश फुर्सत मिल पाती।
ReplyDelete---वाह-क्या लिख दिया है,बधाई-=--
ReplyDeleteजबरदस्त थिंकिया रहे हैं आप तो थिंकिंग मोड मे जाकर.:) बहुत लाजवाब लिखा.
ReplyDeleteरामराम.
अभी ऑफिस जाना है फुरसत बिलकुल नहीं है.. फुरसत पाते ही पढता हूँ फिर टिपियाता हूँ.. :)
ReplyDeleteफोटो एक दम सेक्सी है .....आइडियल बेचुलर के तमगे के सही हकदारों में से एक हो....फुरसत के साथ सबसे बड़ी प्रोब्लम एक ही रहती है जब सबसे ज्यादा जरुरत हो तब मिलती नहीं ....ओर "वो भी क्या दिन थे "जिंदगी भर टेग लाइन बनी रहेगी ....
ReplyDeleteवैसे जब जी भर के फुरसत मिल जाती है तब चुभने लगती है ......
कभी कभी व्यस्तता बेवकूफी लगती है, फुर्सत काटने को दौड़ती है । अजब खेला है जी ।
ReplyDelete:)सही फुर्सत का तकाजा लिखा है आपने उस पर थिंकिंग फोटो ..और बाई की फुर्सत परिभाषा..... सबे ही गजब है जी :)
ReplyDeleteबहुत गजब पोस्ट है. पढ़कर तबियत प्रसन्न हो गई.
ReplyDeleteबहुत जबरदस्त आलेख...
ReplyDeleteजो बोलते है फ़ुरसत नही, उन के पास कोई काम नही होता, यह मेने अकसर देखा है,ओर जिन के पास फ़ुरसत सच मै नही होती, उन्हे बोलने की जरुरत ही नही होती उन्हे देख कर पता चल जाता है,कि बंदा व्यस्त है, धन्यवाद इस सुंदर लेख के लिये
ReplyDeleteयह चिंतन और दशा केवल आपकी नहीं....पढ़कर लगा अपनी ही बात है....
ReplyDeletebahut der se buisy tha post padhne men
ReplyDelete"दिल ढूँढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन "के दिनो से आज के समय की फुर्सत का अर्थ भिन्न है । और यह समय समय पर बदलता रहता है ।
ReplyDelete"व्यस्त तो अब भी रहता हूँ... पर अब निचोड़ के सार के साथ...
ReplyDeleteव्यस्त होना बस एक बहाना है और कुछ नहीं !"
क्या बात कही है....पर एक खूबसूरत बहाना है...दिल बहलाने को
फोटो में तो बड़ी फुर्सत में दिख रहें हो,eligible bachelor :)
आ गया हूँ पढ़ने ! व्यस्तता के बीच भी ऐसी पोस्ट पढ़ना सुखकर है !
ReplyDeleteआभार ।
"व्यस्त तो मैं हमेशा ही रहता हूँ पर तुम्हारे लिए तो हमेशा ही समय है मेरे पास."
ReplyDeleteWoah! thankyou so much for such a clever line! :)
व्यस्तता के क्षणों में भी 'व्यस्तता' पर लिख डाला....... क्या बात है.....! वाकई जिन्दगी कितनी रफ़्तार से चली जा रही है कुछ समझने -सोचने का मौका ही नहीं है........! हम सबको अपनी जिन्दगी का आइना दिखाती पोस्ट....बहुत badhai अभिषेक भाई.
ReplyDeleteshandar bandhu na keval likha hua balki tasveer bhi
ReplyDeleteएक इंसान ही मान लो काफी है. वैसे सुना है आजकल ये प्रजाति मिलती नहीं है............hmmmmmmm.......magar bhooton men insaaniyat baaki hai.... aajmaa kar dekh len naa.......!!
ReplyDeleteकामवाली बाई का यह कहना अच्छा लगा की हम आप जैसे फुर्सत में नहीं हैं |बिजी विदआउट वर्क का भी अपना एक अलग आनंद है | कुछ लोग तो फोन पर ही कह देते हैं मैं घर पर नहीं हूँ |जब आदमी आराम करने फुर्सत नहीं निकाल पता तो प्रकृति बीमारी के रूप में उससे आराम करवाती है |यह बात सही है की गुजरे हुए कल की अपेक्षा आज हम ज्यादा व्यस्त है ।""जब तलक है जिन्दगी फुर्सत न होगी काम से |कुछ समय ऐसा निकालो ब्लॉग लिखो आराम से ""
ReplyDeletealabatt ho yaar tum bhi.....gazab ....adbhut.....romaanchak....!!
ReplyDeleteफुर्सत मिलते ही पढने चले आये आपकी यह पोस्ट!
ReplyDeleteGreat post !
ReplyDeleteBeautifully written !
After reading this post i desire to be busy , at least for a day.
I truly envy the busy schedule of maid servants. Quite often i desire to have a word with them and i lure them with a cup of tea , but lo !..They deny politely..."beezee hun"
Smiles !
बहुत खूब. कई बार फुर्सत के बहाने (या बहाना) अच्छा चिंतन हो जाता है.
ReplyDelete__________
"शब्द-शिखर" पर सुप्रीम कोर्ट में भी महिलाओं के लिए आरक्षण
काश फुर्सत मिल पाती।
ReplyDelete"जब अपने आपको लेकर मन में एक धारणा बनी हुई हो और ऐसे में कोई सामने वाला उसे धत्ता बताकर निकल जाये और आप अपनी औकात में आ जायें... मुझे ऐसे लोग अच्छे लगते हैं. बनावटी नहीं."
ReplyDeleteमेरी पसंद की बात की है, हजम हो गयी...
लेकिन बात तो वही है, हम भी व्यस्त हैं, इस पोस्ट तक आते आते देर हो गयी , मतलब हम ज्यादा व्यस्त आप कम... वाह भाई !
मजेदार है। इसको तो हम बांच चुके हैं। चर्चिया भी।
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