आदि काल से मानवता निरंतर परिवर्तनशील है. “जेनेरेशन गैप” दरअसल पीढ़ियों के बीच नहीं कुछ सालों के अंतराल में ही हो जाता है. अब चार दिन के इंटरनेट को ही ले लीजिये, कल तक इसका मतलब होता था “साइबर कैफे में जाकर रिजल्ट देखना” और आज ऐसा हो गया है कि चौपाल अब ट्विट्टर पर ही लगती है ! साइबर कैफे तो #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था के जमाने की बात हो गयी. ग्लोबल भिलेज में सुबह सबेरे की राम-राम से लेकर भरपूर बतकूचन, बहस, छींटा कशी, देश-दुनिया, ज्ञान, शायरी… सब कुछ ट्विट्टर पर होता है . ऐसे में किसी ने #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था हैशटैग चला दिया तो लोगों ने दिल खोल के अपने बचपन के दिनों को याद किया। सभी के बचपन के दिन… खूबसूरत होते हैं. अनंत मासूम यादें.
ऐसे में हमने भी थोड़ा बहुत ट्वीट कर दिया। उन्हीं ट्वीटो को एक पोस्ट के रूप में सहेजने की सलाह गिरीश भैया ने दी... पर उससे पहले महापंडित राहुल सांकृत्यायन की ‘वोल्गा से गंगा’ में २५०० ई पू परिकल्पित एक दृश्य पढ़िए। इसमें बात है मानवता के पहले आविष्कारों की. जिन आविष्कारों ने मनुष्य को पशुपालन और बंजारे के जीवन से आगे बढ़ाया। पढ़ते हुए आपको लगेगा वैसी ही बातें आज के रोज आ रहे नए-नए ‘गैजेट्स’ के बारे में हमें सुनने को मिलती है. मानव इतिहास का ट्विट्टर हैंडल होता तो वो ट्वीट करता - #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब ताँबा था अब आईफोन है। :)
'वोल्गा से गंगा' का अंश:
'वोल्गा से गंगा' का अंश:
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कथा शुरू हुई कंडी के पास रखी ताँबे की पतीली को देखकर। बाबा ने कहा -
“इस ताँबे और खेतों को देखकर मेरा दिल जाता है. जबसे ये चीजें वक्षु के तट पर आई, तब से चारो ओर पाप-अधर्म बढ़ गया, देवता भी नाराज हो गये, अधिक महामारी पड़ने लगी, अधिक मार-काट भी.”
“तो पहले ये चीजें नहीं थी बाबा?” - पुरुहूत ने कहा.
“नहीं बच्चा ! ये चीजें मेरे बचपन में जरा-जरा आई. मेरे दादा ने तो इनका नाम तक न सुना था. उस वक़्त पत्थर, हड्डी, सींग, लकड़ी के ही सारे हथियार होते थे.”
“तो लकड़ी कैसे काटते थे, बाबा !”
“पत्थर के कुल्हाड़े से.”
“बहुत देर लगती होगी; और इतनी अच्छी तो कटती नहीं होगी?”
“इसी जल्दी ने तो सारा काम चौपट किया। अब अपने दो महीने के खाने तथा आधी जिंदगी के चढ़ने के एक अश्व को देकर एक अयः (ताम्बे का) कुल्हाड़ा लो, फिर जंगल काट-उजाड़ दो अथवा गाँव के गाव को मार डालो। लेकिन गाँव जंगल के वृक्षों की तरह निहत्था नहीं है, उसके पास भी उसी तरह का तेज कुल्हाड़ा है. इस अयः कुठार ने युद्ध को और क्रूर बना दिया। इसके घाव से जहर पैदा हो जाता है. पहले बाण के फल पत्थर के होते थे, वे इतने तीक्ष्ण नहीं थे, ठीक है; किन्तु चतुर हाथों में ज्यादा कारगर होते थे. अब इन ताँबे के फलों से दुधमुंहे बच्चे भी बाघ का शिकार करना चाहते हैं. अब काहे कोई निष्णात धनुर्धर होना चाहेगा?”
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दुनिया रोज बदलती है पर कुछ बातें कभी नहीं बदलती जैसे - दुनिया के बदलने की गति। हर नयी पीढ़ी को लगता है पिछली पीढ़ी बिन इन औजारों के काम कैसे चलाती होगी? और पिछली पीढ़ी अपने आउटडेटेड औजारों को लेकर नॉस्टॅल्जीआई रहती है - क्या दिन थे ! राहुल सांकृत्यायन के बारे में पढ़ते हुए लगता है चलते-फिरते विकिपीडिया रहे होंगे। उनके लिखे इस वार्तालाप की आखिरी पंक्ति पढ़ कर आप सोच रहे होंगे। सच है - “गूगल की मदद से अब दुधमुंहे बच्चे भी विद्वान हो जाना चाहते हैं, अब काहे कोई महापंडित होना चाहेगा?” :)
खैर… ये रहे ट्वीट्स -
२. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब आम-जामुन-महुआ के बगीचे होते थे। जिनमें भूत रहते थे। ...और मैंने वहीं दोनाली चालाना सीखा :) #यूपी
३. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब टीवी का अंटेना घुमाना पड़ता था। और जुगाड कर साइकल के पहिये से अंटेना बनाया था।
४. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब हेयरकट के नाम पर पिताजी का नाऊ को "एकदम छोटा काट दो" का आदेश होता था। :)
५. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब एक ही थान के कपड़े से सारे भाइयों का कपड़ा सिल जाता था। :)
६. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब एक कागज पर पैर का निशान बनाकर चप्पल/जूता खरीदा जाता था। :)
७. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब बढ़ई घर में काम करने आए तो अंत में एक बैट और पीढ़ा जरूर बनाता था।
८. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब गाँव के सेंट बोरिस पब्लिक स्कूल में अपना "सिटींग अरेंजमेंट" (बोरा) साथ लेकर जाते थे :)
९. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब आँगन में ओखली, जाँत और सिलबट्टा हुआ करते थे।
१०. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब एक टेलीफोन पर पूरे गाँव का फोन आता था।
११. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब पंद्रह का पहाड़ा ऐसे पढ़ता था जैसे युद्ध के वर्णन वाली कोई वीर रस की कविता हो :)
१२. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था पन्द्रह दुनीतीस तियांपैंतालिस चौकासाठ पांचेपचहत्तर छक्कानब्बे सातपिचोत्तर आठेबिस्सा नौपैन्तिसा झमक-झमक्का डेढ़ सौ !’
१४. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था ट्यूबवैल पर नहाकर गीली हाफ पैंट हाथ में सुदर्शन चक्र की तरह घुमाते घर आता था :)
१६. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब बगीचे से गुजरते हुए मुंह बंद रखना होता था। क्योंकि गिद्ध दांत गिन ले तो सारे झड़ जाते थे।
१७. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब बिन समझे बुझे जो संस्कृत के श्लोक रटा के कंठस्थ हो गए थे वो अब भी याद हैं।
१८. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब कला के नाम पर साड़ी की किनारी, आम, अमरूद, कमल, नदी-पहाड़-सूर्योदय (बस इतना ही) :) बना लेता था।
२२. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तो पोखरा में डूबते-डूबते बचना और "ये किस चीज का ऐड है" पूछकर घर में सन्नाटा कर देना जैसे काम तो कंपलसरी होता है :)
२३. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब कौवा उड़, चिरई उड़ के खेल में... पतंग उड़ तो फिर कागज भी उड़? जैसी उड़ाने विवाद का विषय होती थी :)
२५. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब बड़ों के यात्रा करने के लिए बड़े टूथपेस्ट ट्यूब से छोटे ट्यूब में टूथपेस्ट भर देता था।
२८. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था एक बार सियाही घोर के लिखने का शौक चढ़ा था। शाम को स्कूल से बानर जैसा मुंह करिया कर के घर लौटा था :)
२९. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब बड़े बच्चो को स्कूल जाता देख पहली धमकी दी थी। मुझे स्कूल जाने दो नहीं तो बाद में कहोगे तो भी नहीं जाऊंगा :)
३०. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब निबंध लिखते समय खूब हाँकता था। जो भी दोहा-चौपाई याद आती वो घूमा-फिरा के घुसा ही देता था :)
३३. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब एक लड़की मेरे घर नोट्स मांगने आयी थी। और मुझे जिस नजर से देखा गया था मुझे उसका मतलब नहीं पता था :)
३६. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब फाउंटेन पेन से लिखता था। रीफ़ील वाले पेन से लिखने पर हैंड राइटिंग खराब होती थी। :)
३७. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था मेला, पिपीहरी, लट्टू, कैसेट, खेत-खलिहान, हल-बैल-हेंगा, ट्यूबवेल, बैलगाड़ी, तांगा, कैसेट, कंचे, सरकंडे की कलम, स्लेट..
३९. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब विरले ही मार खाता था। अच्छा बच्चा होने के साथ चालु भी था मार खाने के पहले ही रोने लग जाता था. :)
४२. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब पता नहीं था कि जो अंकल घर आए हैं उनको सबके सामने उस नाम से नहीं बुलाना होता जिस नाम से पीठ पीछे बुलाते हैं। :)
४३. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब सर उठाकर हवाई जहाज जरूर देखता था। और धुआँ छोडते जाने वाले जहाज को रॉकेट कहते थे :)
४५. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब देशभक्त और शहीद कम्युनिस्ट, लेफ्ट-राइट, आस्तिक-नास्तिक नहीं.. सिर्फ पूज्य होते थे।
४६. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति-मुख्यमंत्री-राज्यपाल सब तोपची लोग लगते थे. बड़ा हुआ तो यशवंत सिन्हा से अग्री कर गया. कोई भी *&$
४७. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था इयं आकाशवाणी. सम्प्रतिः वार्ताः श्रूयन्ताम् ! प्रवाचकः एट्सेटरा एट्सेटरा :)
४८. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था खिलखिला कर हँसता था, और जब रोता था तब हांफ जाने और रुक-रुक कर सांस आने तक !
४९. मुझे जानने वाले #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब की बातें सुनते हैं तो उन्हें लगता है उन्होने मुझे तब क्यों नहीं देखा :)
५०. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब मेरा बचपन ऐसा था कि इस हैशटैग पर लिखता ही रह जाता। पर अब बड़ा हो गया हूँ तो ऑफिस में काम भी करना है :)
५१. #जब_मैं_छोटा_बच्चा_था तब ऐसे दिन थे कि... आज सिर्फ चर्चा छिड़ी तो अभी तक ऑफिस में कुछ काम नहीं किया :)
#जब_मैं_छोटा_बच्चा_था बहुत देर तक ट्रेंड हुआ. लाखों ट्वीट हुए... अनंत बातों में से मैंने सिर्फ ५१ ही ट्वीटा !.
अगर आप अट्वीटरीय इंसान हैं तो आपको ये बातें बेवकूफी लग सकती है. आपके लिए ही कुछ दिन पहले मैंने एक ट्वीट किया था - सर्वे जना: यत्र मंडूक-सदृश: टर्र-टर्र इति अतिउल्लासे लीयते सा ट्विट्टर: ! :)
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~Abhishek Ojha~
#काश_मैं_भी_तब_छोटा_बच्चा_होता_:(
ReplyDeleteगजब मर्दे....:)
ReplyDeleteगजब मर्दे....:)
ReplyDeleteजब मैं छोट्टा बच्चा था तब इस सब के बारे में सुना ही नहीं था।
ReplyDeleteइस वॉटस्एप के चलते तो ई-मेल को भी कोई नही पूछता।चिट्ठी लिखना तो इतिहास जमा ही समझो। जब मैं छोटी थी तो कितनी चिट्ठियां लिखती थी अब..............
ReplyDeleteका बाबू.. अब बुढा गए हो का?
ReplyDeleteहे हे।
Deleteअब आपसे क्या ही छुपा है :)
बहुत खूब
ReplyDeleteसमय या परिवर्तन किसी को भी नहीं बख्सता है ।
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