उस दिन शाम को जब मैं चाय पीने गया तो बीरेंदर उर्फ बैरीकूल फोन पर बात करता हुआ कुछ चिंतित सा दिखा. मैंने पुछा – ‘क्या हुआ बिरेंदर? सब ठीक है?’
‘हाँ भईया. आइये. सब ठीके है. ऊ एक ठो मैटर हो गया है' - बैरीकूल ने कहा.
‘चचा ! ई सोनुआ का घर तो पटना एके में पड़ता है न?’ - बिरेंदर ने पास ही फल और जूस की दुकान वाले चचा से पूछा.
‘हाँ त इहे फ्रेजरे रोडवा नु क्रास करना है. एके में होगा' चचा ने खिडकी से जूस बढाते हुए कहा. चचा की दोतरफा दूकान है. खिडकी से बाहर गली में भी बेचते हैं और अंदर कॉम्प्लेक्स में तो बेचते ही हैं.
‘पटना एके?’ - मैंने पूछा.
‘अरे ऊ पटना-एक पिन कोड का बात था. हमलोग कोई जगह केतना दूर है इसके लिए पिन कोड से भी देखते हैं. जानते हैं… नया वाला पोस्ट मैन्वो सब को एतना पता नहीं होता है जेतना चचा को पता है. कौन-कौन घर किस पिन कोड का एरिया में पड़ेगा सब मालूम है इनको’ बिरेंदर ने चचा को खुश किया तो मैं वापस ‘मैटर’ पर आया –‘अरे वाह. वैसे तुम कह रहे थे कि कुछ मैटर हो गया है?’
‘हाँ ऊ एक ठो कांड हुआ है. लरका-लरकी का चक्कर है… अब का कीजियेगा उमरे अईसा होता है. अब सब अपना छोटूआ जैसा त होता नहीं है. का छोटू? बिरेंदर ने कुछ सुनाने के मूड से चाय वाले छोटू की तरफ इशारा किया.
‘बिरेंदर भईया, सादा लाल सिंग !’ छोटू ने सड़क पर जाते हुए एक सज्जन की तरफ आँख से इशारा किया. शायद उसे अपनी कहानी भी नहीं सुननी थी तो बिरेंदर को कहीं और उलझा दिया.
सदा लाल सिंह को देख बिरेंदर बहुत प्रसन्न हुआ. उन्हें सुनाते हुए कहा – ‘अबे सादा-लाल नहीं, सदालाल. नाम का बैंडे बजा दिया तुम तो. लाल लाल होता है उसमें सादा रंगीन का होगा बे?’ फिर तेज आवाज में बोला – ‘ऐ सदालाल ! आओ हिंया तनी.’ सदा लाल सिंह निकल जाने के मूड में थे लेकिन बिरेंदर दौड कर पकड़ लाया – ‘अरे मरदे आओ. दू मिनट में जो तुम्हारा तूफ़ान मेल छूट जाएगा ऊ हमको पूरा मालूम है. वैसे एक बात है तूफ़ान तो हईये हो… नाम तुम्हारा अईसही थोड़े है सदालाल.’
‘सदालाल मने बुझे कि नहीं भईया? सदा माने आलवेज तो सदालाल माने आलवेज रेड. माने इनका जो स्टेटस है ऊ हमेसा लाले रहता है.’ बिरेंदर ने मुझे उनके नाम का अर्थ समझाया.
‘अरे हट रे… सिंघासन खाली कर..’ बिरेंदर ने वहाँ खड़ी मोटरसाइकिल पर बैठे लड़कों को उठाते हुए कहा.
‘देखो बिरेंदर अब जादे बोल रहा है तुम?’ – सदालाल सिंह ने कहा तो बिरेंदर ने बात घुमाई ‘ऐ छोटुआ, ब्रिजकिसोरजी के तरफ से चाय दे तीन ठो त. ईस्पेसल.’
‘ब्रिजकिसोरजी?’
‘अरे यहीं त पूरा पटना मार खा जाता है! इनका असली नाम त ब्रिजकिसोरे है. ऊ त हमलोग प्यार मोहब्बत में नाम रखे हैं - सदालाल. एतना बीजीए रहते हैं कि का करें ! पहिले इनका नाम रखे थे - स्टेटस लाल. हमेशा लाल स्टेटस लगा के रखते हैं थोबडा प. लेकिन ऊ नाम ओतना मजा नहीं दे रहा था. त सदा लाल सिंग रख दिए. अब ‘सदालाल सिंग’ में जो बात है ऊ का बताएं आपको. नामे से अफसर लगते हैं. पर्सनिलिटी त खैर हईये है इनका ! देखिये देखिये… अभी नहीं… जब चलेंगे तब देखिएगा…. … जो तनी बाएं मार के दाहिने पैर घुमा देते हैं न… चाल नहीं कतल है… कतल ! और सकल त देखिये रहे हैं… ललाटे लाल बत्ती है इनका - भक् भक् बरते चलते हैं !’ बिरेंदर ने जो परिचय दिया, सदा लाल सिंग कुछ बोल नहीं पाए. छोटू तब तक चाय लेकर आया और बात शायरी पर आ गयी.
‘सदालाल कुछ नया सुनाओ यार, आजकल लिख रहे हो कि नहीं?’ - बिरेंदर ने पूछा तो सदालाल जी मुस्कुराते हुए बोले ‘नहीं यार… अब कहा लिख पाते हैं. फिर कभी सुनायेंगे अभी चलने दो’ सदालाल बची चाय पास पड़े ईंट के टुकडो के ढेर पर फ़ेंक कर तेजी में निकल लिए. और बिरेंदर ने मुझे असली बात बतायी -
‘जानते हैं भईया, ई सदलालवा हमको एतना पकाया है कि का बताएं आप से. हम तो गजल-उजल शायरी ई सब में पूरे गोल… आ ई साला आके जो परस्तिस, तसब्बुर जैसा शब्द हमको सुनाता था. हमको लगता था कि बहुते बड़का शायर है. ऊ त बाद में पता चला कि कइसे इधर का उधर करता है. एक दिन दू लाइन सुनाया हमको – “किस्सा हम लिखेंगे दिले बेकरार का, खत में सजा के फुल हम प्यार का.” हमको लगा कहीं तो सुने हैं… गलती कर दिया ऊ राग में गा दिया. नहीं त हमसे नहीं धराता. लेकिन जब धर लिए कि सब गाना का उठाके हमको सुना रहा है… उसके बाद से तो… देखे नहीं कईसे भागा है आज. साला सुनता पंकज उदास को भी नहीं है आ बात करेगा मेहदी हसन का. पहली बार नुसरत फ़तेह अली खान जैसा नाम हम इसी का मुंह से सुने. पता नहीं का मजा आता है साले फेकने में. हमको जब कुछो बुझाईबे नहीं करता है तो मेरा सामने फेक के ही का उखाड लेगा. पर उस दिन के बाद से ही ई बीजी बन गया.’
‘अरे कोई बात नहीं बिरेंदर छोडो क्या करना है. कब तक बेवकूफ बनाता’ मैंने बैरी को शांत करने के लिए कहा. छोटू चाय के ग्लास उठाने आया तो बोला ‘बरी गडमी है ! नहीं भईया?’
बैरी ने गुस्सा उगला – ‘कवंची का गर्मी है रे ! जादे रजेसी लगा है तो एक ठो लगवा दे एसी तोराके… अबे गर्मी में गर्मी नहीं होगा त सीतलहरी चलेगा रे? मौसम बैज्ञानिक के सार… भाग नहीं त पीटा जाएगा दू-चार हाथ'
‘चलो बीरेंदर कहीं घूम के आते हैं… क्या तुम भी ! सदालाल जैसे लोगों पर गुस्सा होते हैं क्या? दया भाव रखो ऐसे लोगों पर तो' – मैंने बैरीकूल को कूल करने की कोशिश की.
बाइक स्टार्ट करते-करते बीरेंदर फिर बोला – ‘जानते हैं भईया जो जेतना गर्मी गर्मी चिल्ला रहा है न, अगर कल को पटना में गलती से बरफ पड़ गया न… त इहे सब आदमीया आपको जीने नहीं देगा कि मौसम का माँ-बहन हो गया !’
‘मैटर’ और छोटुआ का इश्क पटना १४ में
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~Abhishek Ojha~
PS: ऐसे-ऐसे ब्लॉग परिचय हैं कि... मैंने सोचा अपना भी कुछ धाँसू परिचय होना चाहिए। हमने ये लिखा -
"आप हैं न काम के न धाम के. शिक्षा के नाम पर भरपूर टाइम पास करते रहे। कोई प्रकाशित कृतियाँ नहीं। किसी पुरस्कार-सम्मान का सवाल ही नहीं उठता। संप्रति बकबक बहुत करते हैं।" :)
(इसमें सुधार के लिए फेसबुक मित्रों का धन्यवाद.)
बैरीकूल की बतकही वीणा के तार साधने जैसी है, जहां लगता है कि मामला फैलने वाला है वहीं थोड़ा घुमाकर कस देना|
ReplyDeleteबैरीकूल का स्टेट्स होना चाहिए - एवररेडी, एवरग्रीन|
चाल-सकल वाली बात - कतल
पंकज उदास-मेंहदी हसन वाली बात - कतल
गर्मी-सीतलहर - कतल
ब्लॉग-परिचय - ऊ भी कतल ही:)
Reply to PS > परिचय को रीडिफाइन करने की जरूरत है. :)
ReplyDeleteनयी डेफिनिशन भी तो दीजिये सरजी :)
Delete''अबे गर्मी में गर्मी नहीं होगा त सीतलहरी चलेगा रे? मौसम बैज्ञानिक के सार…'' मजेदार.
ReplyDeleteछोटुआ के इश्क का बड़का धमाका..
ReplyDeleteमज़ा आ गया! एके काण्ड से परस्तिस तक, और एसी से मौसम तक, बैरीकूल इज रीयली कूल। पटना के ब्रैंड ऐम्बैसेडर हैं भाई। खलनायक अजीत के शब्दों में कहें तो, हाउ वैरी इंटरैस्टिंग"
ReplyDeleteअब ‘सदालाल सिंग’ में जो बात है ऊ का बताएं आपको. नामे से अफसर लगते हैं. पर्सनिलिटी त खैर हईये है इनका ! देखिये देखिये… अभी नहीं… जब चलेंगे तब देखिएगा…. … जो तनी बाएं मार के दाहिने पैर घुमा देते हैं न… चाल नहीं कतल है… कतल ! और सकल त देखिये रहे हैं… ललाटे लाल बत्ती है इनका - भक् भक् बरते चलते हैं !’
ReplyDeleteकतल कर दिये बलियाटिक बाबू आप तो।
आके जो परस्तिस, तसब्बुर जैसा शब्द हमको सुनाता था. हमको लगता था कि बहुते बड़का शायर है. ऊ त बाद में पता चला कि कइसे इधर का उधर करता है.
इधर ब्लॉगिंग में भी तो बहुत लोग ऐसा करता है। :)
आनन्ददायक!!
ReplyDeleteमैटर त गोल ही कर दिये सदा लाल जी! चलिए 14 नम्बर की प्रतीक्षा कर ही लेते हैं।
ReplyDeleteउ का है कि मैटर पर दिमाग अटक गया नहीं तो एहमे भी कम कीमती माल नहीं है।:)
अरे हट रे… सिंघासन खाली कर..’
ReplyDeleteआनंद आ गया भैया जी खुबसूरत संवाद .....
किताब छपवा लो गुरु !!!! सीरीज़ उम्दा होती जा रही है !!! अजी ऐसा मौका फिर कहाँ मिलेगा :) :) :)
ReplyDeleteमौसम बैज्ञानिक के सार… :) :) :) :)
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बेहतरीन रचना, बढिया पटना सीरिज
केरा तबहिं न चेतिआ, जब ढिंग लागी बेर
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ संडे सन्नाट, खबरें झन्नाट♥
♥ शुभकामनाएं ♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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बेहतरीन रचना,
ReplyDeleteवैरी इंटरैस्टिंग :)
@साला सुनता पंकज उदास को भी नहीं है आ बात करेगा मेहदी हसन का. पहली बार नुसरत फ़तेह अली खान जैसा नाम हम इसी का मुंह से सुने. पता नहीं का मजा आता है साले फेकने में.
ReplyDelete-------
सही कहे, एकदम परफेट्ट.....फेसबुक से लेकर ब्लॉग तक बहुत फेके हैं लोग...इतना ज्यादा कि .....और सबके मुंह पर इस तरह मुर्दनी छाई थी मानों अब से खाना पीना छोड़ देंगे, अब तक जी रहे थे तो केवल उनहीं के लिये थे :)
मस्त है सीरीज...
:):):)
Deletejai ho.
चचा की दुतरफा दुकान का आइडिया अच्छा है.कई लोग आजमा लेंगे !
ReplyDeleteइतना कतल किये है बलियाटी भाई जी, गडमी में सीतल पछुआ जैसा बुझाया है।
ReplyDeleteजबरदस्त सीरीज़ चल रही है ओझा जी, जबरदस्त!
और हाँ, PS को वाकई redefine करने की जरुरत है।
बैरी ने गुस्सा उगला – ‘कवंची का गर्मी है रे ! जादे रजेसी लगा है तो एक ठो लगवा दे एसी तोराके… अबे गर्मी में गर्मी नहीं होगा त सीतलहरी चलेगा रे? मौसम बैज्ञानिक के सार… भाग नहीं त पीटा जाएगा दू-चार हाथ'
ReplyDeletesannat likhe ho bhaijee
pranam.
मौसम के साथ बरिंदर की बातचीत मज़ेदार है..... पटना में बर्फ का किस्सा ओह सोच के सिहरन होती है....
ReplyDeleteबैरीकूल कूल हुयी गवा तो हिम युग नहिये आ जायेगा
ReplyDeleteपटना सिरीज का राइटिंग पूरे कतलियाटिक है। मस्त!
ReplyDeleteमैटर’ और छोटुआ का इश्क ...कथा का इंतज़ार रहेगा
ReplyDeleteखलिश पटनिया लहजा...एकदम गर्दा कर दिए हैं...
ReplyDeleteआहा....बहुत कुछ मिस हुई गवा, शांति से पिछली सब पोस्टवा पढकर चैन मिलेगा वर्ना इतना गजब का पटनिया पोस्ट छूटने का मलाल रह जायेगा.
ReplyDeleteरामराम.
हांय! ताऊ टंच हो गये फिर से!
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