Oct 30, 2011

दुई ठो टइटू (पटना ८)

 

'हलो, कौन बोल रहे हैं?' - राजेशजी ने उधर से जवाब दिया।

'राजेशजी, मैं अभिषेक बोल रहा हूँ? आप बीजी तो नहीं हैं?' - मैंने संभलते हुए कहा। मुझे याद है एक दिन राजेशजी ने एक मिस्ड कॉल के जवाब में किसी को बहुत बुरी तरह हड़काया था - 'रखिए फोन ! अभी तुरनते रखिए… नहीं तो ठीक नहीं होगा। अपने मिस्ड काल मारते हैं आ पूछते हैं की कवन बोल रहे हैं? रखिए नहीं तो...'

'अरे अभिसेकजी ! नमसकार-नमसकार ! कैसे हैं? आरे हम कहाँ बीजी होंगे... आप पहुँच गए बढ़िया से? ... ऐ हो ! आप तनी दू मीनट बाद आइये त। आ उ लरकवा खाली हो त हमको बताइएगा... उधर चाय पानी का पूछते रहिएगा' - राजेशजी ने फोन में ही किसी को समझाया।

'आप बीजी हों तो मैं बाद में फोन करूँ?'

'आरे नहीं - आपका फोन आएगा त हम बीजी रहेंगे?! उ श्रीकांतवा को लेकर आए हैं.. लइकी दिखाने। उ घूमने वाला होटलवा नहीं है बिस्कोमान में? उधरे?' श्रीकांत राजेशजी का भतीजा है... बंगलुरु में रहता है। इंजीनियर है इसलिए राजेशजी उसे 'पूरे बकलोल है' कहते हैं। एक बार पहले भी उन्होने बताया था 'जानते हैं सर, एक ठो इंजीनियर बंगलउर से पर्ह के हमरे गाँव आया त पूछता का है कि पापा एतना ऊंचा बांस में झण्डा कईसे लग गया?!... हम वहीं थे बोले कि भो** के तेरी अम्मा को सीढ़ी लगा के चढ़ाये थे... इंजिनियर सबसे तेज तो हमारे गाँव का बैलगाडी हांकने वाला होता है… .' इस घटना के बाद बंगलुरु रिटर्न इंजीनियर सुनते ही राजेशजी उसके ललाट पर 'चू**-कम-बकलोल' का ठप्पा लगा देते हैं - भले ही उनका भतीजा ही क्यों न हो। मुझे श्रीकंतावा से ध्यान आया पटना में हर नाम के आगे तीन प्रत्यय लगाए जाते हैं 'वा', 'जी' और 'सर'। जहां तक मुझे पता है मेरे लिए आखिर के दो ही प्रयोग होते थे... वैसे मेरे पीछे पहला भी उपयोग होता ही होगा !

‘और सुनाइये, बाकी सब ठीक?’

'हाँ ठीके है... अभी गोलघर क्रॉस कर रहे हैं... और ठीक नहीं रहेगा त एके दिन में अइसा का हो जाएगा... हे हे हे'

'आप तो होटल में बैठे थे न? गोलघर कैसे पहुँच गए ?' - राजेशजी के सिखाये ज्ञान के बाद मैंने होटल को रेस्टोरेन्ट कहने की गलती दोबारा नहीं की।

'हाँ सर... हैं तो होटलवे में...लेकिन इ गोल-गोल घूमता है न, जब आए थे त मउरिया के पास थे, पंद्रह मिनट हुआ… अभी गोलघर क्रोस कर रहे हैं... कर का रहे हैं समझिए कि करिए गए।' - राजेशजी ने पटना के रिवोल्विंग रेस्टोरेंट में बैठे थे. Patna

'अच्छा-अच्छा, और घर में सब ठीक है? श्रीकांत कब तक है पटना में ?'

'अरे उ बकलोल को त छुट्टीयो लेने नहीं आता है। 2 सप्ताह का भी कभी छुट्टी लिया जाता है? अरे एक महीना भी घर नहीं आए त का आए? ! हमलोग होते त आईटी हो चाहे फ़ाईटी अपने कायदे से चला देते। बताइये तो कोई अइसा भी जगह है संसार में जहां तिकड़म ना चले? खैर छोड़िए... उ त बकलोल हइए है...   हम सोचे कि आया है त दो-चार ठो लइकी भी दिखा देते हैं। लेकिन दिक्कत है... अब बंगलौर जाये चाहे लंदन है तो बिहारीये लरका न... आ हमलोग के घर का...माने अब हमलोग को तो आप जानते हैं... ! …लरकी सब एड़भांस हो गयी है... त बात कुछ बन नहीं रहा है... जानते हैं? सोसीओ-पालिटिकल कारण है इसके पीछे भी...'

'सोसीओ-पॉलिटिकल?'

'अरे सर, देखिये लइका बंगलौर में एंजीनियर, अब उ भले बकलोल है लेकिन लोग के त लगता है कि एंजीनियर है। त पैसा वाला पढ़ा-लिखा पार्टी ही आता है... आ दिक्कत है कि सोसाइटी के उस क्लास में सोसीओ-पालिटिकल फार्मूला लग जाता है ' बात मुझे अब भी समझ में नहीं आई। लेकिन मैंने कुछ कहा नहीं। राजेशजी आगे बताने लगे...

'अभी देखिये श्रीकांतवा गया था मिलने एक ठो लइकी से... त उ पुछती है कि 'तुमको टइटू पसंद है? मेरे को तो बहुते पसंद है... मेरेको दुई ठो है भी'. टइटू जानते हैं न सर? - गोदना। अब श्रीकांतवा को त दिखा नहीं एको ठो भी गोदना, पता नहीं कहाँ गोद्वायी थी ! ... अब आपे बताइये मेरे घर का लरका... कभी गोदना आ कान छेदवा पाएगा ? कुछ भी हो अभी हमारे  घर का... ऐ इधर सुनो, एक ठो स्टाटर में से मसरूम वाला आइटमवा ले आइये त.... हाँ वही… जो भी नाम हो... नाम तो सब अइसा हाई-फाई रखता है न सर ! आ देगा का? त कुकुरमुता भूँज के... हे हे '।

'हा हा, आपका जवाब नहीं है राजेशजी'

'हाँ त सर टइटू वाला बताए न आपको, उसके बाद एक ठो लइकी बोलती है कि बाइक कौन है तुम्हारे पास? हम लौंग ड्राइव पर जाती हूँ अब इ  पल्सर 180 रखा है उ भी ओफिसे जाने के लिए रखा है... त उ बोलती है कि नहीं उसके कवनों फ़रेन्ड़-दोस्त के पास ड़कौटी-डौकटी है...   उ त छोरिए महाराज ! एक ठो बंगलौर में भी देखने गया था त उ बोलती है कि हमको एक ठो ब्वायफ़रेण्ड है तुम भुलाने में हेल्प करो आ तब हम तुमसे सादी कर लेंगे... आ इ गया है !... जानते हैं? दो सप्ताह से जादे ही...फिलिम-विलिम दिखाया… आ एगो त काफी आजकल पीता है न सब बरका सहरवन में... उसके बाद जाके उ बोलती है... सऊरी हम उसको नहीं भूल पाउंगी ! हम अइसे थोड़े न बकलोल बोलते हैं इसको... ल*बक है एकदमे... अब बुझे आप? सोसीओ-पालिटिकल फारमूला?... आज से २०-२५ साल पहिले लइकी सब को उहे जादे पर्हाता था जिसको अफारात में पईसा था… तो जो जादे पर्ही-लिखी लइकी है ऊ बहुते एडभांस हो गयी है. आ बिहारी लइका सब तो खिचरी खा के रगर-रगर के पर्हा… इहे सब जो सोसियोलोजी का ज्ञान है सबको नहीं बुझाता है !’ मैं राजेशजी के ज्ञान पर बार-बार मुग्ध हो जाता हूँ. चाहे ‘भासा’ का ज्ञान हो, ‘मनेजमेंट’ का या फिर ‘समाज’ का.

‘बात तो आपकी ठीक है लेकिन आपको पता है कुछ लोग आपके विचार से भड़क जायेंगे’ मैंने पोलिटिकली करेक्ट होते हुए कहा.

‘आरे मारिये गोली भडकने वाले को… अब हम न झेल रहे हैं… लरकी को ड़कौटी-डौकटी का एड्भेंचर चाहिए… आ हमारा घर के लड़का कहाँ से करेगा… आरे उससे जादे त पटना का कुतवो एड्भेंचर कर लेता है… हे हे हे… (अचानक अपनी ही बात पर जोश में आए राजेशजी हंसने लग गए) जानते हैं सर पटना का कुतवन का एड्भेंचर तो अइसा है कि सड़क तबे पार करेगा जब आप गाडी लेके जायेंगे… ऊ सब को अइसे सड़क पार करने में मजे नहीं आता है ! जान पे खेलने का मजा पटना के कुत्ता सब से बढिया कोई नहीं सीखा सकता है !’

‘राजेशजी, ज्ञान तो ढूंढने वाला आप जैसा होना चाहिए… आप हर बात से ज्ञान निकाल लाते हैं’

‘हे हे, एक बात बताइए सर. आपको हमारे बात पे हंसी तो जरूर आता होगा? ’

‘किसी बात कर रहे हैं, आप बोलते तो सच ही हैं’ - मैंने गंभीर होते हुए कहा.

‘हाँ सर ऊ त हैये है… लेकिन अब आप जैसा कोई सुनबो त नहीं न करता है… बोलेगा कि मार सार के पकपका रहा है. …ए इ नहीं नल का ही पानी लाइए…. जानते हैं सर पटना में नल का पनिया साफ रहता है. बोतल तो जालिये रहता है… पटना में पानी आ ठंढा आपको असली मुसकिले से मिलेगा. सुनते हैं कि बाजपेयीजी आये थे त उनको भी सब जालिये दे दिया था. उहे हाल किताब का है… जेतना इंजीनियरिंग-मेडिकल तैयारी का किताब है सब जाली मिलेगा आपको… ओइसे उसमें तो एस्टूडेंट का फायदा ही है… अब यही देखिये हिन्दुस्तान में पटना ही एकमात्र अइसा सहर हैं जहाँ सिनेमा हाल के बाहर आपको फिजिक्स भी मिल जाएगा… उसमें भी लरका सब जोडता है कि जाली खरीदें कि फोटो कापी…’

‘हाँ वो तो देखा मैंने…’

‘सर, बस देख के आप कितना देखेंगे ? आपको एक ठो और बात बताते है, जानते हैं हम लोग कैसे पत्रिका पढते थे? वैसे आपका बिल तो नहीं उठ रहा?’

‘अरे नहीं राजेशजी… बताइये-बताइये’

‘अब हर महीना केतना पत्रिका खरीदेंगे ? दू-चार सौ रूपया त उसी में लग जाएगा… त हम लोग तीन-चार लरका अलग अलग दूकान पे जाके अलग अलग पत्रिका चाट जाते थे… उसके बाद एक-दूसरे को बताते थे कि कवन वाला में क्या काम का है… ऊ सब जाके फिर से दूसरा दूकान में पर्ह आते थे… आ कभी कभी… किसी दोस्त से खरीदवा भी देते थे !  हे हे हे.  अब ऐसे तो पढ़े हैं हम लोग… हमारा अगला पीढ़ी भी ओइसहीं पढ़ा है… श्रीकंत्वा जब छोटा था त अपना छोटा भाई के पीठ में पेंसिले घोंप दिया था… आ हम लोग के बचपन में तो बाढ़ आता ही था आ फिर घरे-घर ठेहुना पानी… एक मिनट सर… का रे हीरो ! कुछ बात बना ? सर, आ गया श्रीकांत… ’

‘ठीक है मैं आपको फिर कभी कॉल करता हूँ… अभी आप निकलिए… वैसे भी रात हो रही होगी.’

‘रात का डर नहीं है सर, अपना इलाका है… लेकिन ठीक है हम भी थोडा सलाम-परनाम कर लेते हैं.’

‘ठीक है नमस्कार !’

न्यूयोर्क आये हुए एक सप्ताह हो गया. पटना का सुरूर धीरे-धीरे उतर रहा है !

~Abhishek Ojha~

पटना सीरीज

24 comments:

  1. पर्ह लिए…ईहाँ से जाने के बाद भी पटना पीछा नहीं छोड़ा आपका…हँ बात तो सही है कि नकली किताब खूब मिलता है…

    ReplyDelete
  2. आपने तो कमाल कर दिया है अभिसेक जी......

    ए सीरिजवा का पहिला पांच भाग तो पहिले ही पढ़ लिया था (सौजन्य "बुद्धिमान उल्लू "....बूझ गए ना !)

    लिखते रहिये ....हमको तो मजा आई रहा है

    ReplyDelete
  3. बेचारा श्रीकांतवा! वापसी का स्वागत है।

    ReplyDelete
  4. सुरूर चाहे उतर जाए, जो घुल-मिल गया वह तो बना ही रहेगा.

    ReplyDelete
  5. राजेस जी का सोसियो-पालिटिकल अनालिसिस काबिले-गौर है।
    इंजीनियर = पूरा बकलोल
    बंगलुरु रिटर्न इंजीनियर = 'चू**-कम-बकलोल'
    इस समीकरण के अनुसार तो क्षेत्रीय संवेदनायें भड़क सकती हैं:)

    ReplyDelete
  6. hum sochat rahe.....babu abhishek
    bhalero chor ke tam-tam pakar liye
    honege......lekin aap to feelite pakar vides nikal liye.........

    sadar.

    ReplyDelete
  7. पटना का सुरूर धीरे-धीरे उतर रहा है !

    अरे...सुरूर उतरने मत दीजिये...बीच-बीच में फोनिया लीजियेगा राजेस जी को..:)

    ReplyDelete
  8. जौन हौ कि बड़ा नीम्मन लिखे हो आर.....वैसे पटना के कुत्ते और नोयडा के कुत्ते लगता है रिश्तेदार हैं। नोयडा वाले कुत्ते भी तभी सड़क पार करने को होते हैं जब कोई बड़ी फरारी जैसी गाड़ी दिखे :)

    मस्त।

    ReplyDelete
  9. वाह वाह! एक तो ये तुम्हारा पटना पुराण छपना चाहिये, जरूर से, और दूसरे शिवकुमार मिसिर की दुर्योधन की डायरी।
    तब हम साहित्यकारों को लुलुहा सकेंगे कि लो तुम लोगों के कूड़ा के सामने ब्लॉग लिखने वालों का स्तर देख लो! :)

    ReplyDelete
  10. बहुत शानदार लिखे हैं।

    इतना सारा वार्तालाप आपको य़ाद कैसे रहा,य़े आश्चर्य़ की बात है।

    ReplyDelete
  11. ई पटनिहा ख़ुमारी जल्दी उतरना न चाही !झकास पोस्ट !

    ReplyDelete
  12. हैंग ओवर अभी बरकरार है:) पटना राजधनिया ही ऐसे ही है और पूरे बिहार का चित्रवा देखाई देता है !
    हमरे भी एक एक बिहार क दोस्त हैं डिग्री कालेज में मास्टर हैं मगर फोनवा पहले मिस्काल मारेगें -इस बार की दिवाली में हमहूँ हड्काई ही तो लिए उनका :)

    ReplyDelete
  13. सरूर आहिस्ता आहिस्ता उतरने लगता है .हर चीज़ का ......वैसे भारत में चिरकुटो कई नायाब किस्मे है ......इसका कन्फर्मेशन हो गया होगा इब तो !!!!!!

    ReplyDelete
  14. आपका ब्लॉग भी बहुत ख़ूबसूरत और आकर्षक लगा । अभिव्यक्ति भी मन को छू गई । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद . ।

    ReplyDelete
  15. बहुते झकास लिखे हैं। पढ़ते हैं तो अइसा लगता है कि पढ़ते ही रहें। छोटकी जुनरी भुनाती है न भूजे में? वैसे ही फूट-फूट के शब्द बिखरा दिये हैं ई पोस्ट में। बधाई स्वीकार कर ही लीजिए झा जी..! भेरी सउरी 'ओ' भूल गये.. मेरा मतलब ओझा जी।

    ReplyDelete
  16. एक ठो स्टाटर में से मसरूम वाला आइटमवा ले आइये त.... हाँ वही… जो भी नाम हो... नाम तो सब अइसा हाई-फाई रखता है न सर ! आ देगा का? त कुकुरमुता भूँज के... हे हे '।

    ......

    'हाँ त सर टइटू वाला बताए न आपको, उसके बाद एक ठो लइकी बोलती है कि बाइक कौन है तुम्हारे पास? हम लौंग ड्राइव पर जाती हूँ अब इ पल्सर 180 रखा है उ भी ओफिसे जाने के लिए रखा है... त उ बोलती है कि नहीं उसके कवनों फ़रेन्ड़-दोस्त के पास ड़कौटी-डौकटी है... उ त छोरिए महाराज ! एक ठो बंगलौर में भी देखने गया था त उ बोलती है कि हमको एक ठो ब्वायफ़रेण्ड है तुम भुलाने में हेल्प करो आ तब हम तुमसे सादी कर लेंगे... आ इ गया है !... जानते हैं? दो सप्ताह से जादे ही...फिलिम-विलिम दिखाया… आ एगो त काफी आजकल पीता है न सब बरका सहरवन में... उसके बाद जाके उ बोलती है... सऊरी हम उसको नहीं भूल पाउंगी !

    ......

    हंसा के जान मार दिए बचवा...जियो....

    माने कि हम का बताएं कैसा लगा...

    कसम से कुच्छो नहीं बुझा रहा..

    ReplyDelete
  17. सही में...ई पूरा सीरीज को छपवाओ...देखना कैसे लोग इसको हाथों उठा हिरदय से लगा लेंगे...

    काहेकि माटी का महक जिसके भी नथुनों में बस रहा होगा,उसके लिए यह अमरित बन करेजा पर बरस जायेगा, जिया जायेगा......

    ReplyDelete
  18. सुरूर उतरना नहीं चाहिए..ना बिल्कुल नहीं..."खूंखार" पोस्ट है एकदम अभिषेक भाई...

    ReplyDelete
  19. ग़दर काट दिए हैं :)

    ReplyDelete
  20. पटना कांड रोचक से रोचकतर होता जा रहा है । बेचारा श्रीकांतवा, मिलेगी क नाही बहुरिया अईसा हायफाय लडकी लोगन के चलते ।

    मुझे एक गीत याद आ गया मेरी भतीजी गाया करती थी ।
    जनिमनि करि फैसन, हाय हाय फैसन आगे निकल
    जात है
    मरदन के पांव तले भुइयाँ खिसक जात है
    भुइयाँ खिसक जात है ।

    ReplyDelete
  21. क्या चकाचक खाका खींचा है इंजीनियर का! सोसियो-इकानामिक हाल का! कुकुरमुत्ता का। जय हो!

    ReplyDelete
  22. नाम तो सब अइसा हाई-फाई रखता है न सर ! आ देगा का? त कुकुरमुता भूँज के... हे हे '। विश्वाश मानिये इन पंक्तियों को पढ़ कर हँसते हँसते आँख से आंशू आ गए हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हः .................................................हा हा हा हा हा

    ReplyDelete