अनावश्यक चेतावनी: पता नहीं जो मैं लिखने जा रहा हूँ उसके लिए विडम्बना सही शब्द है भी या नहीं।
दुनिया बड़ी अजीब है और वो सब भी होता है जो हम नहीं चाहते हैं। हमारे होने में जो बातें हुई उनका योगदान तो होता ही है पर उससे कम योगदान उन बातों का भी नहीं होता जो नहीं हो पायी। हम जैसे हैं वो कई बार उन बातों के कारण ही होते हैं जो ना हो पायी। 'यूं होता तो क्या होता?' क्या होता? इसका तो नहीं पता। पर हाँ इतना तो है कि अभी जैसा है वैसा नहीं होता। होने ना होने की बात पर मुझे कई छोटी-छोटी बातें याद आ रही है। बड़ी बातों का क्या?... छोटी बातें अपनी होती हैं (कभी-कभी मुझ जैसे लोगों तक भी पहुँच जाती है वो अलग बात है)। बड़ी बातें तो वैसे भी अपनी नहीं रह पाती सबकी हो जाती है ऐसी ही कुछ बातें जिनमें कहा और सोचा कुछ गया और निकला कुछ और ही।
पहली बात: सप्ताहांत पर वो मुंबई में था। बस 2 सप्ताह में वो भारत से बाहर जाने वाला था। बैंगलोर से फोन कॉल: 'कल आ सकते हो इंटरव्यू के लिए?' फ्री की फ्लाइट और दोस्तों से मिलने का लालच ! उसने हाँ कर दी। एक दिन की छुट्टी के लिए वही... बीमारी का बहाना। नौकरी वैसे भी नहीं चाहिए थी तो लगभग 25 हजार रुपये मुफ्त के उड़ाने और बैंगलोर में मस्ती करने के बाद अगली सुबह भागते-भागते बैंगलोर हवाई अड्डे पर पहुंचा तो अनाउंसमेंट हो रहा था 'दिस इस लास्ट अँड फाइनल कॉल टु मिस्टर...'। तुरत फोन किया दोस्त को 'अबे दो मिनट और लेट होता तो फ्लाइट छूट जाती सुन अभी नाम बुला रहे हैं मेरा एयरपोर्ट पर, पुणे पहुँच के फिर कॉल करता हूँ'। अभी तक सब चकाचक चल रहा था। ...और मोबाइल पर उसके खडूस मैनेजर का नाम दिखा। '...उफ़्फ़! इसे चैन नहीं, सुबह-सुबह जाने ऐसा क्या हो गया ! तीन घंटे ही तो और हैं ऑफिस पहुंचने में'। फोन उठाया तो:
'..., कहाँ हो? कैसी तबीयत है अब? जल्दी करो नहीं तो फ्लाइट छूट जाएगी। मैं अभी-अभी बैंगलोर एयरपोर्ट पहुंचा तुम्हारा नाम सुनाई दिया तो सोचा बता दूँ तुम्हें। जल्दी करो'
दूसरी बात: वही आदत... पता नहीं कहाँ खो जाता है, भागते -भागते सबसे आखिर में फ्लाइट में घुसा। सभी यात्री और एयरहोस्टेस उसे ही घूर रहे हैं। हर बार ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है, चलो क्या करना है इनके गुस्से का... फ्लाइट तो नहीं छूटी । मोबाइल स्विच ऑफ करने के लिए फोन निकाला तो उसका नाम दिखा। ना चाहते हुए भी हरा बटन दबाया और उधर से आवाज आई:
'क्या कर रहे हो? दरवाजा खोलो?'
‘कहाँ हो तुम?’
’तुम्हारे दरवाजे पर। सरप्राइज़ की तो वाट लगा दी तुमने। पता नहीं क्या कर रहे थे, खोलो अब।'
'क्या? तुम मेरे फ्लैट के बाहर हो? ! मुंबई से कोई ऐसे आता है ? पहले बता नहीं सकती थी? हो जाओ फिर अच्छे से सरप्राइज़। मैं दिल्ली की फ्लाइट में बैठा हूँ, अभी बात भी नहीं कर सकता। लो इन्हीं से बात कर लो। दिल्ली पंहुचने के पहले ये मुझे अब किसी से बात नहीं करने देंगी'... और एयर होस्टेस की तरफ मुड़ते हुए उसने कहा: 'आई एम सॉरी, बस स्विच ऑफ ही कर रहा था कि ये फोन आ गया।' मोहतरमा आई थी सरप्राइज़ देने और...
तीसरी बात: एक इंटरव्यू में उससे पूछा गया '$^$^& कैसे करते हैं?' उसने गलत जवाब दिया। बाहर आकर पता चला गलत बोल आया। दो महीने बाद उसके टेबल पर एक रेज्युमे पड़ा था। मुस्कुराते हुए उसने फोन लगाया और पहला ही सवाल '$^$^& कैसे करते हैं?' वही गलत जवाब जो कभी उसने खुद दिया था।... 'नो, दिस इस नॉट द राइट वे...' । वो उसी इंसान का इंटरव्यू ले रहा था जिसने दो महीने पहले उसका इंटरव्यू लिया था। द्निया बहुत छोटी है !
चौथी बात: पिछले दिनों अंजान शहर में ईमेल से हुई जान पहचान वाले व्यक्ति ने पूछा:
'तुम तो उसे जानते हो ना?'
'नहीं तो?'
'अरे ऐसे कैसे? उसने ही तो मुझे तुम्हारे बारे में बताया। बता रही थी कि मिली थी तुमसे किसी कॉन्फ्रेंस में। और थोड़ी बात भी की थी तुमसे। पर उसे लगा कि तुम थोड़े हाई-फ़ाई टाइप हो।'
'क्या? अरे ऐसे कैसे सोच सकता है कोई मेरे बारे में। वैसे वो है कौन? कुछ और बताओ'
--------- 'कुछ और' पता चलने पर...
'अरे वो क्या? अरे यार! एक बार कुछ तो बोल के देखा होता उसने! मैंने तो उसके बारे में ठीक वैसा ही सोचा था जैसा उसने मेरे बारे में सोचा ! ट्रैजड़ी हो गयी ये तो'। हमेशा जैसा सोचा जाय वैसा कहाँ निकलता है कोई। पर दोनों ने एक दूसरे के बारे में वही सोचा... खैर...
पाँचवी बात: मैं अपने लैपटाप का केबल देख रहा हूँ, जब तक भारत में था अमेरिकी केबल था और आने के ठीक पहले खराब हुआ तो रिप्लेस कराकर जो लिया वो भारतीय है। उसकी किस्मत में बिना किसी और प्लग का सहारा लिए सीधे बोर्ड में लगना नहीं लिखा है !
बहुत बकवास हुई। और आपको कोई काम-वाम है कि नहीं? अब अपने-अपने काम पर लगते हैं
आजकल यहाँ बहुत बर्फ पड़ रही है। तस्वीर में मेरे ऑफिस की बिल्डिंग है। 27 जनवरी की तस्वीर, फ्लिकर से उड़ाई हुई है।
~Abhishek Ojha ~