बहुत समय पहले की बात नहीं है. फंडा बाबा नामक एक प्रसिद्द बाबा हुए. कुछ ही समय में उनकी फंडई के चर्चे दूर दूर तक फैले गए. हर व्यक्ति को हर प्रकार की चर्चा और समस्या पर उनके पास देने के लिए प्रचुर मात्रा में फंडा होता. फंडों के धनी इस बाबा के कई शिष्य हुए. इन शिष्यों में अग्रणी थे यथा नाम तथा गुण वाले जेलसीचंद सेठ. अन्य मनुष्यों की तरह जेलसीचंद को भी ये भ्रम था कि सिर्फ उनकी कमाई मेहनत की कमाई है, अन्य तो बिन परिश्रम ही धनार्जन करते हैं. जेलसीचंद अपने अच्छे गुणों से जितना खुश रहते उससे कई गुना दूसरों के गुणों से दुखी. सभी मनुष्य उन्हें दुर्गुणों से ग्रसित दिखते. उन्हें इस बात की चिंता हमेशा सताती कि उनके नौकर-चाकर और स्वजन उनके पैसों पर सुख-चैन की जिंदगी जी रहे हैं. सभी मनुष्य आलस को प्राप्त हो चुके हैं और फिर भी धन संग्रह में सभी मुझसे आगे हैं. मैं सर्वश्रेष्ठ और अन्य सभी दुर्गुणों से पीड़ित हैं. ऐसा सोचते हुए भी जेलसीचंद सभी मनुष्यों से ईर्ष्या करते. सुखीचंद की अप्सरा सदृश प्रेमिका ने ईर्ष्या की अग्नि में घी डालने का काम किया था. ऐसी विरोधाभासी मनोभावना से ग्रसित जेलसीचंद को फंडा बाबा के सानिध्य में रहकर अतिशय सुख की प्राप्ति होना स्वाभाविक ही था.
फंडा बाबा अविराम फंडों से नित्य जेलसीचंद के ज्ञानचक्षु खोलने की कोशिश करते. एक दिन एक फंडा बाबा के मुख से निकला एक फंडा जो कुछ इस तरह था ‘सभी भगवान की संतान हैं सभी के व्यवहार भगवान ने निर्धारित कर रखे हैं फिर तुम क्यों व्यर्थ सुखीचंद से इर्ष्या करते हो. उसका आलसयुक्त राजसी व्यवहार और प्रचुर पैतृक धन, प्रभु की इच्छा और उसके परिवेश से मिलकर तैयार हुए हैं. तुम क्यों व्यर्थ ईर्ष्या करते हो’, जेलसीचंद ने इस फंडे की गाँठ बाँध ली. फिर क्या था जेलसीचंद में चमत्कारिक परिवर्तन आने लगे. अब वो किसी से भी ईर्ष्या नहीं करते. सबी के साथ प्रेमपूर्वक रहने लगे.
कुछ दिनों के बाद जब फंडा बाबा की एक फंडासभा से जेलसीचंद निशब्द बिन किसी फंडे की आस लिए उठ खड़े हुए तो फंडाबाबा के ललाट पर चिंता का त्रिपुंड बन आया. कुछ ही पल बाद फंडा बाबा ने सन्देश भेज जेलसीचंद को अपने आश्रम बुला लिया. मनुष्यों के सुख-चैन और आलस के किसी भी प्रश्न का जेलसीचंद पर कोई असर नहीं हुआ. बाबा के सारे प्रश्नों को मुस्कुराते हुए प्रभु की इच्छा मान गए जेलसीचंद. बाबा ने आखिरी वार किया… उर्वसी सदृश सुखीचंद की प्रेमिका !
परमज्ञानी जेलसीचंद मुस्कुराते हुए झेल गए. चलने को हुए और एक बार पीछे मुड कर देखा… ‘बाबा आज मुझे एक और फंडा मिल गया. फंडा वाले भी फंड की खोज में हैं. इस जगत में चर अचर स्थावर जंगम जो भी प्राणी हैं सभी फंडामय प्रतीत होते हुए भी वास्तव में फंडमय हैं.’ फंडा बाबा ने जेलसीचंद के चरण पकड़ लिए. बोले: ‘बाबा आज से दशांश आपका बस आप फंडा देने का विचार त्याग दें…'.
फंडाबाबा की गुरु-शिष्य परम्परा को जीवित रखते हुए कालांतर में जेलसीनन्द ही चीयरफुलानंद, च्रिफुलानंद जैसे नामों से प्रसिद्द हुए.
च्रिफुलानंद की जय !
~Abhishek Ojha~ [फंडा बाबा की गुरु-शिष्य परंपरा के (n-1)वें गुरु आप nवें हो सकते हैं ]