करीब २ साल पहले एक नयी कंपनी ने मोबाईल के इस्तेमाल से पैसा भेजने का काम चालू किया था. इस सेवा के अंतर्गत कंपनी के किसी भी ग्राहक सेवा केन्द्र से भारत के किसी भी बैंक खाते में पैसा जमा किया जा सकता है. ग्राहक सेवा केन्द्र अक्सर छोटी दुकानों में होता है जैसे: किराने की दुकान, पान की दुकान, मोबाईल रिचार्ज कूपन बेचने वाले इत्यादि. पैसा ट्रांसफर करने के लिए ग्राहक सेवा केंद्र वाले अपने मोबाईल से बस एक मैसेज भेजते हैं और फिर पैसा भेजने वाले, पाने वाले और ग्राहक सेवा केन्द्र तीनों के मोबाईल पर इस लेनदेन की पुष्टि के लिए मैसेज आ जाते है. इस मोबाईल बैंकिंग का इस्तेमाल माइक्रोफाइनांस लोन के किस्त जमा कराने के लिए भी किया जा सकता है. जिसका आजकल परीक्षण चल रहा है.
पिछले दिनों इसी सिलसिले में गुप्ताजी से मिलना हुआ. गुप्ताजी १९९३ से पटना में दैनि़क इस्तेमाल के चीजों की एक छोटी सी दुकान चला रहे हैं. उनकी दूकान मोबाईल बैंकिंग का एक ग्राहक सेवा केन्द्र भी है. गुप्ताजी के दूकान-कम-रेसीडेंस में हुई बातचीत का अंश पढ़ा जाय
‘अभी ये जो पेमेंट आया उसको आपने प्रोसेस तो किया नहीं?’ - मैंने गुप्ताजी को एक नोटबुक में लिखते हुए देख पूछ लिया.
‘अभी सरभर डाउन है'
‘ओह! कब तक डाउन रहेगा?’
‘अब उ तो दू मिनट में भी चालु हो सकता है आ दू घंटा भी लग सकता है'
‘जनरली कितने टाइम मे ठीक हो जाता है?’
‘अभी त बताए आपको - कवनो ठीक नहीं है कब चलेगा’
‘अगर सर्वर पूरे दिन डाउन रहे तब क्या होता है ?’
‘आप ही बताइए जब सरभरवे डाउन रहेगा तो हम का कर सकते हैं? लिख के रख लेते हैं आ जब चालु होता है तब जामा करा देते हैं’
‘मान लीजिए कि सर्वर बहुत देर तक डाउन रहा और बाद में आपने कह दिया कि आपके पास कोई पेमेंट ही नहीं आया तब?’ ऑपरेशनल सवाल पूछना जरूर था.
‘देखिये हम हियाँ १९९३ से दूकान चला रहे हैं आ जिनके यहाँ खाते हैं हम उनके यहाँ खाते है आ उ हमरे इहाँ खाते हैं’ - उनका जोश और आवाज मेरे सवालों की संख्या के समानुपात में बढ रहे थे. उन्हें लगा हम उनपर आरोप लगा रहे हैं.
‘वो तो ठीक है लेकिन हर कस्टमर सर्विस पॉइंट तो आपके जैसा नहीं होगा? इस समस्या का कोई उपाय नहीं है? ’ - मैंने फिर हिम्मत कर पूछा.
‘कवंची उपाय करेंगे आप सरभर डाउन होने का, आपे बताइये ?’
‘ये तो आपको पता होना चाहिए ? आपको बताया गया होगा कि ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए। हर दिन का पेमेंट उसी दिन ल लेना है तो फिर कैसे होगा?’
‘नहीं ! कवनो उपाय कर लीजिए सरभरवा त डाउन होइबे करेगा.’
‘लेकिन ऑपरेशनल इसु है तो कुछ तो उपाय होगा. धीरे-धीरे कुछ महीनों बाद… कोई बैकअप प्लान ?'
‘क्या होगा? आप आज आये हैं आ हम पांच साल से रोजे ई देख रहे हैं. अउर खराबे हुआ है. पहिलही ठीक था’ - मुझे बीच में ही रोककर बोले.
उनकी धर्मपत्नी बार-बार पर्दा हटाकर देख लेती कि किससे झगडा हो गया. इस बार उनसे नहीं रहा गया. बाहर आकर बोलीं: ‘का हो गया जी? काहे लराई कर रहे हैं?’
‘कुछो नहीं हुआ, अईसही बात कर रहे हैं. आप अंदर जाइए.’
‘लेकिन इसका कुछ तो उपाय होना चाहिए. जैसे सर्वर मेंटेनेंस उस समय किया जाय जब बिजनेस नहीं होता. रात को दो घंटे डाउन रहे. समय के साथ और खराब कैसे होता जा रहा है?' - मैंने फिर से प्रश्नवाचक दृष्टि से उनकी ओर देखा.
इस बार वो भड़क गए.
‘आप समझते काहे नहीं हैं? कौंची उपाय कराएँगे आप? आ काहे का मेंटेनेंस? मेंटेनेंस से क्या लेना देना ? पहिले ध्यान से मेरी बात सुनिए तब कुछ बोलियेगा. डीजल का पैसा दिया कंपनी वाला आ आपरेटरवा बेच के खा जाए तो का कीजियेगा? लाइन रहेगा नहीं. आ जनरेटर वाला डीजल बेचके पैसा खा जाता है. अब बताइये? केतना लोड लेगा सरभर? अच्छा एक बात बताइये - सरभर क्या होता है? व्हाट डू यू मीन बाई सरभर?’
-उनकी आवाज का वोल्यूम उनकी पत्नी को फिर बाहर लाने के लिए पर्याप्त था. (‘का हो गया जी?’’)
जीवन में परीक्षा-प्रश्नपत्र के अलावा मुझसे किसी ने इससे पहले ‘व्हाट डू यू मीन बाई’ वाला सवाल किया हो - मुझे याद नहीं ! मैं थोड़ी देर के लिए सकपका गया कि कैसे समझाया जाय कि सर्वर क्या होता है. पर उसकी नौबत नहीं आई और वो खुद बोल पड़े. प्रश्न उन्होंने पूछा ही इसलिए था कि वो बता सकें.
‘बताइये ई का है?’ - अपना मोबाईल हाथ में लेते हुए उन्होंने मुझसे पूछा.
‘मोबाईल'
‘और ये ?’ - मोबाईल का कवर खोल बैटरी निकालते हुए उन्होंने अगला सवाल किया.
‘बैटरी'
‘हाँ तो ई जो आप मोबाईल देख रहे हैं उ होता है नेटवर्क और ई जो बैटरी है उ हुआ सरभर. अब मोबाईल चलेगा त बैटरी डाउन होगा कि नहीं ?’
‘होगा’
‘त बस ओइसेही सरभर भी डाउन होता है !’
उनकी मुद्रा, विवरण और आत्म विश्वास देख मुझे कुछ और पूछने कि हिम्मत नहीं हुई. मेरे साथ गए लोग हंसी-मिश्रित सीरियसनेस किसी तरह मेंटेन कर पा रहे थे.
उनकी धर्मपत्नी ने फिर पूछा – ‘हुआ का है? काहे लराई झगरा कर रहे हैं?’
‘कुछो नहीं. होगा का. अईसहिये बात कर रहे हैं. चाय बनाइये आप.’
‘बात कर रहे हैं त आराम से बईठ के नहीं कर सकते !’ - उनकी धर्मपत्नी थोड़ी परेशानावस्था में अंदर चली गयीं.
‘आप बैठिये, चाय-वाय पीजिए’ - मेरी तरफ देखकर उन्होंने कहा. वैसे थे अभी भी भरपूर गुस्से में.
‘नहीं -नहीं चाय फिर कभी पियेंगे. थैंक यू ! सर्वर समझाने के लिए’ - आगे सवाल जवाब करने पर पिटने का डर भी था. तो हम मुस्कुराते हुए निकलने का रास्ता देखने लगे.
‘उ का है कि हम कभी-कभी थोडा समझाने में जोसिया जाते हैं, बुरा मत मानियेगा… बईठीये ना… हमारा घर भी इसी में है. चाय बनवाते हैं… पी के जाइयेगा. और ई हमारी धर्मपत्नी हैं…. बचपन से ही उ का है कि हम जादे पढ़े तो नहीं लेकिन जब समझाने का बात आता है तो हम अइसा समझा देते है कि….’
मैं चलने को हुआ और अब गुप्ता जी धीरे-धीरे थोडा नोर्मल हो रहे थे.
…और इस तरह मुझे समझ में आया कि सर्भर क्या होता है और क्यों डाउन होता है… और आगे भी होता रहेगा ! आपसे भी कोई पूछे तो समझा दीजियेगा, डाउट की गुंजाइश नहीं बचेगी.
~Abhishek Ojha~
वाह जी। अच्छा समझाए आप। ओइसे ई महोदय पूरा पटनहिया लगते हैं। लेकिन खिसियाने के बावजूद इतने खराब आदमी नहीं है गुप्ताजी। और ई का है…पीटने कि पिटने का डर था।
ReplyDelete@चन्दन: धन्यवाद, सही कर दिया. वैसे गुप्ताजी बिल्कुल भी खराब आदमी नहीं है हाँ मजेदार जरूर हैं.
ReplyDeleteभौतिकी का बड़ा बड़ा सिद्धान्त लोकलै समझा देंगे।
ReplyDeleteई त पूरा प्रवचन होई ग ,वाह रे पटना, ऐसे ही नहीं है न.
ReplyDeleteकहां काफिए की तंगी और कहां शेर का वजन.
ReplyDeleteअभिषेक जी,
ReplyDeleteकोई बात नहीं। हाँ हाँ, एकदम मजेदार आदमी हैं। सरभर अउर नेटवर्क को अउर के समझा सकता है अइसे?
ये गुप्ता जी लोग ऐसे ही होते हैं क्या???
ReplyDeleteएक विश्व बन्धु गुप्ता जी Cloud Computing समझाए हैं एक विडियो में....
ध्यान से देखियेगा
http://www.youtube.com/watch?v=aFYHP6P8jWo&feature=related
‘हाँ तो ई जो आप मोबाईल देख रहे हैं उ होता है नेटवर्क और ई जो बैटरी है उ हुआ सरभर. अब मोबाईल चलेगा त बैटरी डाउन होगा कि नहीं ?’
ReplyDeleteआप ई पोस्टवा पहले ही ठेल दिये होते त ताऊ काहे को ऊ एयरटेल वाला लोगों को आफ़िस मे बंद करता? ऊ भी हमे समझा रहे थे कि सरभर डाऊन है....सरभर डाऊन है... पर ताऊ को उनकी बात समझ में नही आई, अब आ गई है समझ में, आगे से कभी सरभर डाऊन हुआ त हम नाराज नही होऊंगा भाई.:)
हंसते हंसते पेट में बल पड गये, बहुत जोरदार.
रामराम
हमारे कालेज के जौनपुर साईड के एक अध्यापक अपनी क्लाज में अपनी स्पेशल अंग्रेजी में काफ़ी देर तक डेटा ट्रांसफ़र पर कुछ समझाने का प्रयास करते रहे, जब कांसेप्ट और अंग्रेजी दोनों एक साथ न ठेल सके तो जोर से बोले, "होगा क्या, डेटा भरभराकर इधर से उधर चला जायेगा" :)
ReplyDeleteसही है सर जी!
ReplyDeleteये पटना प्रवास सही है...मस्त! :)
गुप्ता जी को हमारा भी धन्यवाद कहा जाय, और आगे से कभी कोई डाउट आया तो हम हाजिरी देंगे।
ओझा बाउजी, हमरा मोबाईल बार बार आउट आफ़ नेटभर्क जाता है, गुप्ता जी से थोड़ा डाउट क्लीयराना है !
ReplyDelete"आ जिनके यहाँ खाते हैं हम उनके यहाँ खाते है आ उ हमरे इहाँ खाते हैं"
ReplyDeleteवाह, क्या कविता किये हैं यमक अलंकार में। पोस्ट से लगता है जम गये हो पटना में। ऊधौ मोहे ब्रज बिसरत नाहीं ...
'सरभरे' भवंतु इन्जीनियर: 'सरभरे' संतु शिक्षक: :-)
ReplyDeleteअब लोकल आदमी से सरभर का मतलब पूछने पर ऐसा ही होगा । बेहतरीन.. हँसी ठिठोली..
ReplyDelete:)
ReplyDeleteपर क्या सरभर गुप्ता जी के 'एट विल' डाउन होता था क्या? थोड़ा स्पष्ट करेंगे तो जी को सांती मिलेगा.
’‘उ का है कि हम कभी-कभी थोडा समझाने में जोसिया जाते हैं, बुरा मत मानियेगा… ’
ReplyDeleteये श्रीमती गुप्ता इसीलिये बार बार आ रही थीं कि उनके गुप्ता जी किसे समझाने की कोसिस कर रहे है:)
वैभव के दिये लिंक ने भी कमाल कर दिया।
हम भी आज तक नहीं जान पाए थे की ई सर्भरवा होता का है...आज से तो एकदम्मे चकाचक बूझ लिए अब तो कोईयो पूछेगा usko समझा देंगे बढ़िया से...गुप्ता जी को हमरा थान्क्यु बोल दीजियेगा :)
ReplyDeleteशुक्रिया वैभव, संजय, अभिषेक!
ReplyDeleteविश्व बन्धु गुप्ता तो कमाल हैं।
;)
आपका पोस्टवा पढ कर तो हमरा सर-भर भी डाउन हुई गवा ।
ReplyDeleteजबरदस्त ।
हा हा हा हा....गज्ज़ब...
ReplyDeleteकसम से मन हरिया दिए भाई.....
लाजवाब डिफ्नीसन दिए गुप्ता जी...
‘का हो गया जी?’
ReplyDeleteहमें तो ये सुनाई भी देने लगा और चटख साड़ी में मिसेज़ गुप्ता नज़र भी आने लगीं .
वैसे उनका ये पूछना ,शायद किसी झगडे की आशंका से ज्यादा बातचीत में शामिल होने की कोशिश थी...अगर गुप्ता जी ठीक से नहीं समझा पाते तो क्या पता वे ही समझा देतीं.:)
मिश्टेक आप ही की लग रही है है... जब सरभरवा ही डाउन है तो लाला जी को काहे पूछते है आप..
ReplyDeleteलोकभाषा में लिखी उम्दा और रोचक पोस्ट बधाई भाई ओझा जी
ReplyDeleteअब सर्भर का मतलब समझे के खातिर कत्तो और न जइयो!
ReplyDeleteसरभर का अइसा मतलब त बडे टेक्नोक्रेट लोग भी न समझा पइहैं
ReplyDeleteहमतो आपके ब्लॉग के ऊ का कहते हैं..पंखा हो गये जी।
ReplyDeleteहम भी देवेन्द्र जी की तरह आपकी पटनाही पोस्टों के पंखा हुए जा रहे हैं :)
ReplyDeleteपीस-मेकर धर्मपत्नी बहुत पसंद आई.
ReplyDeleteऔर जनरेटर रुपी सर्भर भी.
बहुत बढ़िया!!
तभहिये कह रहे थे कि दू ठो सरभर लीजिए, आत तो एकहियें से काम चला दिए !!!!
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