जयप्रकाश नारायण अन्तराष्ट्रीय एयरपोर्ट से बाहर निकलते हुए बिहार टूरिज्म टैक्सी सर्विस का एक बोर्ड दिखा. वहाँ बैठे बुजुर्ग ने बताया कि गाडी नहीं है.
'एक ही थी... जो है सो उसे कोई और ले गया. एतना डिमांड नहीं है पटना में टेक्सी का. बाहर जाइए बहुत गाडी मिलेगा. फ्रेजर रोड का तो जो है सो दुनिया भर का साधन मिलेगा.'
बाहर निकलते ही दुनिया भर के साधनों ने मुझे घेर लिया.
'फ्रेजर रोड? आइये...' मैंने बस फ्रेजर रोड ही कहा उसके बाद उन्होंने खुद मोर्चा संभाल लिया.
'३०० रूपया. आइये - मारुती है'
'अच्छा २५० दे दीजियेगा'
'२०० दीजियेगा? यही सामने वाला टेम्पू है - आइये.'
'अरे हट रे तुम. मेरे साथ जायेंगे. आइये आइये'
'रेक्सा से जायेंगे? पचहत्तर रूपया दे दीजियेगा हमको'
मैंने पूछा: 'अरे बहुत दूर है - आप कैसे जायेंगे?'
'अरे आइये ना, पटना देखाते चलेंगे, जादे दूर नहीं है.' रिक्शे वाले ने अपनी आशा सफल होते हुए देख कर कहा.
किराया उनके आपसी प्रतिस्पर्धा से ही फेयर वैल्यू की ओर कनवर्ज होता जा रहा था. मैं बस चुपचाप सुन रहा था. रिक्शे की तरफ झुकाव जरूर हुआ. शायद ७५ रूपया भी एक कारण था. उसी बीच दौडता हुआ सोनुआ आ गया.
'हट ड़े. चलिए सड़. उ तिहत्तड़ चौड़आसी देख ड़हे हैं, उहे माडूती है. २३० फाइनल - इससे कम में त कोई नहीं ले जाएगा. सड़काड़ी अम्बेसडरवा वाला भी तीन सउ लेता है.'
उसको समझ में आ गया कि मैं रिक्शे से जाने की सोच रहा हूँ. उसे ये भी पता लगा कि मैं पैसे दे दूँगा. पता नहीं क्या-क्या बात की उसने. मुझे ठीक-ठीक याद नहीं. और फिर मेरा सामान उठाकर अपनी गाड़ी की तरफ चल दिया. सब ताकते रह गए.
'अरे यार बहुत गर्मी है इसमें? पेड़ के नीचे पार्क कर देते. ये तो आग उगल रही है' मैंने बैठते हुए कहा.
'अड़े सड बईठीये न. दू मिनट हवा लगा नहीं की फ्रेस हो जाएगा.'
फिर उसका पुराण चालू हुआ... उसकी अभी इतनी उम्र नहीं हुई कि लाइसेन्स मिले. ये गाड़ी (मारुति 800) बहुत अच्छी है 20 का एभरेज देती है और कलकत्ता तक घूम आई है. परमिट नहीं था तो थाने में ही गाड़ी छोड़ के चला गया था सोनुआ. वापस आते समय कुछ पैसा देके गाड़ी निकाल लाया. ठीके हुआ था - गाड़ी भी सेफ रही उतने दिन !
गाड़ी उसकी नहीं है, मालिक की है. उसके पास मोबाइल भी नहीं है - चोरी हो गया. अपने मालिक का नंबर लिखवाता है मुझे. राजगीर, पावापुरी, बोधगया और नालंदा बस चार जगह है बिहार में. और कहीं जाने का कोई मतलबे नहीं है. सोनुआ के मालिक को फोन करने पर इंतजाम हो जाएगा गाड़ी का. अच्छी गाडियाँ भी है उसके मालिक के पास. टूर पर जाने के लिए भी. सोनुआ को उसका मालिक बीदेसी लोगों के साथ नहीं जाने देता. क्योंकि उसके पास लायसंस नहीं है. लेकिन मेरे साथ जा सकता है. उसे अच्छा लगेगा. वो चाहता है कि मैं टूर के लिए जब भी गाड़ी के लिए फोन करूँ तो उसके मालिक से कहूँ कि सोनुआ को ही भेजे.
पिछली बार एक गलत मोड के कारण ट्रैफिक पुलिस ने उससे 100 रुपये लिए थे. अब वो उस गलत वाले मोड़ के पहले ही एक गलत मोड़ ले लेता है. उसे पता है पुलिस वाले कहाँ खड़े होते हैं. सड़क कहाँ टूटी है और बरसात में कहाँ पानी भरा होता है. किस समय कहाँ ट्रैफिक होगा… वो जोड़ लेता है. पेट्रोल पंप पर कोन्फ़िडेंस में बोलता है 'काहे तेजीया टेढ़ीया रहे हैं, बता रहे हैं न'. फिर मुझे समझाता है 'बरका चोड़ है सब. देख नहीं ड़हे हैं अभी खरा करबे नहीं किए तले पूछ ड़हा है कै लिटड़'.
मुझे जहां जाना है उसे ठीक-ठीक नहीं पता. लेकिन नाम पता हो तो 10 मिनट में वो पटना की कोई भी जगह खोज सकता है. वो गुटखा नहीं खाता - दारू भी नहीं. अभी पंद्रह साल का हुआ है. गाड़ी ही चलाएगा. और उसके पास पटना के ट्रैफिक में चलाने के सारे स्किल हैं. हॉर्न बजाना, ट्रैफिक में रास्ते खोज लेना और कट तो ऐसा मारता है कि गर्दन ना हो तो कलेजा मुंह के बाहर ग्लास तोड़कर सड़क पर आ जाये. 2 सेकेंड इधर उधर हुआ कि गए काम से ! लेकिन नहीं न होगा काहे कि गज़ब का कट्रौल है उसका गाड़ी पर.
मैं उसे 230 की जगह 250 रुपये देता हूँ. वो बहुत खुश है. उसी दिन सुबह मैंने 3064 रुपये किराये वाली टैक्सी में अँग्रेजी बोलने वाले समीर को 100 रुपये टिप दिया था. वो इतना खुश नहीं हुआ था. सोनुआ ने पूछा नहीं कि गाना बजाना है या नहीं सीधे बता दिया कि प्लेयर खराब है मालिक बनवा नहीं रहा. समीर जो टोपी, दस्ताना और ड्रेस पहनता है. मुझे पूरे रास्ते मुंबई का इतिहास-भूगोल बताते आया. उसने पूछा था 'सर, डू यू लाइक म्यूजिक?' मेरे हाँ कहने पर उसने मंद आवाज में ऐसे गाने बजाए कि मैं कह भी नहीं सकता था कि मुझे ऐसे गानों की समझ नहीं ! सोनुआ बजाता तो तुरत कहता ‘वॉल्यूम कम कर दो’
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इन दिनों मैं अपनी कंपनी के कॉर्पोरेट रिस्पोन्सिबिलिटी प्रोग्राम के सिलसिले में पटना आया हुआ हूँ। उसका ब्लॉग यहाँ है : क्रेडिट स्विस - ग्लोबल सिटिज़नस प्रोग्राम।
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~Abhishek Ojha~
का बात है ओझा जी, छा गये और छवा भी दिए सोनुआ को.... बॅड निक लागल.
ReplyDeleteहम तो इन्तजाड़ में ही थे किसी अईसी ही पोस्ट के. सोनुआ का खिस्सा तो गजबे रहा.
ReplyDeleteपटना -१ देख, अच्छा लगा ...यानि कि और भी अनुभव बांटे जाने वाले हैं...लिखते रहिए.
वाह रे सोनुआ।
ReplyDeleteदेखिएगा जरा सभल के नहीं तो सोनुआ हिला देगा,बहुते खूब,आभार.
ReplyDeleteभारत में आपका स्वागत है। आपकी कुशल-क्षेम पाकर खुशी हुई। मैं भी यहाँ सकुशल हूँ।
ReplyDeleteजैसे लालू ने तथागत को कम्प्यूटर दिलाया, बिना लैब गये बीएससी कराया, वैसे ही सोनुआ को किसी तरह पढाकर (लाइसेंस दिलाकर) बिहार टूरिज्म टैक्सी सर्विस का अध्यक्ष बनाना चाहिये। साइजा में कोई चांस नहीं है इन बच्चों या उनके परिवारों के लिये?
'लाइन' की बात और ड्राइवर की जात.
ReplyDeleteगजब्बे लइका है सोनुआ तो...पढ के मिजाज हरहरा गया :)
ReplyDeleteआरा में एक खास छेना का मिठाई मिलता है...नाम भूल गये हैं, भूरा जैसा होता है अनगढ आकार होता है। खाने में वैसा दुबारा कहीं नहीं स्वाद आया। वहाँ हैं तो पक्का खा के देखियेगा।
हो सके तो एक फोटो भी पोस्ट कीजियेगा, इन्तजार रहेगा :)
पिछली बार एक गलत मोड के कारण ट्रैफिक पुलिस ने उससे 100 रुपये लिए थे. अब वो उस गलत वाले मोड़ के पहले ही एक गलत मोड़ ले लेता है. उसे पता है पुलिस वाले कहाँ खड़े होते हैं. सड़क कहाँ टूटी है और बरसात में कहाँ पानी भरा होता है. किस समय कहाँ ट्रैफिक होगा… वो जोड़ लेता है. पेट्रोल पंप पर कोन्फ़िडेंस में बोलता है 'काहे तेजीया रहे हैं, बता रहे हैं न'. फिर मुझे समझाता है 'बरका चोड़ है सब. देख नहीं ड़हे हैं अभी खरा करबे नहीं किए तले पूछ ड़हा है कै लिटड़'.
ReplyDeleteजय हो गुरु !
रेणु कि याद आ गयी. इतना डीटेलिंग वहां घूम कर भी मिल सकता है. बस ज़रा ऊपर वाले पैर में "टेढ़ीया" कर लीजिये :) मेहनत सफल हो जाएगा. बहुत सुन्दर लिखे हैं...
दीघा दानापुर एक्सप्रेस वे पर चलते तो २ गर्मागर्म पोस्ट और निकल आता :)
एकदम देसी !
ReplyDeleteहा हा ... अड़े तुमको तो एकदम गजब का इक्सपीडीयंस हुआ डे..देखे न मेडा पटना केतना सूपड सिटी है! बिजलेरिया पीते डहना. जा झाड के!
ReplyDeleteधन्यवाद :)
ReplyDelete@अनुरागजी: साइजा में बच्चों के लिए तो कोई प्रावधान नहीं है, इनके अभिभावकों के लिए जरूर है।
छा गए सर जी!
ReplyDeleteवैसे इसमें नया कुछ नहीं कह रहा हूँ, लेकिन जब वही कहना है तो और क्या कहूँ? :)
बहुत मजेदार!
PS: पूजा जी की बात से सहमत हूँ, आपको मौका मिले तो वो मिठाई खा के देखिएगा (पता नहीं अभी मिलती है कि नहीं).. नाम नहीं बता रहा, explore करिए। :)
@पूजा & अविनाश जी - मैंने पटना पहुँचते ही अभिषेक को उस मिठाई के बारे में बता दिया है और जरुर खाने की सलाह भी दे दिया था.. :)
ReplyDeleteवैसे उस मिठाई का नाम खुरमा है.. पटना में मौर्यालोक में बेलीरोड से सटे हुए दुकानों में एक मिठाई की दूकान है, वहाँ भी बिलकुल वही स्वाद वाला खुरमा मिलता है, बस आरा के दाम से दो-तीन गुना महंगा मिलेगा वहाँ..
वाह, याद आ गया, खुरमा :) :)
ReplyDeleteइसी बहाने पता भी चल गया कि पटना में भी मिलता है, अब तो पक्का खायेंगे जाके :)
@Puja: हम बहुत दिनों तक इसे बेल्ग्रामी समझते रहे. बाद में क्लियर हुआ कि खुरमा की बात चल रही है :)
ReplyDeleteई सब का है भाई? आयँ? ई पटना में सुधासन बाबू के बिहार को बिगारने का नाया तमाशा! ड इतना त नहीं बोलते हैं लोग।
ReplyDeleteइस उमर का कोई लड़का इधर टैक्सी चलाता नहीं नजर आता।
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