बीरेंदर ने क्या और कितनी पढाई की है ये ना तो कभी उसने बताया, ना मैंने कभी पूछा. पर अंदाजा था. पढाई लिखाई की बातें वो करता था. जिस तरह के वो उदहारण देता... इतना पता चलता है कि उसने जितना भी पढ़ा होगा... मन लगा कर पढ़ा होगा. खैर... जिस तरह की विवधता उसमें है अनपढ़ हो या डॉक्टरेट कर रखा हो, कोई फर्क नहीं पड़ता. एक बार उसी ने कहा था - 'कुछो कर लीजिये... आदमी बदलता थोरी है ! डिगीरिये को ले लीजिये. डीगिरी कवनो फ्लिप-फ्लॉप स्विच थोरी न फिट कर देता है कि आदमी बदल जाएगा. आदमी जो होता है हमेसा उहे रहता है. हाँ एतना जरूर होता है की आदमी का मन में भर जाता है कि उसको अब ढेर बुझाने लगा है. आ ओइसे एक ठो और बात है... हमारा आफिस में दू चार गो के पास गजबे का एबिलिटी है... बिना कुछ काम के भी दिन भर बीजी दिखेगा, दिन भर कम्पूटर निहारते रहता है. बैज्ञानिक सब को रिसर्च करना चाहिए की उ सब भर दीन करता का है? ! हमसे त नही होता है. आ अइसा त है नहीं की हम उ सब से कम काम करते हैं. ढेर डिग्री-उगिरी वाला सब आ बिना डिगीरी वाला में भी वइसा ही अंतर होता है. ई सब गुण सायद डिगीरी से आ जाता है. ...आ एक बार कोई आदमी किसी पोस्ट पर पहुँच जाता है, पइसा कमाने लगता है त उसको लगता भी है कि उसको ढेर आता है एहिसे उ उहाँ तक पहुंचा है. हम त किसी बरा आदमी को ई कहते नहीं सुने हैं कि उसका काम कोई औरो कर सकता है. जो जेतना जादे कमाता है उसको ओतना ही लगता है कि उ ओतना डिजर्बे करते है।"
खैर पढाई से याद आया... एक दिन मुझे फिल्ड ट्रिप पर जाना था - आरा. मुझे ले जाने की जिम्मेदारी दी गयी थी संतोष को. संतोष गाडी चलाने के साथ साथ बीए में पढता भी है. बहुत सीधा लड़का लगा मुझे संतोष. [मुझे सभी सीधे ही लगते हैं :)]
सुबह-सुबह जाने के पहले फ्रेज़र रोड के उसी दूकान पर हम चाय पी रहे थे. बैरी ने पूछा - "आछे भईया, एतना भारी कैमरा लेके चलने पर आपको त फील आता होगा की हाथ में दुनालीये लेके चल रहे हैं? नहीं?"
मैंने कुछ कहा नहीं. बस मुस्कुरा दिया। उसे बताया कि कैसे मैं लोगों की तस्वीर ले ही नहीं पाता. मुझसे कहा गया है फिल्ड ट्रिप पर तस्वीरे लेने को पर... मुझ जैसे संकोची व्यक्ति के लिए लोगों की फोटो लेना थोडा मुश्किल काम है.
"हाँ इ त सही कह रहे हैं. ऐ संतोस ! थोरा बरहिया फोटो खिंचवा देना एक दू-ठो. लेकिन जानते हैं भईया... असली फ़ोटो तो कहाँ से ही मिलेगा. उहाँ के आफिस में त जइसही पता चलेगा की कोई पटना से आ रहा है त सब एक दम आफिस सेट करके फिट फाट कर देता है. चाय-समोसा माँगा के... जाइए-जाइए आपको मजा आएगा"
"अरे मैं इंस्पेक्शन करने नहीं जा रहा भाई, बस देखने जा रहा हूँ. कुछ फ़ाइल वाइल देखूंगा और दो चार लोगों से बात करके आ जाऊँगा।"
"अरे भईया, उ सब के लिए एतने काफी है की पटना आफिस से कोई आया है. आपके जाते ही सब एकदमे गाय बन जाएगा. आ ओइसे त एतना चालु होता है कि मनेजर टाईट न रखे त ओकरे बेटी के भगा ले जाएगा सब."
इसी बात पर संतोष की कहानी आ गयी.
बीरेंदर ने बताया सतोष गारी-घोरा के एक्सपर्ट आ जुगारु लरका है. पिछले दिनों इसकी गाडी का लाईट फेल हो गया था तो एक दूसरी गाडी के पीछे-पीछे चला के लेकर आया गया रात भर.
गाय और चालु पर उसने बताया - "संतोसवे के देखिये. जानते हैं एक बार पटना जंक्सन पर किसी को लाने गया था. एक ठो आदमी को धर लिया. उसको बोलता है कि टिकट दिखाओ हम टीटी हैं. उ बेचारा सीधा आदमी टिकट दिखाया. त ई बोलता है कि इ टिकट कहाँ से लिए आप ? इ त लेडीज टिकट है? गलत टिकट पर यात्रा कड़ने का फाइन लगेगा. नहीं त जेल जाना परेगा. उ बेचारा रोने रोने हो गया था."
"आप भी न कुछो बोलते हैं बीरेंदर भईया, इ सब काम काहे ला करेंगे हम?. उ त मजाक कीये थे थोरा. स्टेसन पर खरा हुए हुए मन भकुआ गया था त. " संतोष ने टोका।
"सुने भैया? मन नहीं लग रहा था ई %^&* के त टीटी बन जाएगा? " बीरेंदर ने कहा.
बातों बातों में पता चला संतोष बीए कर रहा है. मैंने पूछा - "कितने पेपर हैं?"
"चार ठो कि पांच ठो त है. याद नहीं आ रहा ठीक से"
ऐसे जवाब पर मुझे कुछ और पूछने की हिम्मत नहीं हुई. पर बैरी ने पूछा - "झूठे बोल रहा है का रे की बीए कर रहे हैं?. कौन कौन बीसय लिया है"?
संतोष ने कहा - " समाजसास्त्र, हिंदी आ एक ठो सायद... अब छोरिये न बीरेंदर भईया गाँव में एतना बीसय-ओसय के सोचता है. सहर के पर्हाई थोरे ना है. नाम लिखवा लिए हैं. परवेस पतर आएगा त देखेंगे. अभिये से काहे ला टेंसन दिला रहे हैं. "
बीरेंदर ने गालिया दी - "#$%^& गाँव में पर्हाई दोसर हो जाता है? बीसय नइखे मालूम आ बीए कर रहे हैं ! इससे बर्हिया त कह देता कि एलेलबीये कर रहे हैं!"
मैंने कहा "ठीक है यार, काम के साथ साथ कुछ भी कर रहा है... क्या बुरा है !"
"सुने हैं कभी आप की बीसये नहीं मालूम हो बीए में पर्हने वाला के? इ सब इहें देखने के मिलेगा आप के. सहर के पर्हाई मोबाइल फ़ोन है... ना रे संतोसवा? ओमें एसेमेस होता है, गाना बजता है आ गाँव के पर्हाई पूरनका वाला फ़ोन. ...जा रे &^*%$. अपना बाबूजी से त अइसे कहता होगा की बीए कर रहे हैं जइसे लन्दन से बीए कर रहा है ! ओकरा बाद कहेगा की बीए कर के भी गारी चलाना पर रहा है. भाग जा अब हिहाँ से नहीं त मार के तोर...."
हम चलने लगे तो बीरेंदर ने मुझे याद दिलाया कि उसे मुझसे कुछ जानकारी चाहिए थी. मैंने कहा "एक लिंक है, भेजता हूँ देख लेना."
बीरेंदर ने कहा - "ई भी ठीके है, भेज दीजिये। लिंके अब कलजुग का बरह्मा-बिसनु-महेस आ सरसती है. सबे समस्या आ काम के लिए, जिससे भी पूछिए - एक ठो लिंक दे देता है. महाभारत के टाइम में होता त यक्ष के सब प्रस्न के जवाब में जुद्दिष्ठिर भी दू चार ठो लिंके दिए होते."
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~Abhishek Ojha~
(पटना सीरीज)