- फगुआ क्यों बोल रहे हो. कैसा तो लगता है सुनने में. चीप. होली बोलो.
- चीप? 'चीप' भी कैसा तो चीप लगता है सुनने में फूहड़ बोलो. फगुआ इसलिए क्योंकि बात फगुआ की हो रही हो तो उसे होली कैसे कहें?
- दोनों एक ही तो होता है?
- एक ही कैसे होता है? माने गुझिया और पुआ एक ही होता है? अगर होता है तो फिर फगुआ और होली भी एक ही होता है. वो बात अलग है कि गुझिया ने पुआ को पीछे ठेल कब्ज़ा कर लिया है इस त्यौहार पर.
- मतलब?
- अरे पुआ माने पुआ. गुझिया.. नाम से ही शर्माती इठलाती. सोफिस्टिकेटेड.
- पर उससे क्या फर्क पड़ता है? दोनों ही मिठाई है जिसको जो मन बनाए.
- कैसे फर्क नहीं पड़ता ! अब पहसुल और चाक़ू भी तो दोनों सब्जी ही काटते हैं. पर एक से काटने वाला दुसरे से काटे तो हाथ उतर जाए ! फगुआ पहसुल है. होली शेफ'स नाइफ. झुलनी (ईअर रिंग - कर्णफूल ) लगा वाला पहसुल देखी हो कभी? उस पर काटने वाले अलीबाबा की कहानी के मुस्तफा दरजी की तरह अँधेरे में भी काट के धर दे. और तुम्हे तो उन्हें काटते देख के ही गर्मी छुट जाए - ओ माई गोड इट्स सो डेंजरस ! चाक़ू से क्यों नहीं काटते ये लोग ! (पहसुल तो पता है न ?)
- लेकिन फगुआ और होली का उससे क्या लेना देना?
- अरे वही जैसे सब्जी और तरकारी. सिलबट्टा और मिक्सर।
- कहाँ की बात कहाँ ले जा रहे हो? सब्जी और तरकारी कहाँ से आ गयी?.
- अरे.. उनमें भी वही अंतर है जो होली और फगुआ में है.
- व्हाट्? दोनों एक ही तो होता है.
- वही तो .. एक ही होता है. तरकारी माने... भरपूर. फ़ेंक-फ़ेंक के खाने जैसा. घर का. मन उब जाने तक. और सब्जी माने बाजार से ठोंगे में लाया गया. तरकारी माने घर की मुंडेर और खेत में से तौला के लाया गया बोरा नहीं तो कम से कम झोला भर - आलू टमाटर, धनिया... खेत में लगा धनिया देखा है कभी? बोझा में से तोड़ने को इफरात में मटर की छेमी. सब्जी माने प्लास्टिक के झिल्ली में लाया गया एक पौउवा आलू- एक मुट्ठी धनिया, फ्री का दो मिर्ची और फ्रोजेन मटर. एक टोकरा-बोरा में रखाता है दूसरा रेफ्रिजेरेटर में.
- लेकिन बात तो वही है? अब बावन बीघा पुदीना जैसी बात मत करो.
- बावन बीघा वाली बात में दम है. पर अब भी क्लियर नहीं हुआ ? उस रंग को क्या जाने वाला मामला हो रहा है. फगुआ और होली में वही अंतर है जो चिट्टी और व्हाट्सऐप में. पुरे मौसम बाल्टी भर के जामुन खाने वाले में और साल में एक बार ठोंगा का दो जामुन खा के 'इट इज वैरी गुड टू कण्ट्रोल डायबिटीज' कहने वाले में. फगुआ अभाव में भी इफरात का पर्व है. जो बाल्टी में जामुन खाता है उसको पता ही नहीं डायबिटीज क्या होता है ! बेपरवाह. मस्तमौला. जामुन पेंड पर होता है, खाने में अच्छा लगता है इसलिए खाता है. उसमें कितना कैलोरी है और कितने विटामिन इससे उसको क्या ! तो बस वही फर्क है - रगड़ के रंग खेलने और सिर्फ अबीर का टीका लगा लेने का फर्क जैसा. इ ब्लैके पीते हैं वो भी डीप वाला और मलाई मार के घोट के बनायी गयी चाय का फर्क. बैठ के वाटरलेस और रंग से हार्म हो जाएगा सोचने बनाम उन्मुक्त प्रवाह का फर्क है.
- व्हाटेवर !
- होली का नेशनल एंथम रंग बरसे फ़ोन पर देखने और भांग चढ़ाए ढोल-जाँझ लेकर फाग-चैता गाने वालों में घुल जाने का अंतर है. अंतर है ... हुडदंग का और 'ओ माय गॉड ! हाउ कैन..' का. अंतर है उन्मुक्त प्रवाह में शामिल होने का और दूर से उसमें मीन-मेख करने का.
[ट्विटर पर पता चला होली को महिला विरोधी और पता नहीं क्या क्या विरोधी करार दिया गया ! फेमिनिस्ट तो खैर वैसे ही एक स्तर के बाद दिमाग से वैर पाल लेते हैं. फेमिनिस्ट ही नहीं किसी भी 'वाद' वाले. पिछले दिनों एक महिला मित्र ने हार्वर्ड क्लब में एक फेमिनिस्ट समूह में कह दिया कि मेरा पति तो... तो बात सुन कर ही सबका मुंह लाल हो गया. उनके गले ही नहीं उतरा कि एक तो पुरुष ऊपर से पति अच्छा हो कैसे सकता है ? ! ऐसा भी होता है क्या ! क्योंकि ये तो फेमिनिस्ट-वाद की मूल धारणा के खिलाफ ही बात हो गयी ! खैर. अपनी अपनी सोच। अपने अपने संस्कार! ये सब बात नहीं करनी चाहिए देखिये असली बात ही डीरेल हो गयी इनके चक्कर में]
- फगुआ माने मदमस्त मादक (ये भी चीप?) और होली माने.. सेक्सी कह लो अगर वो चीप नहीं लग रहा तो. निराला का प्रिय-कर-कठिन-उरोज-परस कस कसक मसक पढ़ा है? वैसे ...घुमा फिरा के दोनों एक्के है.
- मतलब दोनों एक ही है?.
- अब जो है सो है. अब कहो कि आम पर फूल लगे हैं और कहो कि आम बौरा गये हैं तो एक ही बात तो नहीं होगी ? कुछ तो कारण है कि उसे बौराना कहते हैं ?
- तुम बौरा गए हो.
- अब तो बात ही ख़त्म ! हद हो ली.
~Abhishek Ojha~
बढ़िया लिखा है
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