tag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post7621189808752116501..comments2023-10-26T09:37:37.046-04:00Comments on ओझा उवाच: छुट्टी कथा: एक दिवसीय किसानAbhishek Ojhahttp://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-9696467710724355812009-05-12T17:36:00.000-04:002009-05-12T17:36:00.000-04:00ग्राम्य जीवन
मुझे, एक स्वप्न सा ही
लगता है -
आप...ग्राम्य जीवन <br />मुझे, एक स्वप्न सा ही <br />लगता है -<br /> आप नसीबवाले हैँ <br />जो घर की खेती से जुडी क्रियाएँ देख रहे हैँ <br />-अब बता भी दीजिये अभिषेक भाई, ये कौन सा अन्न है ? <br />- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-55875971780870081432009-05-11T12:32:00.000-04:002009-05-11T12:32:00.000-04:00सटीक एवं सार्थक पोस्टसटीक एवं सार्थक पोस्टयोगेन्द्र मौदगिलhttps://www.blogger.com/profile/14778289379036332242noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-83714661279029160822009-05-09T09:32:00.000-04:002009-05-09T09:32:00.000-04:00साधारणता एक ब्लॉगर के विचार टिपण्णी कमाने के अलावा...साधारणता एक ब्लॉगर के विचार टिपण्णी कमाने के अलावा और किसी काम के नहीं होते !...aisa to nahi hai..kam se kam aap apni baat logo se share kar sakte hai...<br />टिपण्णी boht kuchh hai sab kuchh nahi....nice post....डिम्पल मल्होत्राhttps://www.blogger.com/profile/07224725278715403648noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-92192564333237572452009-05-08T12:53:00.000-04:002009-05-08T12:53:00.000-04:00सत्य वचनसत्य वचनदिलीप कवठेकरhttps://www.blogger.com/profile/16914401637974138889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-77023944788279134672009-05-08T11:53:00.000-04:002009-05-08T11:53:00.000-04:00अलग विषय पर अच्छा लिखा है।अलग विषय पर अच्छा लिखा है।Neeraj Badhwarhttps://www.blogger.com/profile/15197054505521601188noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-89585740842402274052009-05-07T15:33:00.000-04:002009-05-07T15:33:00.000-04:00थ्रेशर से गांव में बीता बचपन याद आ गया...
और चित्...थ्रेशर से गांव में बीता बचपन याद आ गया...<br /><br />और चित्र में शायद गेंहूं ही है...<br /><br />शेष उस कथित विवादस्पद पंक्ति से मैं तो पूरी तरह सहमत हूँगौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-72999521892173148272009-05-07T02:50:00.000-04:002009-05-07T02:50:00.000-04:00मगर आपका कोई भी लेख मैंने ऐसा नहीं देखा जो टिप्पणी...मगर आपका कोई भी लेख मैंने ऐसा नहीं देखा जो टिप्पणी कमाने के उद्देश्य से लिखा गया हो आप तो ज्यादार नई नई जानकारियां ही देते हैंBrijmohanShrivastavahttps://www.blogger.com/profile/04869873931974295648noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-68419761321490206732009-05-06T14:28:00.000-04:002009-05-06T14:28:00.000-04:00मेरे बगीचे के बाद एक कच्चे रास्ते के बाद खेत ही दि...मेरे बगीचे के बाद एक कच्चे रास्ते के बाद खेत ही दिखते हैं। जब वहाँ अनाज निकाला जाता है तो दिन रात लगातार यह काम होता रहता है। मैं देखती रहती हूँ। कटाई के दिनों में प्राय: एक गाड़ी निकलने वाली सड़क पर हार्वेस्टर चल रहे होते हैं और गाड़ी निकालने के लिए काफ़ी प्रयास करना पड़ता है।<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-46050994435405213752009-05-06T11:20:00.000-04:002009-05-06T11:20:00.000-04:00सही है समीर जी की टिप्पडी .वैसे देश हमारा कृषि प्र...सही है समीर जी की टिप्पडी .वैसे देश हमारा कृषि प्रधान ऐसे ही नहीं है .देश का किसान अभी भी केवल इसी चिंता में है की कैसे फसलों को सुरछित घर के अंदर ले जाये .जरा सी चूक होने पर उसके बाल -बच्चे क्या खायेंगे साल भर और हम लोग भी .डॉ. मनोज मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07989374080125146202noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-22787954089126601592009-05-06T10:56:00.000-04:002009-05-06T10:56:00.000-04:00आपकी इस पोस्ट पे वारा जा रहा था आखिर की कुछ लाइने ...आपकी इस पोस्ट पे वारा जा रहा था आखिर की कुछ लाइने गड़बड़ कर गयी .समीर भाई ने मेरे दिल की बात कही......डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-68464672432444625432009-05-06T09:13:00.000-04:002009-05-06T09:13:00.000-04:00अब तक कुछौ बचा रह गया है क्या कहने से !अब तक कुछौ बचा रह गया है क्या कहने से !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-32956104557010816752009-05-06T08:17:00.000-04:002009-05-06T08:17:00.000-04:00हम भी पिछले दो सालों से अपना गेहूं हार्वेस्टर से ...हम भी पिछले दो सालों से अपना गेहूं हार्वेस्टर से ही कटवा रहे हैं। मजदूर कम मिलते हैं और हमारे यहां बिजली की भी घोर किल्लत रहती है। जितने दिन गेहूं की फसल खेत में खड़ी रहती है किसान की जान सांसत में रहती है कि कब ओले पड़ जाएं या आग में सबकुछ स्वाहा हो जाए। ऐसी स्थिति में भूसा के नुकसान का घाटा देखते हुए भी थ्रेसर की तुलना में हार्वेस्टर से कटाई में लाभ ही लाभ दिखता है। <br /><br />आप ट्रैक्टर से दवरी की जो बात कह रहे हैं, उसमें भी थ्रेसर की जरूरत पड़ती है जो आपके फोटो में भी दिख रहा है। यह बिजली से चलनेवाले थ्रेसर से कई गुना अधिक क्षमता वाला होता है और हमारे यहां इसे बोलचाल की भाषा में हाबा-डाबा कहते हैं। और आप बिल्कुल सही कह रहे हैं, यह किसानों के लिए बहुत महंगा पड़ता है। इसीलिए इसे मजबूरी में ही लोग अपनाते हैं।<br /><br />हमारे यहां छोटे-छोटे जोतों को देखते हुए इस तरह के छोटे हार्वेस्टर की सख्त जरूरत है जो भूसा भी तैयार कर दे। लेकिन हमारे यहां कृषि अनुसंधान की जो हालत है, अब उसका क्या कहा जाए।<br /><br />हार्वेस्टर से धान भी कट जाता है। लेकिन यह उन्हीं खेतों में संभव हो पाता है, जिनकी मिट्टी में नमी पूरी तरह समाप्त हो चुकी हो। अन्यथा वजनी होने के चलते इसके पहिए मिट्टी में धंसने लगते हैं।<br /><br />आपने अपनी छुट्टी का कुछ समय धरती मां के आंचल में भी बिताया, बहुत अच्छा लगा। धन्यवाद।Ashok Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/14682867703262882429noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-8564903307548159452009-05-06T06:56:00.000-04:002009-05-06T06:56:00.000-04:00वैसे भी साधारणता एक ब्लॉगर के विचार टिपण्णी कमाने ...<B>वैसे भी साधारणता एक ब्लॉगर के विचार टिपण्णी कमाने के अलावा और किसी काम के नहीं होते!</B>----------<br />थ्रैशिंग अपार्ट, यह पंक्तियां ज्यादा बढ़िया थ्रैशिंग कर रही हैं। :) <br />और मुझे कहने की जरूरत नहीं कि मैं सहमत हूं!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-77851541368082751842009-05-06T06:32:00.000-04:002009-05-06T06:32:00.000-04:00Udan Tashtri ji aur Tau Rampuriya ji ki baat bilku...Udan Tashtri ji aur Tau Rampuriya ji ki baat bilkul sahi hai...<br /><br />achhi post...Vineeta Yashsavihttps://www.blogger.com/profile/10574001200862952259noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-89070994548204034842009-05-06T04:39:00.000-04:002009-05-06T04:39:00.000-04:00gramin jeevan ko kareeb se dekhne ka mauqa nahin m...gramin jeevan ko kareeb se dekhne ka mauqa nahin mila hai. Aapki is post se katai ke tareekon mein aaj ho rahe badlav ki jankari mili. dhanyawaad.Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-36697147501865514052009-05-06T04:16:00.000-04:002009-05-06T04:16:00.000-04:00आपकी पोस्ट पढ कर हमें भी अपने बचपन के दिन याद आ ग...आपकी पोस्ट पढ कर हमें भी अपने बचपन के दिन याद आ गये, जब कभी कभी हम भी शौकिया मडाई में हिस्सा लेते थे।<br /><br />-----------<br /><A HREF="http://sciblogindia.blogspot.com/" REL="nofollow">SBAI</A> <A HREF="http://tasliim.blogspot.com/" REL="nofollow">TSALIIM</A>adminhttps://www.blogger.com/profile/09054511264112719402noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-16087236418879778902009-05-06T03:27:00.000-04:002009-05-06T03:27:00.000-04:00बहुत जबरदस्त पोस्ट.
मैंने थ्रेसर तक देखा है. उसके...बहुत जबरदस्त पोस्ट.<br /><br />मैंने थ्रेसर तक देखा है. उसके पहले बैलों को लगाकर कांटेदार मशीन चलाई जाती थी. मशीन पर बच्चे चढ़कर मज़ा लेते थे. उससे भी पहले केवल बैल फेरी लगाते थे.<br /><br />ऊपर रखा अनाज मुझे सरसों लग रहा है. वैसे अशोक जी का इंतजार है. वे बताएं तो पता चले.Shivhttps://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-6661792866305868992009-05-06T02:00:00.000-04:002009-05-06T02:00:00.000-04:00विचार टिप्पणी कमाने के आलावा बहुत कुछ नयी जानकारी ...विचार टिप्पणी कमाने के आलावा बहुत कुछ नयी जानकारी भी दे देते हैं:) बहुत वक़्त पहले गांव में यह सब बहुत उत्सुकता से देखते रहते थे .अब तो सिर्फ चित्र रह गए हैं ..गेहूं ही है यह ..रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-67694402226832024212009-05-06T00:32:00.000-04:002009-05-06T00:32:00.000-04:00भाई इस मशीनी युग मे आदमी भी धीरे धीरे काम करना भूल...भाई इस मशीनी युग मे आदमी भी धीरे धीरे काम करना भूल रहा है. आज गांव के बच्चे भी खेती किसानी के कामों के बारे मे नही जानते जबकि हमारे हाथ आज भी कडक हैं.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-725279602003959182009-05-05T23:31:00.000-04:002009-05-05T23:31:00.000-04:00@उड़न तश्तरी: इसीलिए तो मैंने 'साधारणता' शब्द लगा...@उड़न तश्तरी: इसीलिए तो मैंने 'साधारणता' शब्द लगाया था. वैसे आपकी बात बिलकुल सच है. जल्दीबाजी के पोस्ट में ऐसा ही होता है. मैंने तो ये सोच के लिखा था की 'अब फोटो तो ब्लॉग पर डालने के लिए ही खीच रहा था.' अर्थात एक ब्लॉग पोस्ट से ज्यादा की क्रियेटिविटी नहीं थी उस समय :-)Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-452247653794427462009-05-05T21:43:00.000-04:002009-05-05T21:43:00.000-04:00गरीब मजदूर भागेगा नहीं तो क्या करेगा।
ये मशीनें ह...गरीब मजदूर भागेगा नहीं तो क्या करेगा। <br />ये मशीनें हाथ से कामकरके पेट भरने वालों को सता रही हैं।<br />मशीनों ने मजदूर को बेकार और निकम्मा बना दिया। कुछ के लिए अच्छी है मशीनी क्रांति, पर कुछ के लिए आत्मह्त्या का कारण है। <br />बिजली और प्रदूषण अलग। <br />हमारे बचपन में फसल कटाई के समय मजदूर ढूंढे से नहीं मिलते थे।प्रेमलता पांडेhttp://pasand.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-54461964226244073602009-05-05T21:30:00.000-04:002009-05-05T21:30:00.000-04:00उडनतश्तरी की टिप्पणी महत्वपूर्ण है। और यह गेहूँ ही...उडनतश्तरी की टिप्पणी महत्वपूर्ण है। और यह गेहूँ ही है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-7372616686960880042009-05-05T20:50:00.000-04:002009-05-05T20:50:00.000-04:00साधारणता एक ब्लॉगर के विचार टिपण्णी कमाने के अलावा...साधारणता एक ब्लॉगर के विचार टिपण्णी कमाने के अलावा और किसी काम के नहीं होते !<br /><br />-यह सुन कर अजीब सा लगा..कोई भी विचार यूँ ही जाया नहीं होता..आज नहीं तो कल...कहीं न कहीं उपयोगी सिद्ध होगा ही. अगर सब यही सोच लें तो लेखन क्रांति का तो अंत हुआ ही समझो. कलम की ताकत जैसी बातें तो इतिहास हो लेंगी भाई.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-9452637190772192072009-05-05T19:40:00.000-04:002009-05-05T19:40:00.000-04:00हार्वेस्टर में सबसे बड़ी दिक्कत भूसे के नुक्सान ही ...हार्वेस्टर में सबसे बड़ी दिक्कत भूसे के नुक्सान ही की है ........जोकि कई किसानो के लिए बड़ा जरूरी होता है !!<br />आखिर यह उनके जानवरों के खिलाने के लिए साल भर का जरिया होता है !!<br /><br /><br /><A HREF="http://primarykamaster.blogspot.com/" REL="nofollow">प्राइमरी का मास्टर </A><A HREF="http://fatehpurcity.blogspot.com/" REL="nofollow"> फतेहपुर</A>प्रवीण त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/02126789872105792906noreply@blogger.com