‘
यात्रा के पहले... समान पैक करते हुए...
एटीएम के कुछ पुराने रसीद,
म्यूजियम-ज़ू के टिकट और साथ में पाँच-पाँच रुपये के दो बस टिकट,
एक कॉफी बिल – एक हॉट दूसरी कोल्ड,
बिल कॉफी का है पर उस शाम आइसक्रीम भी खाई थी – एक कोण, दूसरी स्टिक।
कुछ पन्नों पर लिखे नोट्स - एक पर बस एक नंबर: 9.28,
एक ब्लूइश गिफ्ट पैकिंग के कागज, इटालिक्स में लिखा मेरा नाम... विथ लव।
एक चॉक्लेट रैपर – लिंट,
डिनर के लिए ‘पोस्ट-ईट’ नोट पर लिखा किसी का एक नोट,
दो आधे भरे फॉर्म्स - जिन्हे भरते हुए कुछ गलतियाँ हो गयी थी,
बेतरतीब तरीके से लिखे कुछ फोन नंबर्स – पता नहीं किसके हैं !
ट्रैफिक पुलिस का काटा एक चालान – 250 रुपये,
और उसी तारीख के फिल्म के दो टिकट – स्क्रीन नंबर 4।
पहला हवाई टिकट, पहले वीज़ा एप्लिकेशन की रसीद – स्विस एम्बेसी नई दिल्ली।
किताब के आखिरी पन्ने पर मेमोरीलेस ‘मार्कोव’ डिस्कस करते हुए बनाया गया ग्राफ,
ग्राफ पर ‘प्रेजेंट मोमेंट’ - 9 पीएम।
हॉस्टल के रूम एलॉटमेंट की पर्ची,
एक किताब का पन्ना जिस पर लिखे नोट्स – किसी और को समझ आ ही नहीं सकते,
वैसे ही जैसे फोन पर बात करते हुए खींची गयी एक दूसरे कागज पर ‘रैंडम’ लाइनें और कुछ शब्द।
ऐसे ही ढेर सारा बेकार, यादों का कचरा -
जैसे - एक दस डॉलर का नोट जिस पर किसी का सिग्नेचर ले लिया था,
उसकी कीमत रुपये के गिरने से नहीं बल्कि वक़्त के बदलने से अब कुछ और ही हो गयी है –
बस एक कागज ही तो रह गया है... नोट तो रहा नहीं,
भगवान पर चढ़ाया फूल हो गया है वो – क्या करूँ उसका? !
~Abhishek Ojha~
PS: न गद्य, न पद्य। ना सच - ना झूठ ! :)
:)
ReplyDeleteपोस्ट बहुत इंटरेस्टिंग लग रही थी जब तक PS पर नहीं पहुंचे थे...ये तो पोस्ट से भी ज्यादा इंटरेस्टिंग इन्फोर्मेशन हो गयी :) :)
ReplyDeleteबहुत कुछ है पर्स में, बो भी तो बताओ ;-)
ReplyDeletegajab....
ReplyDeleteयादों को कचरा मत समझो बाबू...ये यादें ही हैं जो हमें मुश्किल क्षणों में संबल देती हैं !
ReplyDeleteयादें मानों, करीने से चुनी बेमानी चीजें.
ReplyDeleteBeautiful!!
ReplyDeleteबड़े दिन बाद ब्लॉग खोला तो सबसे ऊपर ये नज़र आया... अच्छा है! और हाँ! ऐसा ही है।
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ReplyDeleteबेतरतीब वस्तुओं का सुघड़ प्रस्तुतिकरण!! ला-जवाब!!
ReplyDeleteभगवान पर चढ़ाया फूल हो गया है वो – क्या करूँ उसका? !
ReplyDeleteसिम्पल. इसे तो गणपति बप्पा की तरह विसर्जित ही कर दें - किसी नदी या तालाब में.
मगर फिर ये आपको और हांट करेगा :)
जीवन के सरल सत्य न जाने कितना कुछ कहने में सक्षम हैं।
ReplyDeletesometimes it happens.rest may be OK.
ReplyDeleteNICE POST.
आप बीती तो है पर जगबीती से कम नही ।
ReplyDelete:)
ReplyDeleteइस बैग को खुल जा सिम सिम बोलने के लिये क्या करना पड़ता है :P
ReplyDeleteसब झाड झूड आगे बढिए
ReplyDeleteVery nice post.....
ReplyDeleteAabhar!
Mere blog pr padhare.
ई सब जो इधर उधर की बातें होती हैं न, अलग अलग डाईरेकशन, ये बड़ी मारू टाइप होती हैं :)
ReplyDelete☺ वाह
ReplyDeleteभूल कर भी विसर्जित न करूँ मैं इन्हें किसी नदी में। ये तो यादों की वो मोतियाँ हैं जिसे मैने पूरा जीवन डूब कर जुटाया है। कभी अकेला पड़ा तो उलट-पुलट खेलुंगा इनसे। ये प्रेमिका की शादी के बाद विसर्जित करने वाले प्रेम पत्र नहीं कि नाव मैं बैठ विसर्जित कर दूँ इन्हें गंगा की लहरों में यह कहते हुए...
ReplyDeleteकर दिये लो आज गंगा में प्रवाहित
सब तु्म्हारे पत्र, सारे चित्र, तुम निश्चिंत रहना।:)
:)
Deleteई सब का है जी?
ReplyDeleteएक ऐसे ही सामानों से भरा ग़त्ता मेरे घर , जहाँ मैं चार साल से नहीं जा पाया हूँ , पर भी रखा है । इस बीच ना जाने क्या क्या बदल गया , अब कभी जाऊँगा और इसे खोलूँगा तो बस दुआ ये रहेगी की चूहा महाराज ने यादों पर कैंची ना चला दी हो :)
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