tag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post2749679709598821620..comments2023-10-26T09:37:37.046-04:00Comments on ओझा उवाच: सब कुछ सापेक्ष है... (भाग १ )Abhishek Ojhahttp://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-29975159375176998492008-09-10T08:38:00.000-04:002008-09-10T08:38:00.000-04:00बहुत घूम घुमा कर इस पोस्ट तक पहुंचे हैं, मजेदार पो...बहुत घूम घुमा कर इस पोस्ट तक पहुंचे हैं, मजेदार पोस्ट रही। मुझे भी अक्सर इस परेशानी से दो चार होना पड़ता है।... वही छू लेने में क्या हर्ज है ?<BR/>मैने इन दिनों एक नया रास्ता निकाला है कहीं बाहर खाना होता है, नई जगह पर जहां संदेह हो, (क्यों कि यहां दक्षिण में <B><A>मीटेरियन</A></B> होटल्स पर लिखा नहीं होता कि यह मीटेरियन है। )<BR/>तो मैं होटल वाले से पूछता हूँ कि भाई <B>नॉन वेज</B> मिलेगा ? अगर होटल वाला उत्साहित हो कर कहता है हाँ हाँ क्यों नहीं बैठिये, तो अपने वहां से निकल पड़ते हैं और अगर होटल वाला चेहरा लटका कर बोले कि नहीं मिलेगा तो अपन राजी राजी होटल में जा कर खा लेते हैं। <BR/>:)सागर नाहरhttps://www.blogger.com/profile/16373337058059710391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-56444336511206140702008-09-07T11:33:00.000-04:002008-09-07T11:33:00.000-04:00Well written post with many points to think about....Well written post with many points to think about.लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-17819444262700528962008-09-07T03:08:00.000-04:002008-09-07T03:08:00.000-04:00bhai aapki party ke hain par mansariyon ke bech ra...bhai aapki party ke hain par mansariyon ke bech rahte rahte mujhe unke sath khana khane ki aadat pad gayi hai.Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-51270905940415835882008-09-07T00:19:00.000-04:002008-09-07T00:19:00.000-04:00sach hi to hai.....mujhe bhi shaakahari bhojan ke ...sach hi to hai.....mujhe bhi shaakahari bhojan ke liye taklif to hui thi europe me.....aap ki shaili bahut hi alag si hai...arthttps://www.blogger.com/profile/12939686404150553798noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-22560184539789548752008-09-06T22:29:00.000-04:002008-09-06T22:29:00.000-04:00निवेदन आपलिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चा...<B><BR/><BR/>निवेदन</B> <BR/>आप<BR/><BR/>लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है. <BR/><B><BR/><BR/>ऐसा ही सब चाहते हैं.</B> <BR/>कृप्या<BR/><BR/>दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें. <BR/>हिन्दी<BR/><BR/>चिट्ठाकारी को सुदृण बनाने एवं उसके प्रसार-प्रचार के लिए <B>यह कदम अति महत्वपूर्ण है,</B> इसमें अपना भरसक योगदान करें. <BR/>-<BR/><BR/>समीर लाल <BR/>-<A HREF="http://udantashtari.blogspot.com/" REL="nofollow"><BR/><BR/>उड़न तश्तरी</A>Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-65535691921503863102008-09-06T17:05:00.000-04:002008-09-06T17:05:00.000-04:00आपकी पोस्ट पढने के बाद ऐक ही विचार आ रहा है मन में...आपकी पोस्ट पढने के बाद ऐक ही विचार आ रहा है मन में ........<BR/><BR/><BR/><BR/><BR/>अच्छी पोस्ट है पढ़ कर मज़ा आ गया :)<BR/><BR/>वीनस केसरीAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-61595808988897014442008-09-06T04:21:00.000-04:002008-09-06T04:21:00.000-04:00सकारात्मक चिंतन ! धन्यवाद ! हमारे यहाँ मच्छर एक्सप...सकारात्मक चिंतन ! धन्यवाद ! हमारे यहाँ मच्छर एक्सपोर्ट क्वालिटी के उपलब्ध हैं ! अगर किसी को रेस्टोरेंट के लिए थोक में चाहियें तो संपर्क कर सकते हैं !ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-47700092328019117552008-09-05T21:31:00.000-04:002008-09-05T21:31:00.000-04:00आप सोचिये अगर भारत में लोग मच्छर फ्राई खाने लगें त...आप सोचिये अगर भारत में लोग मच्छर फ्राई खाने लगें तो समस्या ही ख़त्म. बीमारी भी ख़त्म और खाद्य समस्या कुछ तो कम होगी, क्यों? <BR/><BR/>Bhai wah wah<BR/>सामयिक विषय..<BR/>आपके चिंतन का जवाब नहीं मित्र..<BR/>बधाई....योगेन्द्र मौदगिलhttps://www.blogger.com/profile/14778289379036332242noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-79460745747423376832008-09-05T14:54:00.000-04:002008-09-05T14:54:00.000-04:00ओझा भाई हम तो १८ साल से शाकाहारी हो गये हे, कहो तो...ओझा भाई हम तो १८ साल से शाकाहारी हो गये हे, कहो तो अपने हिस्से के मच्छर आप क भेज दे, मुस्किल तो हम होती हे जब हम युरोप मे कही घुमने जाते हे, <BR/>धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-28537891912696823632008-09-05T14:12:00.000-04:002008-09-05T14:12:00.000-04:00आपकी पोस्ट मनमोहन जी या पी. चिदंबरम जी ने तो नहीं...आपकी पोस्ट मनमोहन जी या पी. चिदंबरम जी ने तो नहीं पढ़ी। पढ़ ली होगी तो मच्छर फ्राई का प्रचार प्रसार जरूर केन्द्र सरकार के एजेंडे में आ जाएगा।Ashok Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/14682867703262882429noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-39601873713553071042008-09-05T08:25:00.000-04:002008-09-05T08:25:00.000-04:00This comment has been removed by the author.Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-48397384742993844722008-09-05T07:10:00.000-04:002008-09-05T07:10:00.000-04:00जीव जीवस्य भोजनम! बस कुछ लोग तो होते हैं जो सिद्धा...जीव जीवस्य भोजनम! <BR/>बस कुछ लोग तो होते हैं जो सिद्धान्त का अपवाद होते हैं! अलग-थलग और सिरफिरे!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-77160075486240568942008-09-05T04:00:00.000-04:002008-09-05T04:00:00.000-04:00सच कहूँ तो सारा सिस्टम इंसान ने गडबडा दिया है .......सच कहूँ तो सारा सिस्टम इंसान ने गडबडा दिया है .....जहाँ मजबूरी है वहां तो ठीक है पर अब सारा मामला स्वाद पर टिका है ....स्वाद के लिए सारे तर्क वितर्क है .......ओर ये भी सच है की हमारी intestine मॉस खाने के लिए नही बनी है ...बेचारी ओवेर्तिमे करके उसे पचा लेती है ओर न जाने क्या क्या पचाती है ?कभी कभी कभी तो सोचता हूँ की डरती होगी की अब क्या आयेगा ? साला आदमी आराम नही करने देता ...कोई वक़्त नही......इस स्वाद की वजह से सारा स्वास्थ्य गड़बड़ है.....<BR/>लम्बी पोस्ट की चिंता मत करो ...कंटेंट है तो फ़िर सब कुछडॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-3905000295328118472008-09-05T02:37:00.000-04:002008-09-05T02:37:00.000-04:00मुझे तो खासी दिक्कत आती है कोलकाता में वहां वेज बो...मुझे तो खासी दिक्कत आती है कोलकाता में वहां वेज बोलकर सब्जी में माछ-मुडी मिला देते हैं,चारो तरफ़ मछली -मछली गंध आती है पर क्या करें किसी तरह मैनेज करना पड़ता है..ओडिसा में केकड़े की पकोड़ी बनाते हैं..रांची में आदिवासी बहुल इलाके में चींटी भुजिया भी मिलाती है.<BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/><BR/>------------------------------------------<BR/>एक अपील - प्रकृति से छेड़छाड़ हर हालात में बुरी होती है.इसके दोहन की कीमत हमें चुकानी पड़ेगी,आज जरुरत है वापस उसकी ओर जाने की.L.Goswamihttps://www.blogger.com/profile/03365783238832526912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-53052581798884470432008-09-05T01:03:00.000-04:002008-09-05T01:03:00.000-04:00अपन का कुविचार यह है कि जब मांस खाना है तो जो कुछ ...अपन का कुविचार यह है कि जब मांस खाना है तो जो कुछ खा सको खाओ, कोई परहेज़ मत करो। बीफ़ भी खा सको तो खा लो। मानवीय तर्क दो तो सही मगर धार्मिक तर्क मत दो। नागा लोग कुत्ते खाते हैं तो जे एन यू में कुतों की समस्या नहीं, मच्छर खाने लगे तो वह समस्या भी हल हो जाएगी। आपकी बातों से कमोबेश सहमति है।महेनhttps://www.blogger.com/profile/00474480414706649387noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-21330295428922019202008-09-05T00:29:00.000-04:002008-09-05T00:29:00.000-04:00आपका धन्यवाद जो आपने ऐसा विषय उठाया! बहुत गंभीर सम...आपका धन्यवाद जो आपने ऐसा विषय उठाया! बहुत गंभीर समस्या है. एक-दो पोस्ट लग जायेंगी समाधान करने में - इजाज़त है क्या?Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-87894325629451921792008-09-04T23:42:00.000-04:002008-09-04T23:42:00.000-04:00भाई साहब, आपने तो कन्फ़्यूज कर दिया। इस दुनिया में ...भाई साहब, आपने तो कन्फ़्यूज कर दिया। इस दुनिया में जो भी जैविक पदार्थ अस्तित्व में हैं, उनका उपभोग मनुष्य अपनी पसन्द-नापसन्द के अनुसार करने का प्रयत्न करता है। किसी की पसन्द-नापसन्द तो तर्कातीत होती है। एक की दूसरे को समझ नहीं आएगी...<BR/><BR/>हम भी आप ही की तरह अपने को समझा नहीं पाते हैं...<BR/><BR/>मजेदार चर्चा वाली पोस्ट...सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-79389095221873592402008-09-04T22:55:00.000-04:002008-09-04T22:55:00.000-04:00क्या क्या खाते हैं लोग ..उफ्फ्फ... शाकाहारी होना स...क्या क्या खाते हैं लोग ..उफ्फ्फ... शाकाहारी होना सबसे अच्छा है ..पर देश से बाहर जाने पर इस तरह की समस्या आती है ..रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-37038921606487198092008-09-04T22:47:00.000-04:002008-09-04T22:47:00.000-04:00आप से पूरी तरह से सहमत बाबा आइंस्टाइन सही फरमा गए ...आप से पूरी तरह से सहमत बाबा आइंस्टाइन सही फरमा गए हैं। दुनियाँ की सारी चीजें सापेक्ष ही हैं। और दूध भी शाकाहारी तो नहीं। वह भी हमें एक जन्तु से ही प्राप्त होता है। पर उसे हम शाकाहारी मानते हैं। <BR/><BR/>मुझे और बेटे-बेटी को भी यह समस्या सब स्थानों पर आती है।<BR/>पर अपनी तरह जीना ठान ले तो मुश्किल नहीं है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8813075190326884926.post-81203401154928363342008-09-04T21:06:00.000-04:002008-09-04T21:06:00.000-04:00सुबह पढ़कर ही कुछ कह पायेंगे...अभी तो बस बता रहे है...सुबह पढ़कर ही कुछ कह पायेंगे...अभी तो बस बता रहे हैं कि हमें पता है कि आपने यह छापा है और हमने सरिया लिया है.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com