Mar 31, 2012

अच्छा-बुरा !

 

“आप भी ड्रिंक नहीं करते?” – पहली बार सम्बोधन अक्सर ‘आप’ ही होता है। पर ऋचा मुझे हमेशा आप ही बोलती रही। ऑफिस की पार्टी में जब सभी नशे में धुत थे तब संभवतः ऋचा उस भीड़ में अकेली महसूस कर रही थी। या फिर सबको पता था कि हरीश की गर्लफ्रेंड है तो कोई उससे बात करने की कोशिश भी नहीं कर रहा था। वरना ऐसी पार्टियों में लोग लड़कियों को अकेला कहाँ रहने देते हैं। मुझे तो ऐसी पार्टियों की आदत सी हो चली थी पर ऋचा के लिए संभवतः पहला मौका था। उस चकाचौंध में अकेलापन महसूस कर रहे शायद एक नहीं दो लोग ही थे।

‘हाय! हाऊ आर यू? नहीं मैं नहीं पीता’ – मैंने ऋचा की तरफ मुड़ते हुए कहा था। तब मेरे मन में लीव-इन रिलेशनशिप वाली लड़कियों को लेकर कई तरह के पूर्वाग्रह थे। मरून-ब्लैक सलवार सूट में... ऋचा ऐसी लड़की थी जिसे कोई भी लड़का पहली नजर में खूबसूरत लड़की कहता। खूबसूरत ही नहीं – ‘अच्छी लड़की’ भी। सुलझी हुई, सहज, कम बोलने वाली।

ऋचा और हरीश को साथ रहते हुए तब तकरीबन एक साल हो चुके थे। हरीश हमारे ग्रुप का स्टार हुआ करता था। इंटेलिजेंट, हैंडसम, ऑफिस में जम कर काम करने वाला और फिर सबकी मदद करने वाला एक एक भला लड़का।

‘आप और हरीश एक ही कॉलेज में थे?’ मैंने बात को आगे बढ़ाया।

‘नहीं, हमने साथ इंटर्न किया था। इंडियन ऑयल – मथुरा में। हरीश तब रुड़की में था और मैं बैंगलोर से आयी थी’। मेरी ऋचा से उस दिन पहली मुलाक़ात सी ही बात हुई। बहुत कम फॉर्मल बातें। पर उतनी ही देर में मुझे हरीश की किस्मत से थोड़ी ईर्ष्या तो हुई।

बाद के दिनों में मैं हरीश से कभी-कभी पूछ लेता – ‘ऋचा कैसी है?’। ‘शादी कब कर रहे हो?’ ये सवाल मैंने पुछना धीरे-धीरे छोड़ दिया। मुझे हरीश का हर बार टालना... व्यक्तिगत मामले में हस्तक्षेप लगा। मेरे अलावा हमारे ऑफिस के किसी और लड़के से ऋचा ने कभी बात नहीं की थी। तो बाकी लोगों को भी मेरा ये पूछना शायद अजीब लगता था।

एक दिन ऋचा का बैंगलोर से कॉल आया - ‘हरीश कैसा है?’

‘ठीक है... तुम...?’

‘कुछ नहीं... बस इतना ही पूछना था। आप कैसे हैं?‘ इससे आगे बात नहीं हुई। मैंने भी इससे अधिक ध्यान नहीं दिया।

मुंबई में बम ब्लास्ट होने के बाद जब फिर ऋचा का फोन आया तो... ‘हरीश तो लंदन चला गया, तुम्हें नहीं पता?’

‘आपके पास उसका नंबर है?’

‘हाँ. एक मिनट. देता हूँ’

अगले दिन ऑफिस में हरीश ने मुझे फोन किया ‘हे अनुराग, डिड यू टॉक तो ऋचा रिसेंटलि’।

‘यस, शी वाज वरिड अबाउट यू।’

‘या, आई नो। आई हैव बीन अ बिट बीजी लेटली, थैंक्स मैन’

उसके बाद हरीश के उस नंबर पर कभी फोन नहीं लगा। मेरी अब हरीश से बस फॉर्मल बातें होती। बस ओफिसियल बातें कभी किसी वीडियो कॉन्फ्रेंस में दिख जाता... उसकी खबर लेने के लिए ऋचा के कॉल अक्सर आते रहते। धीरे-धीरे ऋचा से बहुत सी बातें पता चलीं।

‘तभी तुमने शादी कर लेनी थी रिचा'– एक दिन मैंने कहा।

‘इतना आसान नहीं था अनुराग। आपको पता है मैं मुंबई कैसे आयी थी? मैं कैसे घर से हूँ? मेरे घर के लोग लीव-इन शब्द सुनकर क्या सोचते हैं? अभी मेरी क्या हालत है? आपको कुछ भी नहीं पता ...और आप सोच भी नहीं सकते। जब मैं पहली बार मुंबई गयी थी तब मैंने अपने घर पर कहा था कि मैं जॉब करने जा रही हूँ। सब कुछ छोड़कर चली गयी थी मैं हरीश के लिए। मैं तो कभी हॉस्टल में भी नहीं रही। यहीं बैंगलोर में घर से पढ़ाई की। मथुरा भी नहीं गयी होती तो... अच्छा हुआ होता। आपने शादी के बारे में पूछा न? क्या बताऊँ मैं आपको !... जब भी हरीश से कहती... उसका एक ही जवाब होता – ‘तुम्हें भरोसा नहीं मुझपर’ ! मैं अब भी नहीं समझ पाती कि कब से हरीश के मन में मुझे छोड़ने की बात थी... मुझे यकीन नहीं होता कि वो एक्टिंग कर सकता है इतने सालों तक। मैं तो बस हमेशा उसका कहा करती गयी... ! मुझे शुरू अपने घर पर कुछ कहने की कभी हिम्मत नहीं थी। बस उसके  लिए हरीश जो उपाय बताता गया मैं करती गयी... आपने कभी सब कुछ समर्पण कर देना जैसा सुना है?... छोड़िए, हरीश का नंबर है आपके पास?’

‘ऋचा, मेरे पास हरीश का ईमेल आईडी है और वही पुराना नंबर... !’

‘आप से क्यों कह रही हूँ मैं ये सब ! अपने आप से भी नहीं कह पाती मैं तो... पर मुझे जीने की इच्छा नहीं बची। क्यों जीऊँ मैं अब...’ - शायद ऋचा को ये भी लगा कि मैं जान बूझकर हरीश का नंबर नहीं दे रहा उसे।

ऋचा की बातों से मुझे डर लगता। कई बार ये भी लगता कि मैं कहाँ फंस गया हूँ इस चक्कर में। मैं उसे घंटो समझाता... पर क्या समझाता मैं? !

‘कैसे जी रही हूँ मैं ये बस मैं ही जानती हूँ। घरवाले, रिश्तेदार... क्या करने चली थी मैं? ! सब कुछ झूठ पर कब तब टिकता अनुराग... शायद शुरू से ही सब कुछ झूठ था या फिर मेरे मुंबई आ जाने के बाद हरीश बदल गया... मुझे नहीं पता... मुझे तो अब भी लगता है कि सब कुछ ठीक हो जाएगा ! मैं जानती हूँ... मैंने कोई गलती नहीं की। समय पीछे चला जाय तो मैं आज भी वही करूंगी... आपको कैसे समझाऊँ अनुराग... मुझे आपकी बातों पर हंसी आ जाती है। आप बहुत अच्छे हैं... लेकिन आपको कभी इश्क़ नहीं हुआ... आप नहीं समझ सकते। मैं क्या करूँ अनुराग?'

एक दिन ऋचा ने कहा - 'मुझे मरना नहीं है अनुराग... पर मैं ऐसे जी नहीं सकती’

‘ऋचा, तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी। जिंदगी में एक इंसान... इन्सान ही क्यों? कुछ भी हो जाये हमारे साथ... जब तक हमारा दिमाग चल रहा है... हमें अपने आपको समझा लेना है ऋचा। जिंदगी में बहुत कुछ है... अगर हमारे हाथ-पैर-आँख भी चले जाएँ तो क्या है? हम तब भी जीने का बहाना निकाल सकते हैं ऋचा। और तुम तो किसी ऐसे के लिए ये सब सोच रही हो जो... ‘

‘नहीं अनुराग, मैं तो अब भी समझ नहीं पायी कि ऐसा क्या हो गया! क्या चाहिए था उसे? क्यों उसने अचानक... ! मैं तो उसे दोष भी नहीं दे पाती... कारण ही नहीं पता मुझे तो... और... जीने का बहाना?... मैं भी ऐसा ही कह देती हूँ अनुराग... मैंने कहा न आपको इश्क़ ही नहीं हुआ कभी !’

मेरे न्यूयॉर्क आ जाने के बाद भी कभी-कभी ऋचा के फोन आते रहे। पिछले सप्ताह एक दोस्त ने मुझसे पूछा - ‘हरीश की शादी में नहीं आया तू?’

‘शादी? कब हुई?’

‘व्हाट ? सबको तो बुलाया था उसने? तुझे कैसे नहीं बुलाया ? स्ट्रेंज ! हम्म... 4-5 महीने हो गए’

मैंने अपने फोन का कॉल लॉग देखा ऋचा से तीन महीने पहले बात हुई थी। ‘हरीश कैसा है?’ तब भी उसने बस यही पूछा था।

‘मेरी बात नहीं होती, पर ठीक ही होगा’ तब मेरी तरह उसे भी ये नहीं पता था कि हरीश की शादी हो चुकी है।... तीन महीना शायद सबसे लंबा समय होगा जब ऋचा का कॉल नहीं आया हो मेरे पास। अब... ऋचा का नंबर एकजिस्ट नहीं करता! उसने मुझसे कहा था – ‘अनुराग, कुछ बुरा नहीं होता। लेकिन सब कुछ सबके लिए नहीं होता ! बस मेरी जगह मुझे नहीं होना था...’

हरीश को आज भी सभी एक अच्छे इंसान के रूप में जानते हैं। इंटेलिजेंट तो खैर है ही ! मैं आज भी ऋचा का उदाहरण एक अच्छी लड़की के रूप में देता हूँ। ...आई एम अफरेड शी डजन्ट एकजिस्ट एनीमोर....

...कुछ लोगों के हिसाब किसी बही-खाते में नहीं पाये जाते !

~Abhishek Ojha~

Mar 5, 2012

येनांग विकार: ! (पटना ११)

 

उस शाम रैली के चक्कर में ऑटो न मिलने का डर था तो बीरेंदर (उर्फ बैरीकूल) मुझे ड्रॉप करने आ गया। पाँच किलोमीटर दूर भी बीरेंदर को जानने वाले लोग मिलते गए। बीरेंदर ने जब कहा था कि अपना इलाका है... तो वो गलत नहीं था।

'का हो दमोदर? सुने आजकाल बरा माल कमाई हो रहा है? ई सुई घोंप के जो लौकी-नेनुआ बेच रहे हो। हमको सब मालूम है' बीरेंदर ने सब्जी का ठेला लगाने वाले दामोदर से पूछा।

'काहाँ बीरेंदर भैया... जीए भर के कमाईए नहीं है आ आपको खाली मलाइए दिख रहा है ! ठीके है,... जब खुदे मलाई चाभ रहे हैं त आपको दीखबे करेगा।'

'तुम्हरे बाबूजी आइसही थोरे नाम रखे थे दमोदर... जानते हैं भैया... दमोदर माने जिसके उदर में दाम हो ! बेटा तुम अइसही उदर में लमरी खोसते रहे न त एकदिन हलफनामा दे के तुम्हरा नाम लंबोदर कराना परेगा। आ बाबूजी कइसे हैं तुम्हरे? हेमा मालिनी को भुलाए की नहीं अभी तक?' - बीरेंदर ने दामोदर से पूछा।

हेमा मालिनी की बात पर दामोदर की शकल देख लगा कि उसने बस किसी तरह अपने को गाली देने से रोक लिया और अपने असीस्टेंट से बोला - 'साले ज़ोर ज़ोर से बोल नहीं त...'

बीरेंदर ने मुझे समझाया - 'जानते हैं भैया दमोदर के बाबूजी एयरपोर्ट प नौकरी करते हैं। आ जिस दिन हेमा मालिनी आई पटना... देख लिए... बुझ जाइए कि माने एक दम पास से... जईसे दमोदर है न बस एतने दूरी रहा होगा... है कि नहीं दमोदर? । आ उसके बाद जो हालत हुआ है उनका। शाम को घर आए आ पहिले त खाना-दाना कुछ नहीं खाये... जब चाची पूछी कि का हो गया त जो रोना चालू किए हैं... अरे जवानी के दिन में बड़का फैन थे हेमा मालिनी के'

'देखिये बीरेंदर भैया ठीक नहीं होगा.... बता दे रहे हैं !' आ तू भो** के का कर रहा है बोल ज़ोर से...' दमोदर ने ठहाके लगा रहे अपने असिस्टेंट को घुड़की दी। असिस्टेंट... "4 रुपये पौवा.... ताजा खींचा..." चिल्लाना शुरू हो गया।

'लेकिन दमोदर भाई जो जिंदगी जी लिए हैं न... का बताएं आपको !' बीरेंदर ने मुझसे कहा।

'हाँ अब जिंदगिए जीने का न फल मिल रहा है कि हिहाँ एएन कोलेज कर के सब्जी बेच रहे हैं...नहीं तो आपे जइसे हम भी हीरो होंडा नहीं दौराते आज?!' - दामोदर ने दार्शनिक अंदाज में कहा।

'लेकिन ई बात भी तो मानना परेगा कि आप का जैसा यहाँ केतना आदमी लाइफ जी पाता है ! जानते हैं भैया... दमोदर जब आईए में पढ़ते थे तब इनके बाबूजी पान के गुमटी प कहते – एगो पनामा दीहअ हो। आ 10 मिनट बाद दमोदर कहते - एगो किंगसाइज़ दीजिये त हो। एकदमे गर्दा उड़ान थे दमोदर' - बीरेंदर ने फिर दामोदर की खिंचाई की लेकिन ये बात दामोदर को बुरी नहीं लगी। उन्होने सगर्व स्वीकृति सी दी। बीरेंदर को पता है किसे कौन सी बात अच्छी लगेगी।

उधर दामोदर का असिस्टेंट फिर मजे लेकर बात सुन रहा था। दमोदर ने फिर उसे गालियां दी: 'तोहरी माँ के...बरा मजा आ रहा है तुमको... एक ठो गाहक नहीं आया अभी तक।'

'देखिये दमोदर भैया... एक ठो दस टकिया खातिर हम जेतना गला फार रहे हैं उ कम नहीं है। आ एक बात जान लीजिये हम अपना बाप का भी नहीं सुनते हैं ' - दमोदर के असिस्टेंट ने भी गाली के जवाब में अपनी बात कह दी।

'जीय रे करेंसीलाल... ससुर बाप का त हिहाँ कोई नहीं सुनता है  ! त ना सुन के तू कौन बरका तीरंदाज हो गया ?' - बीरेंदर ने दामोदर के असिस्टेंट से कहा।

इतनी देर में सामने से एक उचकते हुए सज्जन प्रकट हुए। बैरी को जैसे आनंद आ गया। - "का हो 'येनांग विकारः' का हाल? "

'देखिये भैया ये जो है न वो तृतीया विभक्ति का जीता जागता उदाहरण हैं। हम हमेशा परीक्षा में 'पादेन खंज:' ही लिखे हैं उदाहरण। हमेशा इन्हीं का स्मरण करके संस्कृत में पास हुए हैं।' - बीरेंडर ने उन्हें सुनाते हुए मुझसे कहा।

'सही है बीरेंदर तुम्हें अभी तक याद है?' -मैंने पूछा। येनांग को बुरा लगेगा या नहीं ये पूछना मैंने उचित नहीं समझा। बीरेंदर के मिलनसार होने पर मुझे अब कोई डाउट नहीं था । और मुझे ये भी पता था कि लोगों को मेरी अच्छी लगने वाली बातों से कहीं ज्यादा... बीरेंदर की बुरी लगने वाली बातें अच्छी लगती है।

'याद तो कुछ पढ़ा हुआ बात ऐसे है कि भैया अब क्या बताएं आपको - ई का य, उ का व तथा ऋ का र हो जाता है।' एक सांस में बोल गया बीरेंदर।

'क्या हो जाता है?' मैंने पूछा।

'अरे भैया इसे यण संधि कहते हैं। हमको जादे बुझाता तो नहीं था लेकिन जो रटा गया अब उ ई जनम थोरे भुलाएगा... कहिए त अभी का अभी पिरियोडिक टेबल लिख दें ! हलीनाकरबकसफर - बीमजकासरबारा' – फिर एक सांस में बोल गया बीरेंदर। इंप्रेसीव।

येनांग विकार: ने पूछा - 'आरे बीरेंदर ई बात बताओ ई नयेका बसवा गांधी मैदान जाएगा?'

'नहीं ई स्टेशन जाता है'

'लेकिन गांधी मैदान नई जाएगा त जाएगा कइसे ?' - येनांग ने पूछा।

'अब ई तो कोई बैज्ञानिके बता सकता है कि गांधी मैदान नहीं जाएगा त कइसे जाएगा ! हम कइसे बता दें? उर के जाता होगा। नहीं तो आपका चाल से चला जाता होगा। कौन रोकेगा फिर? अहम बैज्ञानिक त हैं नहीं त हम खाली एतना जानते हैं कि गांधी मैदान नई जातई' - बीरेंदर ने अपने लहजे में कहा।

फिर बीरेंदर ने येनांग को सुनाते हुए उनके बारे में बताना चालू किया - 'भैया, एक बात है, येनांग विकार: जहां जाते हैं एकदम अफसर जईसा चलते हैं। देखिये-देखिये...एकदम परफेक्ट हचकते हैं। माने एक दमे चाल बराबर दूरी बटे समय के हिसाब से आप कलकुलेट करके देख लीजिये' - बीरेंदर ने उनकी ओर इशारा कर चिढ़ाते हुए कहा।

इससे पहले कि येनांग कुछ कहते बीरेंदर ने बाइक स्टार्ट की और हम वहाँ से आगे चले गए। Smile

~Abhishek Ojha~