Aug 25, 2011

अन्ना: एक चैट लॉग - नवंबर २००६

 

अंतराग्नि २००६ के इंडिया इंस्पायर्ड इवेंट में अन्ना हजारे को मैंने १० फीट दूर से सुना था. तब शायद अन्ना का नाम भी पहली बार ही सुना था. अंतराग्नि का अंतिम दिन था और मेरा सर दर्द कर रहा था. जहाँ तक मुझे याद है मुझे कोई पकड़ कर ले गया था इस इवेंट में.

आज अपने जीमेल में ‘अन्ना’ सर्च किया तो अंतराग्नि के ठीक बाद दो दोस्तों से किये गए चैट मिल गए. ये उसी चैट का एक अंश हैं.  २००६ अंतराग्नि में नुक्कड़ नाटक और पैनल डिस्कशन दोनों में आरटीआई छाया रहा था. आरटीआई पर नुक्कड़ नाटक काफी मशहूर हुआ था जो एमटीवी के ‘क्या बात है’ पर भी आया था. बाद में उस टीम को राज कुमार संतोषी से भी प्रसंशा मिली थी. उन्होंने ये भी कहा थे कि वो कुछ अंश अपनी आने वाली फिल्म (हल्ला बोल) में इस्तेमाल करना चाहेंगे. 

उस पैनल डिस्कशन में कई लोग थे सबकी अपनी उपलब्धियां थी लेकिन अन्ना सबसे इम्प्रेसिव थे. Annaठीक इसी तरह पिछले दिनों न्यू योर्क में एक कॉन्फ्रेंस में मुझे ईला बेन ने भी बहुत प्रभावित किया था. ये वार्तालाप जब हुआ था तब अन्ना इतने प्रसिद्द नहीं थे. तब मैं फाइनल इयर का छात्र था और कुछ दोस्त जो चार साल वाले प्रोग्राम में थे, ग्रेजुएट हो गए थे. उन्हीं दोस्तों में से दो के साथ ये बात हुई थी. खतरनाक, इंट्रेस्टिंग और ‘क्या आदमी है !’ जैसे शब्द आये हैं अन्ना के लिए. बाकी बातें तो अब सबको पता है उस समय के लिए नयी थी. आप शायद उतना एन्जॉय ना कर पाएं जितना मैंने किया. फिर भी…

कुछ सेंसर कर बाकी चैट लॉग वैसे का वैसा:

चैट लॉग १:


2:45 PM me: भाई, कहाँ रहते हो आजकल?

2:49 PM Friend-beta: हाय

Friend-beta: कैसे हो?

2:50 PM me: ठीक हूँ, तुम बताओ

Friend-beta: बस मजे में हूँ

2:51 PM me: इस बार अंतराग्नि का पैनल डिस्कशन मिस कर दिया तुमने. आरटीआई पर था. बहुत ही मस्त हुआ.

2:52 PM Friend-beta: हाँ पता चला है

me: अन्ना हजारे, अरुणा रॉय, मधु भंडारी, प्रभाष जोशी, संदीप पांडे और ओ पी केजरीवाल.

2:53 PM मेरा सर दर्द कर रहा था जाने के पहले ऐसे ही जाके बैठ गया. फिर ३ घंटे तक उठाने का मन ही नहीं किया. अन्ना हजारे क्या आदमी है. सुनके लगा कि कैसे लोग गांधी को बैठ के सुनते और इंस्पायर होते होंगे.

…इरिलेवेंट कन्वर्सेसन…

2:59 PM me: वैसे तुम्हे तो पता ही होगा इन्हीं लोगों ने बहुत हद तक आरटीआई बनवाया है.

3:00 PM Friend-beta: हाँ भाई इतना तो पता है.

me: ओ पी केजरीवाल सीआईसी कमिशनर हैं.. बेचारे को बहुत गाली दी सबने. बोल रहे थे कि ये तो अच्छे आदमी हैं लेकिन सीआईसी बहुत बेकार काम कर रहा है.

3:01 PM एक मनीष कुमार भी आया था पहले जी टीवी में था अब परिवर्तन में है.

3:02 PM Friend-beta: सीआईसी का तो हिद्यातुल्ला है?

3:04 PM me: यार अब यहाँ तो केजरीवाल ही आया था clip_image001

Friend-beta: चीफ इन्फोर्मेशन कमिश्नर? वो भी होगा. ३ लोग हैं.

Friend-beta: वो क्या बोल रहा था

3:05 PM me: वो कुछ बोला ही नहीं. पहले उसे ही मोडरेट करना था. लेकिन बोला कि मैं गवर्मेंट का आदमी हूँ… यहाँ आये लोग बोलेंगे कि मुझे बोलने नहीं दिया. इसलिए संदीप पाण्डेय को मोडरेटर बना दिया.

3:06 PM Friend-beta: ओके

me: एंड में बोला कि आप लोग जो बोल रहे हैं वो सही है और ९०% केस हमारे पास गोवेंमेंट ईम्प्लोयीज और ओफिसर्स के आते हैं. जनरली प्रोमोशन से रिलेटेड. कोई पब्लिक इंटरेस्ट में केस फाइल ही नहीं करता. और सजेस्ट किया कि आप लोग गंगा एक्शन प्लान पर आरटीआई में एक अप्लिकेशन डालिए.

Friend-beta: पांडे भी आये थे.

me: हाँ

3:07 PM Friend-beta: प्रोमोशन से रिलेटेड ?

me: हाँ.  मेरा प्रोमोशन क्यों नहीं हुआ. मेरे जूनियर का कैसे हो गया. मुझे छुट्टी क्यों नहीं मिली यही सब. ये भी बोला कि आरटीआई में अमेंडमेंट आये तो आपलोग विरोध कीजिये clip_image001[1]

Friend-beta: clip_image001[2]वो तो होगा ही.

3:09 PM me: और बोला कि जब उसकी सीआईसी में पोस्टिंग हुई तो उसे खुद घर नहीं मिला था तब उसने खुद ही आरटीआई फ़ाइल करके पूछा तब उसे घर मिला clip_image001[3]

3:10 PM बाकी खूब सारी सक्सेस और स्ट्रगल की कहानियाँ सुनाई सबने.

3:15 PM Friend-beta: गंगा एक्शन प्लान में क्या हो रहा है.


5 minutes

3:20 PM me: गंगा एक्शन प्लान सुप्रीम कोर्ट के आर्डर पर बना था टू प्रोटेक्ट गंगा फ्रॉम पोल्यूशन (पता नहीं स्टेट का है या सेण्टर का)… और कानपुर में अभी तक वाटर क्लीनिंग प्लांट्स नहीं लगे. लेदर इंडस्ट्री वाले लोबी और फ्रॉड करके अभी भी गन्दा पानी डाल रहे हैं गंगा में.

Friend-beta: हाँ ये तो राजीव गाँधी के टाइम ही शुरू हुआ था. कई फेज में काम हो रहा था पर फ्रॉड तो हुआ ही है.

3:22 PM देखो अगर कुछ ठीक हो जाए तो बढ़िया है.

me: हाँ. एक मधु भंडारी भी थी अभी परिवर्तन के लिए काम करती है. रिटायर्ड आईएफएस है. पोर्चुगल की अम्बेसडर थी रिटायर्ड होने के पहले.

3:23 PM अन्ना हजारे का लेकिन जवाब नहीं है… क्या आदमी है.

Friend-beta: क्या बोला?

3:24 PM me: वो बुड्ढा ८X६ फीट का रूम, एक गद्दा, एक ओढने का, एक थाली/लोटा, और २ धोती-कुरता. ये उसकी सारी संपत्ति है. आरटीआई के लिए महारष्ट्र सर्कार से लेकर सेंटर तक…

3:26 PM बोलता है कि मैंने आडवाणी को बोला कि देखो कल तक कर दो नहीं तो मैं तुम्हारे दरवाजे पर बैठ रहा हूँ, आगे तुम्हारी मर्जी clip_image001[4]तेलगी वाला केस कोई लेके नहीं जा रहा था… इसे कहीं से डिटेल मिल गया… लेके पहुँच गया सीधे मिनिस्ट्री में. खूब सिक्यूरिटी मिली थी उसके बाद… उसी दिन सबको भगा दिया.

3:27 PM Friend-beta: खतरनाक आदमी है तब तो.

me: एक आइडियल विलेज बनाया है महाराष्ट्र में. जहाँ अभी रहता है पहले वहाँ दारु की भट्ठियां थी. बोल रहा था अब वहाँ पान भी नहीं बिकता.

3:28 PM पहले वहाँ पानी की प्रॉब्लम थी अब वहाँ से पानी बाहर जाता है. गांधीयन थोट का आदमी है. और सब कुछ किया है जीवन में.

3:29 PM २६ साल की उम्र तक आर्मी में था. बोल रहा था कि उसे नहीं पता अभी उसके घर वाले कहाँ है और घर में कौन-कौन है. सब छोड़ के उस गाँव में ही लग गया,

3:30 PM Friend-beta: कितना बुड्ढा है?

me: बोलता है कि उसके पहले दारु भी पिया है आर्मी में था तब... थोडा-बहुत छोटी-मोती मारपीट भी. तब मुंबई में फूल बेचता था.

3:31 PM १९४० टाइप का है... विवेकानंद की एक किताब पढ़ी तब से कूल हो गया.

Friend-beta: रुको मैं भी उसके बारे में कुछ पढता हूँ.

3:32 PM me: अभी एक स्कूल भी चलाता है जिसमें वो बच्चे पढते हैं जिन्हें मुंबई-पुणे जैसी जगहों के स्कूलों से निकाल दिया जाता है. या वैसे जिनका कहीं और एडमिशन नहीं होता.

Friend-beta: इंटरेस्टिंग आदमी है.

me: अरे जरुरत से ज्यादा इंटरेस्टिंग आदमी है. रुको विडियो आने दो तो भेजने का जुगाड करता हूँ. मुझे तो बहुत अच्छा लगा.

Friend-beta: ओके

me: आता हूँ थोड़ी देर में.

3:33 PM Friend-beta: ओके

बाय

मैं भी जा रहा हूँ फ्रूटी पीने, बाय.


चैट लॉग २: (इसमें अन्ना से जुड़ी बस एक ही लाइन है, लेकिन सर्च रिजल्ट में आया तो… )

12:01 PM me: हाँ बोलो

Friend-Alpha: कहाँ थे इतने दिन !!

me: अंतराग्नि. अभी सोके उठा हूँ, अभी ब्रश भी नहीं किया.

Friend-Alpha: कर के आओ

me: आता हूँ


9 minutes

12:11 PM me: मैं आ गया clip_image001[5]

Friend-Alpha: clip_image001[6]कैसी रही अंतराग्नि ?

me: अच्छी रही. मैं जिस-जिस इवेंट में गया वो तो अच्छे थे. ओपनिंग थोड़ी ठीक रही.

Friend-Alpha: सही. कोई कन्या पटाई?

12:12 PM me: नहीं यार, कन्या कहाँ…

Friend-Alpha: (एक नाम) मुझे कुछ कुछ बता रहा था तुम्हारे और (एक और नाम) के बारे में clip_image002

me: ही ही, हमने कुछ नहीं किया भाई.

12:13 PM Friend-Alpha: हाँ मुझे पता है. और सुना… कि हाल. ?

इरिलेवेंट कन्वर्सेसन

me: खैर… और बताओ

12:17 PM Friend-Alpha: बस सब ठीक

me: कल कवि सम्मेलन अच्छा हुआ.

Friend-Alpha: अच्छा? गुड. यूफोरिया कैसा था.

me: ठीक ठाक.

12:18 PM खूब इधर उधर के गाने गाये उसने. डिस्क बना दिया बाद में तो.

Friend-Alpha: अब अपने गाने इतने अच्छे नहीं होंगे तो कोई क्या करेगा.

me: और एक पैनल डिस्कशन भी था आरटीआई पर. वो भी बहुत अच्छा था.

12:19 PM Friend-Alpha: अच्छा… कूल.

me: बहुत इन्फ्लुएंसिंग स्पीकर आये थे.

Friend-Alpha: सही है

12:20 PM me: अन्ना हजारे का लेक्चर सुन कर लगा कि शायद लोग गाँधी को ऐसे ही सुन कर इन्फ्लुएंस होते होंगे. बहुत अच्छा बोला

Friend-Alpha: अच्छा… सही है.

me: बाकी डांस इवेंट्स वगैरह नोर्मल ही थे… ऋतंभरा भी ठीक था. बहुत अच्छी टीम्स नहीं थी एक चंडीगढ़ को छोड़कर.

12:21 PM Friend-Alpha: अच्छा, निफ्ट टाइप कुछ नहीं था?

me: थे ३-४ आईएनआईएफडी

12:22 PM Friend-Alpha: अच्छा. और सुनाओ… बाकी जनता कैसे है?

me: सब मस्त हैं.

…इरिलेवेंट कन्वर्सेसन…

[एसेट मैनेजमेंट, क्वांटिटेटीव जोब्स, बीसीजी, मैकेंजी, ऑयल कंपनीज, एक दोस्त की गर्लफ्रेंड, उसका ब्रेकअप … उससे जुड़ी कुछ बातें जैसे ‘इतनी जल्दी थी क्या उसे शादी की? थोड़े दिन वेट नहीं कर सकती थी.?… बुरा हुआ. अनलिमिटेड टॉक की स्कीम लिया… फिर उसने १३ रेडिफ अकाउंट बनाए थे एसेमेस करने के लिए… वैसे अभी भी ये चाहे तो वो कहीं गयी नहीं है… लेकिन बोलता है अजीब लड़की है ! …और अभी कोई उम्र है कम से कम २-४ साल तो जॉब करनी ही चाहिए. पर उस कन्या के लिए तब तक तो देर हो जायेगी. …फाईट है ! अरे नहीं… वो भी टाइम पास करता था… लोग ऐसा टाइम पास क्यों करते हैं? सीधे बता देना चाहिए जब भी बात आये कि… लुक मी टाइम पास… सो यू डोंट गेट सीरियस clip_image001[7]

फिर लंच के लिए जाने की बात हुई… मेस बंद हो जाएगा. और एक हिप्पो दोस्त की जो अब तक सो रहा था. मुझसे कहा गया ‘लंच करने मत जाओ.' प्लीज जल्दी आना क्योंकि मेरे पास आज कोई काम नहीं है clip_image001[8]‘. तकरीबन १३.४५ पर ये वार्तालाप खतम हुई थी मेस बंद होने के १५ मिनट पहले. ]


अल्फा-बीटा को मेरे कॉलेज के दोस्त आसानी से पहचान लेंगे. अंतराग्नि का ग्लैमर कैम्पस के मरुस्थल की दो बूंद हुआ करती. उसके बाद भी जिसे यही मिले बात करने को Smile  उसे पहचानना कौन सी बड़ी बात है जी.

~Abhishek Ojha~

(पटना सीरीज जारी रहेगी)

Aug 23, 2011

एक रंगीन मुलाक़ात (पटना २)

 

'आप ही  हैं ?' – पान (और/या गुटखा) चबाते मुंह में एक पाव तरल पदार्थ भरे एक सज्जन ने मेरे पास आकर पूछा।

(अब इसका क्या जवाब दिया जा सकता है जी? मैं हूँ या नहीं हूँ? हूँ तो कौन हूँ? ! अगर सवाल ‘मैं कौन हूँ?’ हो गया - तो ये तो वैसे ही सृष्टि के सबसे भारी सवालों में आता है. इस सवाल का जवाब देना मेरी क्षमता के बाहर था !)

मैंने पूछा: 'आपको किससे काम है?'
'अरे काम तो होता रहेगा लेकिन हम पूछ रहे थे कि... माने... आपे इधर आए हैं बाहर से?'
'हाँ।'
'वईसे आप करते का हैं?'
'ये बैंक में हैं' - मेरे एक नए मित्र ने मोर्चा संभाला।
'आछाऽऽ… त आप एमबीए किए हैं?'
'नहीं।'
'त सीए किए होंगे?'
'नहीं, ये आईआईटी किए हैं।' - मेरे मित्र ने फिर बताया। (पटना में लोग डिग्री से मतलब नहीं रखते. आईआईटी करना ही कहते हैं. ये प्रक्रिया कैसे की जाती है जी?)

'आईआईटी? त बैंक में का करते हैं?'
'किस स्ट्रीम से थे ? मनेजर हैं?'
'नहीं। वो... ' उनके प्रवाह को रोक मैंने कुछ बोलने कि कोशिश की.

'अब कलर्क तो नहीये होंगे? हे हे हे। वईसे कउन से  बैंक में हैं?'
'क्रेडिट स्विस।'
'क्रेडिट… काऽऽ? ई कउन बैंक है? …कहाँ पर है बरांच?'
'यहाँ नहीं है, स्विस बैंक है. इधर मुंबई में ऑफिस हैं ।'
'आछा. वही जिसमें काला पईसा जमा होता है?  बंबई में है?' - खुशी से उछल पड़े वो.

'नहीं, नहीं... '
'आछे आप कौन बिभाग में हैं? मैनेजरे न होंगे? अभी त आप बाहर हैं नू? बंबई ब्रांच में थे का पहीले?'
'नहीं वो... ' - वो बस दनादन सवाल दागे जा रहे थे और मुझे बोलने का मौका ही नहीं दे रहे थे.

'आछे सुने हैं कि आजकल अमरीका का भी हालत बहुते टाइट हो गया है?... आछे छोड़िए ई सब। पहिले एक ठो बात बताइये आजकल साफ्टवेयर का मार्केट डाउन में है का? हार्डवेयर का सुने हैं बरी अच्छा चल रहा है आजकल। मेरा लड़का है दसवीं में त हम सोच रहे थे हार्डवेयर स्ट्रीम में डलवा दें उसको, ठीक रहेगा?'

मुझे समझ में नहीं आया क्या बोलूँ... वो धाराप्रवाह में खुद ही सब कुछ बोले जा रहे थे... उन्हें किसी और का कुछ भी सुनना ही नहीं था। आजकल वैसे ही ‘गुड लिसेनर’ बनने की कोशिश में हूँ. मैं अभी सोच ही रहा था कि किस बात को पहले स्पष्ट किया जाय कि वो फिर बोल पड़े...

'लेकिन हमको अभी तक एक बात नहीं बुझाया... आप आईआईटी करके इसमें आ कईसे गए? आछे एक बात बताइये ललूवा का केतना जामा होगा स्विट्जरलैंड में? आप लोग को कुछ पता चलता है? सुने तो हैं कि एकदमे सीक्रेट होता है।' उत्सुकता का ट्रैफिक बढ़ता देख मुझे लगा उनके प्रवाह में कुछ जाम लगेगा. लेकिन…

'आछे रहने दीजिये। पटना में आप लोग का बरांच खुल रहा है का?'
'नहीं. मैं एक... '
'अच्छा त ई बताइये… आप लोग को त जो है सो उपरवार कमाई भी खूब होता होगा? हे हे हे'
'नहीं, अरे आप पहले सुनीये तो... आप मुझे भी कुछ बोलने देंगे ?' - ये मेरा पहला ईमानदार प्रयास था लिसेनर से स्पीकर बनने का.

‘आछे बोलिए’

थोड़ी देर के लिए जब मौका मिला तो मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की... पर वो गज़ब के मूड में थे.paan दरअसल उन्हें सुनना नहीं आता. हर बात बिना सुने बस समझ जाते हैं. नहीं… उन्हें समझने की जरुरत ही नहीं होती. समझे तो वो पहले से ही होते हैं. शायद ही उन्होने मेरा कहा कुछ भी सुना हो।

अब पता नहीं लोगों को क्या बता रहे होंगे कि किससे मिल आए।  वैसे खुशी इस बात की है कि जाते-जाते बड़े निराश दिखे:
'आप तब दूसरे टाइप के बैंक में हैं. आ बिभागो आपका दूसरे टाइप का है, आपको कुछो नहीं पता’।

जो भी हो... एक बात तो साफ है। मुझे जो कुछ भी पता है - उनसे तो कम ही पता होगा Smile

जब चले गए तब पता चला क्यों तेजी थी बोलने की । प्रेसर में थे. और बाहर निकलते ही सीढ़ी पर उतरते हुए दूर से ही निशाना लगाकर ठीक कोने में लाल रंग की एक और नयी परत चढ़ा गए। उनके मुंह से निकली पतली लंबी धार रसायन (केमिस्ट्री)की प्रयोगशाला में बनाए गए जेट की याद दिला गयी। ग्लास के पाईप को गर्म कर जेट बनाया था हमने कभी. मुझे लगता है मुंह से जेट बनाना भी शायद एक कला ही है. और निशाना भी अचूक… !

तीसरे तल्ले पर दीवार साफ़ कर फिर से रंगी गयी है. मैं सोचता हूँ चमकती साफ़ दीवार पर पहली बार कोई कैसे  थूकता होगा? खुदा जाने कहीं ऐसा तो नहीं कि चकाचक देख थूकने को मन मचल उठता हो !  फिलहाल मुझे ये भी लगा कि पान खाने वाले कम से कम कोने के लिए तो वैसे ही मचल उठते होंगे जैसे खंबे के लिए...

(पटना १)

~Abhishek Ojha~

Aug 18, 2011

सोनुआ बरी तेज लरका है - (पटना १)


जयप्रकाश नारायण अन्तराष्ट्रीय एयरपोर्ट से बाहर निकलते हुए बिहार टूरिज्म टैक्सी सर्विस का एक बोर्ड दिखा. वहाँ बैठे बुजुर्ग ने बताया कि गाडी नहीं है.

'एक ही थी... जो है सो उसे कोई और ले गया. एतना डिमांड नहीं है पटना में टेक्सी का. बाहर जाइए बहुत गाडी मिलेगा. फ्रेजर रोड का तो जो है सो दुनिया भर का साधन मिलेगा.'

बाहर निकलते ही दुनिया भर के साधनों ने मुझे घेर लिया.

'फ्रेजर रोड? आइये...' मैंने बस फ्रेजर रोड ही कहा उसके बाद उन्होंने खुद मोर्चा संभाल लिया.

'३०० रूपया. आइये - मारुती है'
'अच्छा २५० दे दीजियेगा'
'२०० दीजियेगा? यही सामने वाला टेम्पू है - आइये.'
'अरे हट रे तुम. मेरे साथ जायेंगे. आइये आइये'
'रेक्सा से जायेंगे? पचहत्तर रूपया दे दीजियेगा हमको'
मैंने पूछा: 'अरे बहुत दूर है - आप कैसे जायेंगे?'
'अरे आइये ना, पटना देखाते चलेंगे, जादे दूर नहीं है.' रिक्शे वाले ने अपनी आशा सफल होते हुए देख कर कहा.

किराया उनके आपसी प्रतिस्पर्धा से ही फेयर वैल्यू की ओर कनवर्ज होता जा रहा था. मैं बस चुपचाप सुन रहा था. रिक्शे की तरफ झुकाव जरूर हुआ. शायद ७५ रूपया भी एक कारण था. उसी बीच दौडता हुआ सोनुआ आ गया.

'हट ड़े. चलिए सड़. उ तिहत्तड़ चौड़आसी देख ड़हे हैं, उहे माडूती है. २३० फाइनल - इससे कम में त कोई नहीं ले जाएगा. सड़काड़ी अम्बेसडरवा वाला भी तीन सउ लेता है.'

उसको समझ में आ गया कि मैं रिक्शे से जाने की सोच रहा हूँ. उसे ये भी पता लगा कि मैं पैसे दे दूँगा. पता नहीं क्या-क्या बात की उसने. मुझे ठीक-ठीक याद नहीं. और फिर मेरा सामान उठाकर अपनी गाड़ी की तरफ चल दिया. सब ताकते रह गए.

'अरे यार बहुत गर्मी है इसमें? पेड़ के नीचे पार्क कर देते. ये तो आग उगल रही है' मैंने बैठते हुए कहा.
'अड़े सड बईठीये न. दू मिनट हवा लगा नहीं की फ्रेस हो जाएगा.'

फिर उसका पुराण चालू हुआ... उसकी अभी इतनी उम्र नहीं हुई कि लाइसेन्स मिले. ये गाड़ी (मारुति 800) बहुत अच्छी है 20 का एभरेज देती है और कलकत्ता तक घूम आई है. परमिट नहीं था तो थाने में ही गाड़ी छोड़ के चला गया था सोनुआ. वापस आते समय कुछ पैसा देके गाड़ी निकाल लाया. ठीके हुआ था - गाड़ी भी सेफ रही उतने दिन !

गाड़ी उसकी नहीं है, मालिक की है. उसके पास मोबाइल भी नहीं है - चोरी हो गया. अपने मालिक का नंबर लिखवाता है मुझे. राजगीर, पावापुरी, बोधगया और नालंदा बस चार जगह है बिहार में. और कहीं जाने का कोई मतलबे नहीं है. सोनुआ के मालिक को फोन करने पर इंतजाम हो जाएगा गाड़ी का. अच्छी गाडियाँ भी है उसके मालिक के पास. टूर पर जाने के लिए भी. सोनुआ को उसका मालिक बीदेसी लोगों के साथ नहीं जाने देता. क्योंकि उसके पास लायसंस नहीं है. लेकिन मेरे साथ जा सकता है. उसे अच्छा लगेगा. वो चाहता है कि मैं टूर के लिए जब भी गाड़ी के लिए फोन करूँ तो उसके मालिक से कहूँ कि सोनुआ को ही भेजे.

पिछली बार एक गलत मोड के कारण ट्रैफिक पुलिस ने उससे 100 रुपये लिए थे. अब वो उस गलत वाले मोड़ के पहले ही एक गलत मोड़ ले लेता है. उसे पता है पुलिस वाले कहाँ खड़े होते हैं. सड़क कहाँ टूटी है और बरसात में कहाँ पानी भरा होता है. किस समय कहाँ ट्रैफिक होगा… वो जोड़ लेता है. पेट्रोल पंप पर कोन्फ़िडेंस में बोलता है 'काहे तेजीया टेढ़ीया रहे हैं, बता रहे हैं न'. फिर मुझे समझाता है 'बरका चोड़ है सब. देख नहीं ड़हे हैं अभी खरा करबे नहीं किए तले पूछ ड़हा है कै लिटड़'.

मुझे जहां जाना है उसे ठीक-ठीक नहीं पता. लेकिन नाम पता हो तो 10 मिनट में वो पटना की कोई भी जगह खोज सकता है. वो गुटखा नहीं खाता - दारू भी नहीं. अभी पंद्रह साल का हुआ है. गाड़ी ही चलाएगा. और उसके पास पटना के ट्रैफिक में चलाने के सारे स्किल हैं. हॉर्न बजाना, ट्रैफिक में रास्ते खोज लेना और कट तो ऐसा मारता है कि गर्दन ना हो तो कलेजा मुंह के बाहर ग्लास तोड़कर सड़क पर आ जाये. 2 सेकेंड इधर उधर हुआ कि गए काम से ! लेकिन नहीं न होगा काहे कि गज़ब का कट्रौल है उसका गाड़ी पर.

मैं उसे 230 की जगह 250 रुपये देता हूँ. वो बहुत खुश है. उसी दिन सुबह मैंने 3064 रुपये किराये वाली टैक्सी में अँग्रेजी बोलने वाले समीर को 100 रुपये टिप दिया था. वो इतना खुश नहीं हुआ था. सोनुआ ने पूछा नहीं कि गाना बजाना है या नहीं सीधे बता दिया कि प्लेयर खराब है मालिक बनवा नहीं रहा. समीर जो टोपी, दस्ताना और ड्रेस पहनता है. मुझे पूरे रास्ते मुंबई का इतिहास-भूगोल बताते आया. उसने पूछा था 'सर, डू यू लाइक म्यूजिक?' मेरे हाँ कहने पर उसने मंद आवाज में ऐसे गाने बजाए कि मैं कह भी नहीं सकता था कि मुझे ऐसे गानों की समझ नहीं ! सोनुआ बजाता तो तुरत कहता ‘वॉल्यूम कम कर दो’ Smile

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इन दिनों मैं अपनी कंपनी के कॉर्पोरेट रिस्पोन्सिबिलिटी प्रोग्राम के सिलसिले में पटना आया हुआ हूँ। उसका ब्लॉग यहाँ है : क्रेडिट स्विस - ग्लोबल सिटिज़नस प्रोग्राम।

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~Abhishek Ojha~