Apr 25, 2011

खिली-कम-ग़मगीन तबियत (भाग २)

 

पिछली बार जब खिली-कम-गमगीन तबीयत लिखा था तो पोस्ट-कम-सफाई-ज्यादा हो गयी थी। पोस्ट से ज्यादा भूमिका ही बड़ी हो गयी थी। फिर हमें लगा कि जितनी सफाई करो लोगों को उतना ही लगता है कि जरूर कोई बात है, नहीं तो भला सफाई करने की क्या जरूरत? अब लोगों को कैसे समझाया जाय कि बिन गंदगी भी सफाई पसंद लोग हैं दुनिया में Smile । फिर हमने सोचा कि चुपचाप अपनी बात कही जाये। जिसे जो सोचना है सोचे। (वैसे वास्तविकता तो ये है कि किसे फुर्सत है मेरे बारे में सोचने की, लेकिन ये मानव मन भी न !)

तो इस बीच खिली-कम-ग़मगीन-ज्यादा तबीयत का रहना जारी है। अँग्रेजी के cum और हिन्दी के कम से थोड़ा मतलब बदल जाता है। और इसी मतलब को स्पष्ट करने के लिए मैने अंत में 'ज्यादा' जोड़ दिया। खिली-cum-ग़मगीन का मतलब हो गया खिली और ग़मगीन। खिली-कम-ग़मगीन का मतलब हुआ खिली तो थोड़ी कम खिली लेकिन जब ग़मगीन हुई तो थोड़ी ज्यादा ही हो गई।

और इस खिली-कम-ग़मगीन तबीयत के बीच दिमाग ने बहुत वन-लाइनर दो-चार-पाँच-सात लाइनर (जिसे मैं बकवास की श्रेणी में रखता हूँ) जैसी चीजें उड़ेली। उनमें से कुछ फेसबूक पर आती रहीं और कुछ ऐसे ही पड़ी रही। अभी इस पोस्ट को लिखते समय लग रहा है कि जो चीज ऐसे ही पड़ी रहे उसका भी कुछ उपयोग हो ही जाता है कभी-कभी। (अगर बकवास की तरह श्रेणीबद्ध किए गए पोस्ट को उपयोगी माना जाये तो)।

इस बीच मेरे एक पुराने बकवास को मेरे एक मित्र ने अपना स्टेटस बनाया ये लिखकर 'कोपीड फ्रम समवेयर'। मैंने उन्हें तुरत  बताया कि वो 'समवेयर' वाली गली मुझ तक पहुँचती है। अब देखिये न उन्होने मेरा नाम लिखकर मेरा बकवास लिखा होता तो उतनी खुशी नहीं होती जितना 'समवेयर' देखकर हुई। ये मानव मन भी न पता नहीं कब किस बात पर खुश हो जाता है... दुखी  होने के तो खैर कारणों की कोई कमी ही नहीं है।

भूमिका समाप्त। बकवास शुरू।

१ Hope is what makes it all interesting. isn't this journey like climbing a hill? with hope to see a new world and feel the fresh air. Maybe We'll never make it to the top, maybe there is no such peak.. but let keep climbing, let this feeling continue... let this journey continue... forever.

(don't read: I know even if exists, the peak won't be as interesting as we imagine... Journeys are always more interesting)

२ In chaos theory a small change in initial condition makes a large scale change. I don't know how true is the famous example of a butterfly's flapping wings leading to a tornado but I definitely know that:
     a. a single drop of tear in some eyes can turn into an inundation of tears in someone else's eyes.
    b. Spoken words, no matter how insignificant they are can misinform people and can cause great immeasurable harm.

३ Almost a year ago... an astrologer told me that mostly I will do timepass till 2010 and then things will change. I thought it will change for good but I realized that what he meant was timepass bhi chali jaayegi 2010 ke end mein :-P

४ जब भी मैं जगा होता हूँ... मेरी आँखों के सामने या तो कोई स्क्रीन होती है या कोई पेपर. वो कभी-कभी बंद आँखों में जरूर दिख जाती है. मैं सोचता हूँ कि अगर जागती आँखों के सामने भी वो दिखने लगे तो और कुछ हो न हो मेरी आँखों को उम्र और सुकून तो मिलेगा ही. ;)

५ नया मुहावरा आया है मार्केट में: जब तक मुहल्ले की मुर्गी कोई और लेके ना भाग जाए दाल ही लगती है।

६ जब किसी को कोई ऐसी निगाह से देखे जैसे बिल्ली की आँखें कबूतर की ओर देखती हैं तो उसे जान बचाकर भागना चाहिए या उन आँखों में डूब जाना चाहिए? :)

७ वैसे बात तो सही है लेकिन मैं सोच रहा था कि मेरी औकात का अंदाजा टाटा इंडिकॉम वालों ने कैसे लगा लिया: "आप जिस व्यक्ति से संपर्क करना चाहते हैं वो (आपकी) पहुँच के बाहर है" :)

८ Some people say 'I can't unwind my portfolio at this price to take a loss'...

But in reality the losses has already been incurred and by not unwinding they fool only themselves.' Similar is the case of relationships... sometimes its better to accept the reality.

[पता नहीं जिसे समझा रहा था वो समझा या और अधिक उलझ गया :)]

९ घंटो तक किए गए शब्दों के खिलवाड़ से जब कुछ भी ना व्यक्त हो पाये तो जबान नहीं मामला ही लटपटा गया समझो।

१० ‎... I never thought I will ever say 'I'll miss you', and now? even if I miss... I don't need to say this. either way its same but not the same.

११ Assuming only 'straight' lines form a triangle. By basic theorem of inequality of sides a love triangle is not possible ! :) … combined love between any two pairs should be greater than the third pair but given three ‘straight members’... it leads to a Contradiction !

The general form will be like this: To form a convex love polygon the number of members with interconnected relationships should be even.

Note that this holds only for convex polygons which are formed only using ‘Straight’ lines ;)

१२ Humans are magnificent hybrids of cruelty and kindness, love and hatred,... and many more such paradoxical extremes.
And yes the proportion of one extreme with other keeps changing so be careful ! :)

१३ नए फोन के कारण पिछले कुछ दिनों से किताबों को कम समय दे पा रहा हूँ, अगर मेरी किताबों और फोन की जगह दो लड़कियां होती तो उनका आपसी झगड़ा देख कर मजा आ जाता।  :)

१४ एक प्यार ऐसा भी होता है...जिसमें सवाल ये नहीं होता है कि वो हाँ कहेगी या नहीं, सवाल तो यही रह जाता है कि वो पूछ भी पाएगा या नहीं :) और ऐसे प्रेमी सबसे ज्यादा ग़म में डुबते हैं।

१५ What if you get yourself into a state of self-moving uncontrolled motion? What will you do? If you try to bend yourself you may make it worst by turning it into some other weird form, say a rotational twist along with the initial state. So what will you do? or the better question is what 'can' you do?
Sometimes we end up in this kind of situation with no control on ourselves. Can you think of such cases?
what?
...leave it. :)

बहुत हो गया, शेष फिर कभी।

पिछली बार तो यू ने भी पूछ लिया ये 'यू' कौन है। और तब से तो मैंने उसे ‘यू’ कहना ही छोड़ दिया। और वैसे भी इस पोस्ट में वैसी पंक्तियाँ कम ही है। इस बार क्या कहूँ जब ग़ालिब चाचा ही कह गये है: बक रहा हूँ जुनूं में जाने क्या क्या कुछ. कुछ ना समझे ख़ुदा करे कोई. Thinking smile

~Abhishek Ojha~

Apr 12, 2011

निगेटिव साइड

 

बात पिछले साल की है. एक कॉन्फ्रेंस में वालस्ट्रीट के कुछ कंपनियों के एक्जेक्यूटिव चर्चा कर रहे थे. उनमें से एक ने कहा: ‘हमने तो मिलियंस के टॉक्सिक एस्सेट्स अपने कर्मचारियों को बोनस में बाँट दिया. इसके कई फायदे हुए. एक तो कंपनी का कैश बचा, दूसरे टॉक्सिक एस्सेट्स बैलेंस शीट से कम हो गए और तीसरे हमने ये दिखाया कि बैकर्स की गलती थी तो अब वो ही भुगतें. जो उन्होंने जमा किया था वो उन्हीं को दे दिया.’

लोगों ने कुछ नहीं बोला तो वो आगे बोल पड़े: ‘मुझे आश्चर्य हो रहा है कि बाकी बैंकों ने इसका अनुकरण क्यों नहीं किया? ये तो बहुत ही अच्छा उदहारण है. जिसे सभी बैंको को अपनाना चाहिए’. दोनों हाथ में लड्डू की सी बात थी, सभी ने समर्थन किया. थोड़ी देर बाद एक कैनेडियन बैंक के प्रतिनिधि ने कहा: ‘आपकी बात बिलकुल सही है. मुझे बाकी फर्म्स का तो नहीं पता पर मैं हमारी बात कहूँ तो हम ये करना पसंद करते लेकिन मजबूरी ये थी कि हमारे पास मिलियंस के टॉक्सिक एस्सेट्स थे ही नहीं !’. अब बात यहाँ से पलटी मार गयी. जब चोरी की ही नहीं तो अंतरात्मा को जगा के सरेंडर करें भी तो कैसे. और लोग हैं कि कहे जा रहे हैं सरेंडर कर दो !

बैंक्स वाले रिसेसन के बाद २०१० में मीटिंग कर रहे थे तो ये कैसे मान लेते कि कोई ऐसा भी हो सकता है जिसके पास टॉक्सिक एसेट ना हो. अब वैसे ही जैसे आजकल कोई ये कहाँ पूछता है कि पीते हो या नहीं. लोग तो सीधे ‘क्या लोगे’ ही पूछते हैं. वो ये कैसे मान लें कि नहीं पीने वाले लोग भी हो सकते है. खैर… पीना बुरी बात नहीं है. ये तो आपको पता ही होगा कि कलयुग में बीयर को दारु तथा पोकर को जुआ कहने से इंसान पाप का भागी होता है. हमारे दोस्त ऋषिकेश में गंगा किनारे गंगाजल और वोदका मिलकर पी आये हैं. उन्हें गजब का मजा आया. वोल्गा-गंगा की जगह वोदका-ठर्रा ज्यादा एफेक्टिव नहीं लगता है सुनने में? खैर… बहुत बात हो गई पोजिटिव साइड की.

अब बात नेगेटिव साइड की. कुछ दिनों से फेसबूकीय मजनूँ लोग ये वाला स्टेटस लगाए बैठे हैं: ‘The best relationship is one in which you feel free to show even your negative side and still have the hope that it will strengthen your relationship’. पता नहीं किसने लिखी है पर बात तो सही है पर जब मुझे सुबह सुबह ४ बजे फोन आया तो दिमाग खराब हो गया. कुछ ऐसे:

‘अबे, सुन मेरा कोई निगेटिव साइड बता?’

‘ऊँहूँ…. कहाँ इंटरव्यू है? बोल देना वही… कि मैं एक साथ कई प्रोजेक्ट करने लगता हूँ. वर्क-लाइफ बैलेंस ढंग से मैनेज नहीं कर पाता….’

‘अबे वो नहीं, इंटरव्यू नहीं है. मेरा कुछ रियल निगेटिव साइड बता.’

‘चल सोने दे, तीन घंटे पहले तो सोया था… क्या हो गया तुझे?'

‘अबे उसने पढ़ लिया है कहीं फेसबुक पर कि रिलेशनशिप मजबूत हो जाएगा, और उसने मुझे टाइम दिया है. आज रात को उसे बताना है कि मेरा नेगेटिव साइड क्या है’

‘क्या?? अबे सारी साइको तुझे ही मिलती हैं क्या? जा… बोल देना कि पहले वो बताए’

‘अरे नहीं भाई. पहले मुझे ही बताना है.’

‘बोल दे कि तू बेवकूफ है. उस जैसे के चक्कर में पड़ा हुआ है यही प्रूफ है. देख जॉब इंटरव्यू होता तो मैं कुछ बता देता. इसमें मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा. अब मुझे सोने दे. एक काम कर किसी दुश्मन से पूछ. काको से पूछ ले चार साल से तेरी बात नहीं हुई ना उससे. वो कुछ बता देगा’

‘अबे यार…’

‘ठीक है, मुझे कॉल कर के उसे पकड़ा देना मैं उसे समझा दूँगा. और टेंशन ना ले मुझपर सेंटी हो गयी तो मैं कटा दूँगा’

‘चुप कर. जा सो ही जा तू'

… और उसने फिर काको को फोन किया तो काको बोला : ‘तू बहुत बड़ा ह*मी है. तेरी मा.. (आगे तो आप समझ ही गए होंगे. बिलकुल वही बोला उसने जो आप बिन लिखे पढ़ गए Smile ).’ 

अब बेचारे ये बिन लिखे समझ में आ जाने वाली बातों को तो बता नहीं सकते अपनी निगेटिव साइड. ये भी कोई निगेटिव साइड हुआ? और बेचारे दारु, सुट्टे से दूर  ही रहते हैं. लड़की-वडकी का भी कुछ उस लेवल का चक्कर हो नहीं पाया. कुछ और निगेटिव साइड उन्हें क्या उनके जानने वालों को भी नहीं मिल पा रहा. बेचारे पढ़-लिख के आईएसआई मार्का वाले शरीफ ब्रांड के इंसान अब निगेटिव वाला साइड ढूंढ रहे हैं. और उनकी गर्लफ्रेंड मानने को तैयार नहीं कि वो इतने शरीफ हो सकते हैं. उसका तो कहना भी सही है कि बता दो थोडा रिश्ता और मजबूत कर लेते हैं. लेकिन बेचारे के पास केवल कैश और लिक्विड एसेट ही है तो टॉक्सिक एसेट कैसे दे बोनस में. बड़ी समस्या है ! वैसे ही जैसे कुछ लोग फुर्सत के पल ढूंढने में ही व्यस्त हो जाते हैं.  बिन बात ही…

~Abhishek Ojha~

Apr 3, 2011

ससराँव

 

एक भोजपुरी आंचलिक कहावत है. 

काहाँ जाताऽर? ससराँव. एगो जाँत लेले अईह.

भोजपुरी के केवल कुछ इलाकों में ही ये कहावत सुनी जाती है. जहाँ तक मुझे पता है बहुत ही Chakki-Jaantछोटे  इलाके में इस्तेमाल होती है. पर है बहुत शानदार  !. कहावत का अनुवाद कुछ यूँ है:

कहाँ जा रहे हो? सासाराम. एक जाँत (जाँता) लेते आना.

सासाराम बिहार का एक जिला** के रोहतास जिले का मुख्यालय है जहाँ पत्थरों की कटाई का काम होता है और उनसे घरेलु इस्तेमाल की सामग्री भी खूब बनती होगी (है?). वहाँ कभी जाँत बहुतायत में मिलते होंगे और ये मनोभावना भी होती होगी कि अच्छे मिलते हैं. वैसे जिन इलाकों में ये कहावत है वहाँ के सारे जाँत सासाराम में ही बनते होंगे तो अच्छे वाली बात का ज्यादा मतलब नहीं है. वैसे ही जैसे अब सबकुछ चीन में  ही बनता है. एपल के सामान आप अमेरिका से लो या सिंगापुर से बने हुए तो चीन के  ही मिलेंगे. हाँ सासाराम में जाँत थोड़े सस्ते जरूर मिल जाते होंगे. यही सासाराम कहावत में ससराँव या सासाराँव हो गया। वैसे कुछ लोग जब ज्यादा जोश में होते हैं तो सरसराँव भी कहते हैं.

तो कहावत का पहला हिस्सा तो स्पष्ट ही है: किसी के पूछने पर जब पता चला कि कोई सासाराम lady crushing wheat on traditional chakkiजा रहा है. तो पूछने वाले ने तपाक से कह दिया कि ठीक है अब जा रहे हो तो मेरे लिए एक जाँत (जाँता) लेते आना. जाँत अर्थात घर की चक्की. वही चक्की जिसे चलता देख कबीर बाबा रो पड़े थे. (चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोए. दुई पाटन के बीच में, साबुत बचा ना कोए.) दुई पाटन के बीच  में कोई साबुत तो नहीं ही बचेगा लेकिन सासाराँव से जाँत लेकर आये तो भी… खैर मैं सोच रहा  था कहावत की व्यापकता. इस आंचलिक हिस्से में उस जमाने में (जब घर की चक्कियां होती थी) यातायात के साधन का अंदाजा लगाना तो मुश्किल काम है क्योंकि आज भी स्थिति कुछ अच्छी नहीं है. वैसे में अगर किसी से जाँत लाने को कह दिया जाय तो...? !

एक तो जाते हुए को टोका गया जो कि अशुभ माना जाता है. अब भले ना माना जाय उस जमाने में तो अशुभ माना ही जाता होगा। फिर कोई अपने काम से जा रहा है तो उसे एक और काम पकड़ा दिया गया. और फिर काम भी ऐसा जो वैसे तो आसानी से हो सकता है लेकिन करने वाले का कचूमर निकल जाए. कुछ लोगों की आदत सी होती है कुछ मंगाना. "वहाँ का क्या प्रसिद्द है?" अब भले ही नागपुर से संतरे लाने में सड़ जाएँ लेकिन मंगाने वाले तो मंगाएंगे ही !

अब इसे सोचिए: कोई भारी भरकम जाँत लेकर आया होगा सासाराम से 200-250 किलोमीटर दूर। कैसे लाया होगा ये तो अब लाने वाला ही बता सकता है: गोबिन्द की गति गोबिन्द जानै। कहावत ऐसे तो नहीं ही बनी. कोई तो लेकर आया ही होगा क्योंकि उस जामने में भी लोग होते ही होंगे जिन्हें 'ना' कहना नहीं आता होगा। उफ़्फ़ ! उसकी दुर्गति मुझसे सोची नहीं जा रही। दो भारी पत्थर घसीटते, लुढ़काते, कंधे पर, सिर पर... बैलगाड़ी, ना जाने कैसे लेकर आया होगा। सड़कें तो होंगी नहीं। खेत-खलिहान, बाग-बगीचे, नदी पार करते... रास्ते में लोग पूछ भी लेते होंगे और उसकी मूर्खता पर हँसते भी होंगे 'यहाँ नहीं मिल जाता जो सासाराम से लेकर आ रहे हो?' बेचारा कह भी नहीं पाया होगा कि किसी और के लिए है !  कुछ बच्चे भी चिढ़ाने के लिए पीछे पड़ गए होAn Old Man is Dressing a Millstone - 19th Century Watercolor on Paper शायद। भगवान जाने कहीं ढेला भी ना मार रहे हों पीछे से।

और मजे की बात तब हुई होगी जब मंगाने वाले ने कह दिया होगा अच्छा नहीं है। ऐसा तो यहाँ भी मिल जाता है। थोड़ा हल्का है, टुँगाई अच्छी नहीं है। वगैरह... और अंत में 'ले लो हींग उधारी, वैशाख के करारी'* के तर्ज पर अगर कह दिया होगा: पैसे तो अभी हैं नहीं वैशाख में ले लेना। तो और मस्त। Thumbs up

मैं ये क्यों सोच रहा हूँ ? अव्वल तो खुश हो रहा हूँ कि जाँतों का जमाना चला गया और दूसरे साथ में वैशाख का इंतज़ार भी तो कर रहा हूँ Smile

*किसी जमाने में नेपाल से हिंग विक्रेता भारत में हींग बेचने आते थे और उधार में हींग देकर चले जाते फिर वैशाख में पैसे वसूलने आते। जाँत की तरह अब वो भी शायद ही कहीं दिखते हों। मैंने भी शायद सुना ही है !
**मनीषजी के कमेन्ट के बाद सुधार: सासाराम जिला नहीं बल्कि रोहतास जिले का मुख्यालय है.

~Abhishek Ojha~