Jan 21, 2008

वो लोग ही कुछ और होते हैं ... (भाग II)

कुछ बातें, कुछ लोग, कुछ घटनाएं, कुछ यादें... ऐसी होती हैं जो हमेशा के लिए याद रह जाती हैं..... मैंने पहले एक ऐसी ही याद का वर्णन किया था... इस बार यह एक आदमी है - साधारण इंसान... साधारण काम... पर शायद इतना साधारण जो हम असाधारण लोग नहीं करते हैं। बात बर्ष २००५ की है... मैं अपने गर्मी की छुट्टियों में इन्टर्नशिप के लिए स्विटजरलैंड गया हुआ था । मैं एक प्रोफेसर के घर पर रुका हुआ था... प्रोफेसर साहब की बात फिर कभी.

अनजान देश - पहले दिन ऑफिस जाने के लिए मैंने बस और ट्रेन के टाइम टेबल का प्रिंट आउट लिया और निकल पड़ा ... ।  बस में बैठा तो देखा कि लोग बस में आते और एक कागज निकाल कर एक छोटी सी मशीन में ड़ाल देते ... एक हलकी सी खीच-खीच की आवाज़ आती... फिर लोग जाकर अपनी जगह पर बैठ जाते। मैं भी एक खाली सीट देखकर बैठ गया ... मुझसे किसी ने कुछ पूछा नहीं ना  ही मुझे कोई ऐसा आदमी दिखा जिसे पैसे दिए जाएँ। मैं थोडी देर वैसे ही बैठा रहा फिर सामने की सीट पर बैठे एक आदमी से पूछा:

-Excuse me, can you please tell me how to pay!

--You can pay to the driver, but only when bus stops... You cant pay while he is driving... are you new here?

-Yes, this is my first day here.

-- oh, okay. so where are You from?

- India, I am here for just three months, an intern at university.

-- That's terrific ! I am from UK. I have been to India for work couple of times - Ahmadabad and Delhi. Swiss is a pretty country, isn't it? Do You know that You will have to catch a train after this bus to reach the university?

- Yeah, I have schedule with me.

-- okay, where are you staying? why are you staying so far?

- Actually, I am staying with my guide at his home.

-- Okay. No problem. come with me, you can pay to the driver. Take a monthly pass. You must have observed people with passes... that machine is to validate the tickets.

......

बातें होती रही, मेरे पास केवल १०० फ्रैंक के नोट थे और बस का किराया ३.२०. पैसे उन्होने ही दिए. रेलवे स्टेशन आया... मैंने उन्हें थैंक यू बोला और ट्रेन के लिए टिकट काउंटर पर पंहुचा.  पता चला कि वो मेरे पीछे-पीछे काउंटर तक आ गए (वैसे ज़माना ऐसा है कि ऐसे शुभचिंतकों से डर भी लगने लगे)... मुझे जर्मन नहीं आती थी और काउंटर वाले को अंग्रेजी नहीं ।  उन्होने अनुवादक का काम किया और टिकट के अलावा और भी अनेकों जानकारी दे दी... कौन सा पास मेरे लिए अच्छा रहेगा, कौन सा सस्ता पड़ेगा, कौन-कौन सी घूमने की जगहें है, कौन से सुपर मार्केट में भारतीय खाना मिलेगा और कहाँ पर भारतीय दुकाने हैं... इत्यादी इत्यादी... फिर उन्होने मेरे प्रोफेसर का नंबर लिया और चले गए। आपको यहाँ ये भी बता दूं कि मेरे चक्कर में उनकी ट्रेन छुट गयी... और वो अगली ट्रेन से ही जा पाए। नंबर लेने का मतलब मुझे तब समझ आया जब मुझे कई भारतीय लोगो के फ़ोन आये... कब कहाँ क्रिकेट मैच है और कहाँ पर कौन से भारतीय सम्मेलन हो रहे हैं... सारी जानकारी मिल जाती थी ।

खैर अगले दिन फिर उनसे बस में ही मुलाकात हो गयी, एक ही दिन में मैंने पास भी ले लिया था, मैंने उन्हें फिर से थैंक यू कहा, और उनके पैसे वापस देने लगा। उन्होने इंकार कर दिया और जो बात कही उसी के चलते मैं ये पोस्ट लिख रहा हूँ... ।

अगर तुम मुझे वापस ही करना चाहते हो तो उनकी मदद करना जो तुम्हारी तरह अंजान जगहों पे जाते हैं ऐसे मौक़े बहुत मिलेंगे तुम्हे

अगले साल गर्मियों में मैं फिर से इंटर्नशिप करने गया ... वही बस... और फिर से एक दिन मुलाक़ात हो गयी... बहुत सारी बातें हुई... जिसका एक हिस्सा ये भी था....

-Hi, do You remember me, I am doing my second internship at same place and I am staying again with my professor...

-- oh Hi, good to see You again, BTW where is Your professor's house? come some time with him on dinner at my home... we will talk....

फिर पता चला कि उन्होने खुद मेरे प्रोफेसर से बात की और हम उनके घर भी गए, खाना भी खाया.... और बहुत सारी रोचक बातें भी हुई.... मेरी तरफ से मेरे प्रोफेसर ने भी उनको धन्यवाद दिया ... उस साधारण आदमी का नाम है... Steven Mike, शायद फिर कभी मुलाकात हो जाये. ।

~Abhishek Ojha~

11 comments:

  1. Abe sab tere jaise nahin hote :-)

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्छा लिखा है ।
    यदि संसार में कुछ और स्टीवन माइक जैसे हो जाएँ तो यह एक दूसरे की सहायता व सद्भावना का सिलसिला चल निकलेगा ।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  3. बेशक एक ऐसा प्रेरक प्रसंग जिसे हमें हमेशा याद रखना होगा और खास कर उस महान पुरूष की वह सीख कि किसी अंजान जगह पर किसी अंजान बंदे की मदद करने से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।

    ReplyDelete
  4. अच्छा ही हुआ कि ये पोस्ट मैने सबसे पहले सुबह सुबह पढ ली,
    अनजाने में ऐसे कितने ही स्टीवन माइक हमें मिल जाते हैं और इन्ही लोगों के कारण हमारा अनजान लोगों में अभी भी भरोसा कायम है ।

    इस प्रसंग को लिखने के लिये धन्यवाद,

    ReplyDelete
  5. प्रसंग अच्छा लगा……याद भी रहेगा…शुक्रिया

    ReplyDelete
  6. ये पोस्ट तो हम पढ़ चुके थे। लेकिन फ़िर से पढ़ना और अच्छा लगा।

    ReplyDelete
  7. steven mike : A great personality and he is god. You met with a god.

    ReplyDelete
  8. ये ल्लो आज फ़िर से बांच लिये। :)

    ReplyDelete
  9. वैसे यहाँ मिल ही जाया करते हैं 'स्टीवन माईक', ऐसे लोगों से मिलकर लगता है, दुनिया उतनी बुरी नहीं है। अच्छा लगा पढना।

    ReplyDelete
  10. स्टीवन माइक जैसों से पता नही कभी मुलाकात हो ना हो पर वैसा कुछ बनने की उम्मीद जरुर मन मे जाग गई है

    ReplyDelete